मुंबई: भले ही ये एक संयोग हो कि महाराष्ट्र में बीजेपी को विपक्ष में बैठने के लिए मजबूर करने वाली शिवसेना और झारखंड में बीजेपी को विपक्ष का रास्ता दिखाने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा इन दोनों ही पार्टियों का चुनाव चिन्ह धनुष बाण हो लेकिन इसके अलावा भी महाराष्ट्र और झारखंड में कई ऐसी समानताएं हैं जो कि बीजेपी की हार का कारण बनी. झारखंड में भी बीजेपी ने कुछ वैसी ही गलतियां की जैसे कि उसने महाराष्ट्र में की थी.
वरिष्ठ और दिग्गज नेताओं का साइड लाइन किया जाना
महाराष्ट्र और झारखंड इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने पार्टी के भीतर अपने प्रतिद्वंदी समझे जाने वाले कई नेताओं को साइड लाइन कर दिया. उन्हें टिकट नहीं दिया गया. अगर महाराष्ट्र की बात करें तो एकनाथ खडसे, विनोद तावड़े और चंद्रशेखर बवनकुले जैसे बड़े नेताओं का टिकट काट दिया गया.
बागियों ने पहुंचाया नुकसान
झारखंड और महाराष्ट्र, दोनों ही राज्यों में बीजेपी को पार्टी के भीतर बगावत झेलनी पड़ी. झारखंड की तरह महाराष्ट्र में भी कई नेताओं को जिनका टिकट काटा गया वे बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे. कई सीटों पर उन्होंने या तो बीजेपी उम्मीदवार को हराया या फिर उनकी हार का कारण बने.
दल बदलू नेताओं से कोई फायदा नहीं मिला
दोनों ही राज्यों में बीजेपी ने विरोधी पार्टी के कई बड़े नेताओं को तोड़कर शामिल कर लिया था और उन्हें चुनाव का टिकट दिया गया लेकिन ऐसे ज्यादातर दलबदलू नेता चुनाव हार गए.
चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा
महाराष्ट्र में जहां देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी ने सीएम पद का उम्मीदवार बनाया था तो वही झारखंड में भी बीजेपी ने रघुवर दास को रिपीट करने का ऐलान किया. इससे बीजेपी जो सोशल इंजीनियरिंग करने की सोच रही थी वैसा हुआ नहीं और दोनों ही राज्यों में जातीय आधार पर अनपेक्षित समीकरण बने.
स्थानीय मुद्दों के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह दिया जाना
महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के दौरान भी अमित शाह और नरेंद्र मोदी ज्यादातर एयर स्ट्राइक और कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने जैसे राष्ट्रीय मुद्दों की बात करते थे. वही काम इन्होंने झारखंड में भी किया. दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसी स्थानीय पार्टियों ने जल, जंगल, जमीन जैसे लोगों से जुड़े मुद्दों को उठाया जिसका फायदा उन्हें मिला.
बूढ़े नेताओं ने खेल बिगाड़ा
जो काम सरयू राय ने झारखंड में किया वही काम शरद पवार ने महाराष्ट्र में किया था. चुनाव से कुछ दिनों पहले ही उन्होंने राज्य भर का धुआंदार दौरा किया था. भारी बारिश के बीच भी भाषण देते हुए उनकी तस्वीरें खूब वायरल हुई थी जिसने ना केवल एनसीपी को फायदा पहुंचाया बल्कि कांग्रेस ने भी बहती गंगा में हाथ धो लिया. 2014 के मुकाबले दोनों ही पार्टियों की सीटों में इजाफा हुआ. यहां फर्क सिर्फ ये है कि शरद पवार, सरयू राय की तरह चुनावी मैदान में बतौर उम्मीदवार नहीं उतरे थे.
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