बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर देश की राजनीति चरम पर है. इसको लेकर आए दिन नए-नए सर्वे भी सामने आ रहे हैं. इस बीच ASA इंडिया कंपनी के फाउंडर अमिताभ तिवारी ने बिहार में 10 दिन रहकर बेहद ही करीब से मौजूदा वक्त में चल रही स्थिति को समझने की कोशिश की. इस दौरान उन्होंने NDA, इंडिया गठबंधन और प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज पर अपना फोकस बनाए रखा. अमिताभ तिवारी ने बिहार तक पर बिहार की राजनीति पर खुलकर बात की.

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इस बीच बिहार की राजनीति में इस बार का सबसे बड़ा सवाल है कि क्या प्रशांत किशोर (PK) की पार्टी कोई बड़ा असर डाल पाएगी या नहीं. चर्चा के मुताबिक, युवाओं का एक वर्ग PK की तरफ आकर्षित है, लेकिन मिडिल एज और सीनियर सिटिज़न्स अभी उन्हें टटोलने की स्थिति में हैं. यानी वे फिलहाल सिर्फ देख-परख रहे हैं.

प्रशांत किशोर की पार्टी को समर्थन मौजूदा सर्वे के मुताबिक साउथ बिहार (भोजपुर, मगध, मुंगेर, भागलपुर) में प्रशांत किशोर की पार्टी को लगभग 10-12% समर्थन मिल रहा है, जबकि नॉर्थ बिहार (पूर्णिया, दरभंगा, कोसी, तिरहुत, सारण) में यह समर्थन घटकर 8-10% तक है. यह वोट शेयर उन्हें चर्चा में तो रखता है, लेकिन किसी सीट पर जीतने के लिए आवश्यक 30-35% वोट से काफी कम है.

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महागठबंधन बनाम एनडीए PK फैक्टर का असरअगर पिछले चुनाव (125 बनाम 110 सीटों का मुकाबला) को आधार मानें तो इस बार समीकरण में बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं दिख रही. महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, आदि): मगध और भोजपुर में कुछ सीटें कम हो सकती हैं, लेकिन मुंगेर और भागलपुर में हल्का फायदा भी संभव है. एनडीए (भाजपा-जेडीयू) का जातीय समीकरण (अपर कास्ट, दलित, EBC) के चलते वोट बैंक largely safe है. कुल मिलाकर, PK के आने से सबसे बड़ा नुकसान महागठबंधन को हो सकता है. वजह साफ है, जो भी वोटर मौजूदा सरकार से नाराज है, वह सामान्यतः महागठबंधन की तरफ जाता, लेकिन PK के कारण यह वोट बंट सकता है.

सीट समीकरण और बाग़ियों की भूमिकाप्रशांत किशोर की किस्मत इस बार काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि उन्हें बड़े दलों (भाजपा, जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस) से कितने मजबूत बाग़ी उम्मीदवार मिलते हैं. अगर कोई कोर वोटर समुदाय (जैसे EBC, ब्राह्मण, राजपूत या महादलित) से ताल्लुक रखने वाला बाग़ी PK के साथ आता है तो एनडीए का नुकसान भी संभव है, लेकिन नेट इफेक्ट देखें तो महागठबंधन को ही ज्यादा झटका लगेगा.

जातीय समीकरण में क्या कुछ बदला?चुनाव में जातीय समीकरण हमेशा अहम होते हैं. मौजूदा तस्वीर में मुस्लिम-यादव (MY वोट बैंक) महागठबंधन के साथ मजबूत बना हुआ है. अपर कास्ट, दलित, EBC बड़े पैमाने पर एनडीए के साथ है. कोयरी/कुशवाहा समाज में थोड़ी-बहुत टूट-फूट हो सकती है. अगर महागठबंधन सही उम्मीदवार उतारता है तो इस वर्ग का कुछ हिस्सा उनकी ओर आ सकता है.

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