Karnataka Elections: कर्नाटक के सभी मंदिरों में होने वाली सलाम आरती को अब से संध्या आरती के नाम से जाना जाएगा. हिंदू मंदिरों की देखरेख करने वाली सर्वोच्च सरकारी संस्था ने शनिवार को 6 महीने पुराने एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. ऐसे में भले ही वहां पर अभी चुनाव में कुछ महीने बचे हों, लेकिन कर्नाटक की राजनीति गर्माने लग गई है.
कर्नाटक में शाम को जो मंदिरों में आरती हुआ करती है, उसे अब तक सलाम आरती कहा जाता था. अब उसका नाम बदल कर ‘संध्या आरती’ कर दिया गया है. दरअसल, आने वाले साल में कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव होने हैं और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की सरकार अभी से ही तैयारियों में जुट गई है. इसलिए इस फैसले को चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है.
कर्नाटक में क्या कुछ हुआ?
हिंदू मंदिरों की देखरेख करने वाली सर्वोच्च सरकारी संस्था ने छह महीने पुराने एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इसमें टीपू सुल्तान के शासनकाल के समय से फारसी नाम से पुकारे जाने वाली इस परंपरा का नाम बदलकर संस्कृत में रखने की मंजूरी दी गई है. दरअसल वहां के हिन्दू विंग के लोगों का कहना था कि टीपू सुल्तान के शासनकाल में ये नाम उन पर थोपा गया था. सलाम आरती नाम हिन्दू सभ्यता में नहीं है.
राज्य धार्मिक परिषद के सदस्य और विद्वान काशेकोडी सूर्यनारायण भट ने पहले कहा था कि ये नाम टीपू के शासनकाल के दौरान हिंदू मंदिरों पर लाद दिए गए थे. इसलिए इसे हटाया जाना चाहिए और अब चुनाव से कुछ महीनों पहले इस नाम को हटाया जा सकता है. टीपू सुल्तान के शासनकाल के समय से हर दिन शाम 7 बजे ‘सलाम आरती’ आयोजित की जाती थी लेकिन अब इसे बदलने का प्रस्ताव सीएम बसवराज बोम्मई के पास भेजा गया है.
उनकी मंजूरी मिलते ही इसे लागू कर दिया जाएगा. इसके बाद केवल मेलकोट में ही नहीं बल्कि कर्नाटक के सभी मंदिरों में आरती का नाम बदलने का एक आधिकारिक आदेश जारी किया जाएगा.
क्या कहती है कर्नाटक की राजनीति?
इस फैसले का कर्नाटक विधानसभा चुनाव पर क्या असर पड़ सकता है ये समझने के लिए पहले कर्नाटक की राजनीति को थोड़ा समझते हैं. कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटें और 28 लोकसभा सीटें हैं. अगर अभी की बात करें तो जहां लोकसभा में बीजेपी के 25 सांसद हैं वहीं विधानसभा में 117 विधायक हैं. आगामी चुनाव में जातीय समीकरण का अहम योगदान रहने वाला है.
राज्य की कुल जनसंख्या का 17 प्रतिशत आबादी लिंगायत समुदाय है. इस बार चुनाव में लिंगायत समुदाय केंद्र में है. ये समुदाय 100 सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकता है जो किसी भी पार्टी के लिए गेम चेंजर हो सकता है.
साल 1990 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिंगायत मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को बर्खास्त कर दिया था तब से परंपरागत रूप से कांग्रेस समर्थक, लिंगायत समुदाय कांग्रेस पार्टी से नाराज था और चुनावों में कांग्रेस ने आज तक का अपना सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया था.
इसके अलावा, हिन्दू विंग्स का कर्नाटक की राजनीति पर अच्छा खासा असर देखने को मिलता है.
ये भी पढ़ें: Karnataka Assembly: कर्नाटक में श्रीराम सेना का एलान, 2023 विधानसभा चुनाव में निर्दलीय लड़ाएंगे 25 उम्मीदवार