नई दिल्ली: दो-दो सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका निभा चुके जनरल बिपिन रावत ने आज देश के 27वें सेनाध्यक्ष का पदभार संभाल लिया. उन्होने जनरल दलबीर सिंह की जगह ली जो आज रिटायर हो गए. जनरल दलबीर सिंह ने ढाई साल तक सेना की कमान संभाली.
इस बीच नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति पर भी विवाद थम गया है. सेना के सबसे वरिष्ठ कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बख्शी ने साफ कर दिया कि वे सेना प्रमुख नहीं बनाए जाने से नाराज नहीं हैं और इस्तीफा नहीं दे रहे हैं. बल्कि नए साल की बधाई देते हुए उन्होनें नए सेनाध्यक्ष बिपिन रावत को पूरा 'समर्थन' देने का ऐलान किया. दरअसल, दो-दो सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका निभाने वाले बिपिन रावत को उनकी काबलियत, उपयुक्ता और ‘डायनमिज़म’ को देखते हुए सरकार ने दो-दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को दरकिनार करते हुए बिपिन रावत को नया सेना प्रमुख बनाया है.
भारतीय सेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्म्ड फोर्स है. 1978 में सेना की गोरखा राईफल्स (5/11 गोरखा बटालियन) में शामिल हुए बिपिन रावत एक इंफेंट्री-अधिकारी हैं और काउंटर-टेरेरिज़म और एंटी-इन्सर्जेंसी एक्सपर्ट माने जाते हैं. उन्हें हाई-ऑलटिट्यूड यानि उंचे पहाड़ों पर लड़ने का भी अच्छा अनुभव है. सरकार ने उनकी नियुक्ति पर हुए विवाद पर बयान जारी कर कहा था कि आज के सुरक्षा माहौल और भविष्य की चुनौतियों के मद्देनज़र उन्हें इस पद का सबसे उपयुक्त सैन्य-अधिकारी माना गया है. सेनाध्यक्ष बनने से पहले बिपिन रावत सह-सेनाध्यक्ष के पद पर तैनात थे. उरी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ हुई सर्जिकल-स्ट्राइक में बिपिन रावत की अहम भूमिका को देखते हुए ही सरकार ने उन्हें सेना प्रमुख के पद के लिए चुना है.
इससे पहले यानि जून 2015 में भी म्यामांर की सीमा में घुसकर एनएससीएन उग्रवादी संगठन के खिलाफ किए गए सर्जिकल-स्ट्राइक में तो बिपिन रावत ने सीधे तौर से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस दौरान वे नागालैंड स्थित दीमापुर में सेना की तीसरी कोर के जीओसी थे. उग्रवादियों के कैंप को तहस-नहस करने और उग्रवादियों के खात्में की प्लानिंग खुद बिपिन रावत ने की थी. अपने 38 साल के सैन्य करियर में बिपिन रावत ने अधिकतर समय आतंकियों और उग्रवादियो के खिलाफ ऑपरेशन में बिताया है. वे जम्मू-कश्मीर में सेना की 19 डिव (डिवीजन) के जीओसी भी रह चुके हैं.
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, बिपिन रावत के बैक-ग्राउंड और ऑपरेशनल-अनुभव के चलते ही उन्हें इस महत्वपूर्ण पद के लिए चुना गया है. बताते चलें कि 1986-87 में अरुणचाल प्रदेश में चीन के साथ हुए बॉर्डर विवाद (‘सुद्रांगशु विवाद’) के ऑपरेशन में भी बिपिन रावत ने हिस्सा लिया था. उस वक्त गोरखा राईफल्स में कंपनी-कमांडर थे. उस लड़ाई में चीन को काफी नुकसान उठाना पड़ा था और विवाद में पीछे हटना पड़ा था. सेना की पुणें स्थित दक्षिण कमांड के कमांडर के तौर पर उन्होनें नौसेना और वायुसेना के साथ भी उनका कोर्डिनेशन और कॉपरेशन काफी अच्छा माना गया था. उस दौरान मैकेनाइज्ड-वॉरफेयर का भी उन्हें अनुभव प्राप्त हुआ.
इन्हीं सब वजह के चलते सरकार ने सेना के दो सबसे सीनियर कमांडर्स (लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बख्शी और पीएम हारिज) को दरकिनार बिपिन रावत को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी फौज की कमान सौंपने का फैसला किया. क्योंकि प्रवीन बख्शी भले ही सबसे सीनियर सैन्य अधिकारी थे, लेकिन वे आर्मर्ड कोर से ताल्लुक रखते थे. जिसके चलते उन्होनें जम्मू-कश्मीर में फील्ड और ऑपरेशनल ड्यूटी बेहद कम की थी. अब करियर के आखिरी सालों में वे जरुर उत्तरी कमान के चीफ ऑफ स्टॉफ और हिमाचल प्रदेश के योल स्थित 9वीं कोर के जीओसी रहे थे. उनका ज्यादातर समय राजस्थान में बीता था. पीएम हारिज का ऑपरेशल अनुभव भी बिपिन रावत से उन्नीस था. क्योंकि वे भी मैकेनाइज्ड-इंफ्रंट्री के अधिकारी रह चुके हैं. रावत दिसंबर 1978 कोर्स के अधिकारी हैं जबकि हारिज जून 1978 और बख्शी दिसम्बर 1977 कोर्स के अधिकारी हैं. अगर सरकार वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए सेनाध्यक्ष बनाती तो बख्शी का इस पद पर चुना जाना निश्चत था (जैसा कि अब तक की सेना में पंरपरा चलती आई थी)
सरकार का मानना है कि देश को इस वक्त एक ऐसे सेनाध्यक्ष की जरुरत है जो आतंकवाद, उग्रवाद और छोटे-युद्ध लड़ने के सबसे उपयुक्त हो. इस तरह के सामरिक परिदृश्य के लिए बिपिन रावत से ‘उपयुक्त’ कोई अधिकारी नहीं है. हालांकि सेनाध्यक्ष के पैनल के लिए भेजे गए सभी कमांडर्स बेहद काबिल थे. साथ ही सरकार ने ये भी साफ कर दिया कि सेनाध्यक्ष को चुनने का ‘अधिकार’ उसके पास है. साथ ही इस तरह के महत्वपूर्ण नियुक्ति के लिए केवल वरिष्ठता को ध्यान नहीं रखा जाएगा.
सीनियोरिटी के साथ-साथ ‘मेरिट’ यानि काबलियत भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. 1978 में इंडियन मिलेट्री एकडेमी यानि आईएमए से पास-ऑउट बिपिन रावत को अपने कोर्स में ‘स्वार्ड ऑफ ओनर’ से नवाजा गया था. नेशनल डिफेंस कॉलेज, हायर कमांड और डिफेंस सर्विस स्टॉफ कॉलेज से उच्च सैन्य-शिक्षा प्राप्त कर चुके बिपिन रावत मीडिया-स्ट्रटेजी में डॉक्टरेट भी कर चुके हैं.
इस बीच अपने कार्यकाल के आखिरी दिन मीडिया से मुखातिब होते हुए जनरल दलबीर सिंह ने कहा कि उनके कार्यकाल में सेना ने पाकिस्तान की हर करतूत का 'पर्याप्त से ज्यादा' जवाब दिया है. जनरल दलबीर सिंह ने कहा कि उनके ढाई साल के कार्यकाल में उरी और नगरोटा हमला जरूर हुआ लेकिन इस साल मारे गए आतंकियों की संख्या दोगुनी हो गई. पिछले साल तक जम्मू कश्मीर में करीब 60 आतंकी मारे गए थे लेकिन इस साल ये संख्या 140 हो गई है.