नई दिल्ली: राज्यसभा में आज ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पर विपक्ष के संशोधनों के पारित हो जाने की वजह यह विधेयक मूल स्वरूप में पारित नहीं हो सका. इससे एक ओर जहां सरकार की किरकिरी हुई, वहीं ओबीसी वर्ग के हितों के साथ खिलवाड़ करने का सत्ता पक्ष और विपक्ष ने एक दूसरे पर तीखे आरोप लगाए. राज्यसभा ने विधेयक के तीसरे महत्वपूर्ण खंड (क्लॉज) तीन को खारिज करते हुए शेष विधेयक को जरूरी दो तिहाई मतों से पारित कर दिया. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी संविधान (123वां संशोधन) विधेयक लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी थी. आज राज्य सभा में चर्चा के बाद इसके तीसरे खंड में कांग्रेस के संशोधनों को संसद ने 54 के मुकाबले 75 मतों से मंजूरी दे दी. इन संशोधनों में प्रस्ताव किया गया है कि प्रस्तावित आयोग में एक सदस्य अल्पसंख्यक वर्ग से और एक महिला सहित पांच सदस्य होने चाहिए. मूल विधेयक में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित तीन सदस्यीय आयोग का प्रस्ताव किया गया है. प्रस्ताव पारित होने के बाद सत्ता पक्ष एऔर विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया. सदन के नेता अरूण जेटली ने कहा कि संविधान के किसी भी नियम में यह नहीं कहा गया है कि कानून में किसी एक वर्ग को शामिल कर दूसरे वर्गों को बाहर कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि सरकार इस आयोग के गठन के मामले में भी वही नियम बनाए हैं जैसे कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोगों के लिए बनाए गये हैं. नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि पिछड़ा वर्ग से संबंधित यह महत्वपूर्ण विधेयक यदि पारित नहीं होता है तो इसके लिए सीधे तौर पर सरकार जिम्मेदार होगी. कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि नेता सदन जो तर्क दे रहे हैं उन्हें यह संशोधन पारित होने से पहले देना चाहिए था. संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने सवाल किया कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि जिन पार्टियों ने इसी विधेयक का लोकसभा में समर्थन किया, वही यहां राज्यसभा में विरोध कर रही हैं. उन्होंने कांग्रेस पर विशेष रूप से हमला बोलते हुए कहा कि वह एक बड़ी गलती करने जा रही है और वे दशकों से चली आ रही पिछडे वर्ग की मांग को नकार रहे हैं. नकवी ने कहा, ‘‘लम्हों ने खता की, सदियों तक सजा पाएंगे....’’ बहरहाल, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि सदन के दो बड़े दल आपस में जो कहें लेकिन इस सच्चाई को नहीं बदला जा सकता कि संशोधन को सदन ने स्वीकार कर लिया है. उन्होंने कहा कि सदन की कार्यवाही को कुछ देर रोक कर नेताओं को बात करने का मौका दिया जाए ताकि कुछ हल निकल सके. कुरियन ने उनकी बात मानते हुए मत विभाजन प्रक्रिया को कुछ देर के लिए टाल दिया. पर कोई समाधान नहीं निकलते देख उन्होंने अंत में संशोधित तीसरे खंड पर मत विभाजन करवाया. लेकिन दो तिहाई मतों की अनिवार्यता पूरी नहीं होने की वजह से यह खंड नकार दिया गया. इसके बाद सदन ने शेष विधेयक को जरूरी दो तिहाई बहुमत से पारित कर दिया.