Sawan Fair: देवघर (Devghar) में विश्वप्रसिद्ध श्रावणी मेले (Sawan Fair) की शुरुआत भी हो चुकी है. महीने के चारों सोमवार के दिन राज्य सहित देशभर के सभी शिवालयों में लोगों का हुजूम बाबा को जल चढ़ाने को जुटता है. दो साल कोरोना (Corona) की वजह से बाबा के मंदिर के कपाट सावन के मेले के लिए नहीं खुले थे लेकिन अब जब दो साल बाद बाबा के कपाट खुले है तो भक्तों की भीड़ और उत्साह मंदिर (Temple) में देखने को मिल रहा है. भक्त श्रावण के मेले में दर्शन करने के लिए वैद्यनाथ जाते हैं, बाबा की एक झलक पाने के लिए, और बाबा पर जल चढ़ाने के लिए यहां पहुंचते हैं. 


कोई कोलकाता से तो कोई नेपाल से बाबा के भक्त हैं. कोलकाता से पैदल आए भक्त ने बताया कि "हम लोग कोलकाता से चल आए हैं शनिवार को जल उठाया है और आज ही बाबा का दर्शन हो गए. पैरों में छाले पड़ गए हैं और हम बाबा की सेवा करते हुए आए हैं. तो वहीं नेपाल से आए एक भक्त कहा, "हम नेपाल से आए हैं. बहुत अच्छे दर्शन हुए."


देवघर बाबा की क्या है मान्यता


बाबा की मान्यता है कि यहां पर एक ज्योतिलिंग है, लेकिन उसके साथ 52 शक्तिपीठों में भी एक शक्तिपीठ है क्योंकि सती के जब 52 टुकड़े धरती पर गिरे थे तो हृदय यहां पर गिरा था. हृदय पर बाबाधाम का मंदिर विराजमान है. बाबा की ही कृपा है कि यहां जो भी यहां आता है उसकी मन्नत पूरी होती है, जो मांगते हैं वो मिलता भी है.


बाबा नगरी देवघर सावन में शिवभक्तों के स्वागत को तैयार


देश में बाबा नगरी से प्रसिद्ध झारखंड के देवघर सावन में शिवभक्तों के स्वागत के लिए सजधज कर तैयार है. यहां बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध यहां का शिव मंदिर द्वादश ज्योर्तिलिंग में सर्वाधिक महिमामंडित माना जाता है. सावन महीने में यहां प्रतिदिन करीब एक लाख शिवभक्त शिवलिंग पर जलार्पण करते हैं. सोमवार को आने वाले शिवभक्तों की संख्या और बढ़ जाती है.


तैयारियों पर बात करते हुए झारखंड के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने बताया कि, समझ सकते हैं कि दोनों कोविड लहरों के बाद यह उत्सव दो साल के लिए रुका हुआ था. यह एक ऐसा स्थान है जो श्रावण में भरा हुआ होता है. भक्तों के पास जो धैर्य और हताशा थी, वह अब बाबा के प्रति प्रेम के रूप में बह रही है. हमने सभी आवश्यक सावधानियां बरती हैं, मुख्यमंत्री भी सक्रिय रूप से योजना बनाने में शामिल हैं. इस अनुभव को सार्थक बनाने में स्थानीय राजनेता और स्थानीय लोग सभी जुटे हुए हैं ताकि किसी को कोई परेशानी न हो.


लगभग 70 लाख श्रद्धालु करंगे बाबा के दर्शन


झारखंड के कृषि मंत्री ने बताया कि, अकेले श्रावण में 70 लाख श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. इसके अलावा, आप गिनती नहीं कर सकते आप केवल अनुमान लगा सकते हैं और इस साल हम सरकार द्वारा निर्धारित कोविड प्रोटोकॉल के कारण दो साल के ब्रेक के कारण भारी भीड़ का अनुमान लगाते हैं.


सावन के महीने में बाबा के दर्शन की क्या है खासियत


देवघर के वैद्यनाथ मंदिर के पुजारी सच्चिदानंद ने बताया, "यह महीना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि जब उनका 'समुद्र मंथन' था तो उसमें से 'अमृत और विष' सहित कई चीजें सामने आती हैं. जब ऐसा हुआ तो कोई भगवान नहीं बल्कि शिव इसका सेवन करने के लिए आगे आए. उस विश के सेवन से उसने अपने शरीर में अत्यधिक मात्रा में गर्मी छोड़ दी. यह उस अनुभूति को शांत करने के लिए है कि उसे जल अर्पित किया जाता है और इससे स्नान किया जाता है क्योंकि यह बात इस विशेष महीने के दौरान हुई थी. 


क्या है देवघर के वैद्यनाथ मंदिर की विशेषता


वैद्यनाथ मंदिर के अलावा इस परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं. मंदिर के गर्भग्रह में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की गई है. इस मंदिर को शक्तिपीठ भी माना जाता है. यह भी मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की थी. बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की खास बात यह है कि यहां भगवान भोलेनाथ का हथियार त्रिशूल नहीं, बल्कि मंदिर के शीर्ष पर एक पंचशूल स्थित है. शिव के त्रिशूल को रचना, पालक और विनाश का प्रतीक माना गया है लेकिन यह शिव का एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जिसके शिखर पर भोलेनाथ का त्रिशूल नहीं बल्कि पंचशूल स्थित है. इतिहासकारों का कहना है कि इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1496 में गिधौर के राजा पूरनमल ने करवाया था. मान्यता यह भी है कि बैजू नामक एक चरवाहे ने इस ज्योतिर्लिंग की खोज की थी और उसी के नाम पर इस जगह का नाम वैद्यनाथ धाम पड़ा. इस ज्योतिर्लिंग के करीब ही वैजू मंदिर भी है.


इस मंदिर को लेकर कथा है कि रावण ने भगवान शिव को एक-एक करके अपने 9 सिरों को काटकर चढ़ा दिया और जैसे ही 10वां सिर काटकर चढ़ाने लगा तो शिव प्रकट हो गये. रावण चाहता था कि भगवान शिव उसके साथ लंका चलकर रहें. इसलिए उसने वरदान में कामना लिंग मांगा परंतु शिव भगवान ने शर्त रखी कि अगर शिवलिंग को कहीं रास्ते में रख दिया, तो वो वहीं स्थापित हो जाएगा. रावण को जब लघुशंका लगी तो उसने शिवलिंग बैजू नाम के ग्वाले को पकड़ा दिया, जिसने वह शिवलिंग वहीं रख दिया. कहा जाता है कि बैजू कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु थे.


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