First Banned Film Bhakta Vidur: हाल ही में रिलीज हुई फिल्म द केरला स्टोरी उन राज्यों में टैक्स फ्री है, जहां मुख्यमंत्री बीजेपी के हैं. तो वहीं उन राज्यों में बैन है, जो गैर बीजेपी शासित हैं, लेकिन भारत में फिल्मों पर बैन का इतिहास कमोबेश उतना ही पुराना है, जितना पुराना इतिहास भारतीय फिल्मों का है. भारत में पहली बार जब किसी फिल्म पर बैन लगा था तो शासन अंग्रेजों का था और उन्होंने महात्मा गांधी की वजह से फिल्म भक्त विदुर को कराची और मद्रास में बैन कर दिया था. 


'ये गांधी हैं. हम इसकी इजाजत नहीं देंगे'
भारतीय इतिहास में पहली बार जो फिल्म बैन हुई थी उसका नाम भक्त विदुर था. ये एक मूक फिल्म थी यानी इस फिल्म में कोई आवाज नहीं थी. साल 1921 में रिलीज हुई इस फिल्म को कांजीभाई राठौड़ ने डायरेक्ट किया था. इस फिल्म का प्रोडक्शन कोहिनूर फिल्म कंपनी ने किया था.


जैसा कि नाम से ही जाहिर है, ये फिल्म महाभारत के एक कैरेक्टर विदुर से प्रभावित थी, लेकिन फिल्म में विदुर के कैरेक्टर को महात्मा गांधी से प्रभावित बताकर अंग्रेजों ने कराची और मद्रास प्रेसिडेंसी में इस फिल्म को रिलीज होने से ही रोक दिया था. तब सेंसर बोर्ड ने कहा था, ''हमें पता है कि आप क्या कर रहे हैं. ये विदुर नहीं हैं, ये गांधी हैं. हम इसकी इजाजत नहीं देंगे.''


इतना ही नहीं, सेंसर बोर्ड ने यहां तक कहा था कि ये फिल्म सरकार के खिलाफ असंतोष को जाहिर करती है और लोगों को असहयोग करने के लिए प्रेरित करती है. इसके बाद फिल्म को कराची, मद्रास और कुछ दूसरे राज्यों में बैन कर दिया गया था. महात्मा गांधी की वजह से अंग्रेजों ने इस फिल्म पर आपत्ति क्यों जताई थी ? उसकी पृष्ठभूमि भी समझ लीजिए.


जब अंग्रेजों ने भक्त विदुर के कैरेक्टर को महात्मा गांधी समझा
दरअसल भारत में साल 1919 में रॉलेट एक्ट पास हुआ. 18 मार्च को इस एक्ट को पास किया गया था. इस एक्ट का भारत में खूब विरोध हुआ. पंजाब के अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक ऐसे ही विरोध प्रदर्शन के लिए जब हजारों लोग जुटे तो जनरल डायर ने सबको घेरकर गोलियां चलवा दीं.


13 अप्रैल 1919 को हुए इस नरसंहार में कम से कम एक हजार लोगों की मौत हुई थी और दो हजार से भी ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस भयानक नरसंहार के बावजूद भारतीयों ने रॉलेट एक्ट का विरोध करना जारी रखा, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी के हाथ में था.


अंग्रेजों ने फिल्म भक्त विदुर के कैरेक्टर विदुर को महात्मा गांधी के रूप में देखा, क्योंकि फिल्म में भी विदुर को महात्मा गांधी की तरह कपड़े और गांधी टोपी लगाए दिखाया गया था. इसके अलावा उस वक्त की भारतीय राजनीति से जुड़ी कई घटनाओं को भी फिल्म में समाहित किया गया था, जिसकी वजह से ये फिल्म महाभारत की बजाय भारतीय राजनीति और अंग्रेजों के शासन के खिलाफ खड़ी दिखती थी. नतीजा ये हुआ कि भारत में पहली बार किसी फिल्म को बैन कर दिया गया.


फिल्म को त्याग भूमि पर भी लगा था बैन
अंग्रेजों ने अपने शासन काल के दौरान एक और फिल्म को त्याग भूमि भी बैन किया था. 1939 में बनी इस तमिल भाषी फिल्म को रिलीज होने के 22 हफ्तों के बाद अंग्रेजों ने मद्रास में बैन कर दिया था. इसकी वजह ये थी कि ये फिल्म भी कांग्रेस, महात्मा गांधी और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन करती हुई दिख रही थी.


वहीं आजाद भारत में बैन होने वाली पहली फिल्म 1952 में रिलीज हुई फिल्म रुनुमी थी. इसे बिना वजह बताए असम के मुख्यमंत्री विष्णुराम मेढी ने असम में बैन कर दिया था. आजाद भारत में पूरे देश में बैन होने वाली पहली फिल्म 1955 में रिलीज हुई समरटाइम थी. इसमें एक अमेरिकी महिला को इटली के एक शादीशुदा नागरिक से प्रेम में पड़ते हुए दिखाया गया था. तब इस फिल्म को भारतीय मूल्यों के खिलाफ करार देते हुए पूरे देश में बैन कर दिया गया था.


देश में बैन होने वाली फिल्मों की संख्या 100 से ज्यादा
तब से लेकर अब तक कभी पूरे देश में तो कभी किसी प्रदेश में बैन होने वाली फिल्मों की संख्या 100 से भी ज्यादा है. और इन तमाम फिल्मों को बैन करने के पीछे है सिर्फ राजनीति है, जिसने कभी फिल्म बैन करने के पीछे भारतीय मूल्यों की दुहाई दी, तो कभी किसी नेता की छवि खराब करने की दुहाई दी तो कभी सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने की दुहाई दी.


इसमें कांग्रेस की सरकारों से लेकर, जनता पार्टी, जनता दल और भारतीय जनता पार्टी तक की सरकारें शामिल रहीं हैं, जिन्होंने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए वक्त-वक्त पर फिल्मों पर पाबंदी लगाई है. वरना इमरजेंसी में इंदिरा गांधी की सत्ता के वक्त किस्सा कुर्सी का भी रिलीज हुई होती और प्रधानमंत्री मोदी की सत्ता के वक्त इंडियाज डॉटर भी.


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