सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे मतदाता सूची संशोधन यानी SIR पर सुनवाई 7 अक्टूबर तक के लिए टाल दी है. चुनाव आयोग ने कोर्ट से अनुरोध किया कि वह 1 अक्टूबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित कर देगा. उसके बाद ही मामला सुना जाए. वहीं याचिकाकर्ता पक्ष ने SIR की वैधता समेत कई मुद्दों पर बहस की मंशा जताई.
याचिकाकर्ता एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन से पहले सुनवाई का अनुरोध किया, लेकिन जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि लिस्ट के प्रकाशन से कोई असर नहीं पड़ेगा. अगर उन्हें प्रक्रिया में कोई अवैधता मिलेगी, तो वह सूची के प्रकाशित होने के बाद भी हस्तक्षेप करेंगे.
प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग SIR प्रक्रिया में अपने खुद के नियमों का पालन नहीं कर रहा है. कोर्ट के आदेश के बावजूद आयोग अपने पास दाखिल हुए आपत्तियों को अपलोड नहीं कर रहा है. इस दलील का चुनाव आयोग के लिए पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कड़ा विरोध किया. उन्होंने कहा कि मतदाताओं को सब जानकारी दी जा रही है.
ध्यान रहे कि 8 सितंबर को हुई सुनवाई में कोर्ट ने आधार को भी SIR में मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने को कहा था. हालांकि, कोर्ट ने साफ किया था कि चुनाव आयोग के अधिकारी आधार कार्ड की वैधता की पुष्टि के लिए दूसरे दस्तावेज भी मांग सकते हैं. सोमवार को हुई सुनवाई में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोर्ट को सभी राज्यों में होने वाले SIR के लिए आधार को भी दस्तावेज मानने का आदेश देना चाहिए.
कोर्ट ने फिलहाल दूसरे राज्यों के लिए कोई आदेश देने से मना कर दिया. वकील अश्विनी उपाध्याय ने आधार को SIR में मान्य दस्तावेज का दर्जा देने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की तरफ से तय 11 दस्तावेज सरकारी विभाग बनाते हैं. आधार कार्ड जन सुविधा केंद्र में बनता है. यह विदेशियों को भी उपलब्ध हो जाता है. इसलिए, कोर्ट इसे मान्य दस्तावेजों की सूची से बाहर करे. कोर्ट ने उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी कर दिया और कहा कि अगली सुनवाई में सभी बातों को सुना जाएगा.