हैदराबाद/मुंबई: माओवादियों से कथित संबंध रखने को लेकर गिरफ्तार किए गए पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से तीन को पुणे से उनके हैदराबाद और मुंबई स्थित घर लाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इन्हें इनके घरों में नजरबंद रखा जाए. वामपंथी कवि औप लेखक वरवर राव को विमान से हैदराबाद लाया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि कार्यकर्ताओं को फंसाया गया है. उन्होंने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि फासीवादी नीतियों के खिलाफ लड़ने वालों को षड्यंत्रकारी कहने से बड़ा षड्यंत्र और कुछ नहीं हो सकता.

न्याय प्रक्रिया का उड़ाया गया मज़ाक नई दिल्ली में जानीमानी लेखिका अरूंधति रॉय, अधिवक्ता प्रशांत भूषण, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता अरूणा रॉय और दलित नेता जिग्नेश मेवानी सहित अन्य लोगों के हस्ताक्षर वाले एक संयुक्त बयान में कहा है कि मंगलवार को देश भर में छापेमारी कर पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाना सभी वाजिब प्रक्रियाओं के उल्लंघन को दिखाता है और यह न्याय प्रक्रिया का माखौल उड़ाया जाना है.

दलित आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश बुद्धिजीवियों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने यह भी मांग की है कि पुलिस इन कार्यकर्ताओं की अवैध गिरफ्तारी के दौरान जब्त किए गए लैपटॉप और मोबाइल फोन वापस कर दे. मेवानी ने कहा, ‘‘वो लोग असली मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहते हें और दलित आंदोलन की साख घटाना चाहते हैं.’’ भूषण ने कहा, ‘‘जो कुछ हो रहा है वो आपातकाल की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक है.’’

राजनीतिक बदले की कार्रवाई पर लगे रोक मामले के जांच अधिकारी और पुणे के सहायक पुलिस आयुक्त शिवाजी पवार ने कहा, ‘‘हमारे पुलिस अधिकारी और कर्मी शहरों की स्थानीय पुलिस के साथ उनके आवासों पर तैनात किए जाएंगे.’’ इस बीच, बुद्धिजीवियों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई बताया है. उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग की और इस तरह के राजनीतिक बदले की कार्रवाई पर रोक लगाने की अपील की.

बेजुबान तबके की आवाज़ को किया जा रहा खामोश अरूणा रॉय ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘चुनाव तक यह भटकाएगी और शासन करेगी.’’ वहीं, अर्थशास्त्री जेन द्रेज सहित झारखंड सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने पांचों लोगों की फौरन रिहाई की मांग की. सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी ने आरोप लगाया है कि सकरार उन लोगों को खामोश कर रही है जो हाशिये पर मौजूद लोगों और समाज के बेजुबान तबके के लिए काम कर रहे हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच-एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने की आलोचना ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने एक संयुक्त बयान में कहा कि सरकार को राजनीति से प्रेरित गिरफ्तारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की प्रताड़ना और शांतिपूर्ण असहमति रोकने की कार्रवाई को बंद करना चाहिए. कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशएटिव ने कहा कि यह घटना दिखाती है कि पुलिस की जवाबदेही और कानून कायम रखने में व्यापक अंतराल अब भी मौजूद है.

वजाहत हबीबुल्ला (भारत के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त), दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह सहित अन्य के हस्ताक्षर वाले इसके एक बयान में कहा गया है कि पुलिस सुधार कानून से महज एक महीने पहले इसे अंजाम दिया गया. बयान में इस छापेमारी को परेशान करने वाला बताया गया है.

असहमति लोकतंत्र का ‘सेफ्टी वाल्व’ बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने असहमति को लोकतंत्र का ‘सेफ्टी वाल्व’ बताते हुए महाराष्ट्र पुलिस को निर्देश दिया था कि पांचों कार्यकर्ताओं को सुनवाई की अगली तारीख छह सितंबर तक उनके घरों में नजरबंद रखा जाए. वेरनन गोंजाल्विस जब मुंबई स्थित अपने घर पहुंचे तब उनकी पत्नी और वकील सुसान अब्राहम ने कहा कि वेरनन सुरक्षित घर लौटे हैं और हमने उनका स्वागत किया. भीमा-कारेगांव मामले में गिरफ्तार घरों में नज़रबंद गोंजाल्विस ने दावा किया कि फर्जी चिट्ठी के आधार पर उन्हें फंसाया गया है, ताकि उन लोगों को बचाया जा सके जो पुणे के पास दलितों और उच्च जाति के मराठों के बीच हुई झड़पों के लिए वास्तविक रूप से जिम्मेदार हैं. एक अधिकारी ने बताया कि फरेरा को मुंबई से लगे ठाणे जिले के चराई इलाके में स्थित उनके घर ले जाया गया. अधिवक्ता सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद स्थित उनके घर में जबकि सिविल लिबर्टिज के कार्यकर्ता गौतम नवलखा को उनके दिल्ली स्थित घर में नजरबंद रखा गया है. राव, गोंजालविस और फरेरा को मंगलवार रात पुणे ले जाया गया. महाराष्ट्र पुलिस ने मंगलवार को देश भर में छापेमारी की थी और इन लोगों को गिरफ्तार किया था. पिछले साल 31 दिसंबर को एल्गार परिषद कार्यक्रम के बाद पुणे के पास भीमा-कारेगांव में हुई हिंसा की जांच के तहत यह छापेमारी की गई.

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