नई दिल्ली: अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज एतिहासिक फैसला सुना दिया. इसके साथ ही विवादित और संवेदनशील 134 साल से अधिक पुराने विवाद का करीब-करीब अंत हो गया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, अयोध्या का 2.77 एकड़ विवादित जमीन रामलला को दिया गया है. यानि राम मंदिर बनने का रास्ता तय हो गया. वहीं विवादित जमीन से अलग अयोध्या में ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन देने का फैसला लिया गया. जहां मस्जिद का निर्माण कराया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को देखते हुए पूरे देश में अलर्ट है. सत्तारूढ़ दल हो या विपक्षी या सामाजिक-धार्मिक संगठन सभी शांति की अपील कर रहे हैं और अपनी राय रख रहे हैं.


10 प्वाइंट्स में समझें अयोध्या का फैसला-


1. बनेगा मंदिर: चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला विराजमान को सौंप दिया जाये, जो इस मामले में एक पक्ष हैं. हालांकि यह भूमि केन्द्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में ही रहेगी. अब साफ है कि इस जमीन पर राम मंदिर का निर्माण होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र तीन महीने के भीतर योजना बनाये और मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट की स्थापना करे.


2. मस्जिद के लिए मिले जमीन: सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसले में केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि नई मस्जिद के निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन आबंटित किया जाए.


3. हुआ था कानून का उल्लंघन: अयोध्या के विवादित स्थल पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी जिसे कार सेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था. विवादित स्थल गिराये जाने की घटना के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गये थे. इसी के बाद मामले ने ज्यादा तुल पकड़ा. पहले भी कई बार लड़ाईयां हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में कहा कि बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाना कानून का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएसआई यह नहीं बता पाया कि क्या मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी.


4. ASI भी बना आधार: पुरातात्विक साक्ष्य को एक विचार के तौर पर पेश करना, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के लिये बहुत नुकसानदेह होगा. न्यायालय ने कहा कि तथ्य यह है कि ढहाये गये ढांचे के नीचे एक मंदिर था जिसे एएसआई ने प्रमाणित किया है. नीचे का ढांचा कोई इस्लामिक ढांचा नहीं था. एएसआई ने हालांकि यह साबित नहीं किया कि मस्जिद निर्माण के लिये मंदिर को ढहाया गया.


5. शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा की दलील खारिज- सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में कहा कि निर्मोही अखाड़ा राम लला की मूर्ति का उपासक या अनुयायी नहीं है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि निर्मोही अखाड़े का दावा कानूनी समय सीमा के तहत प्रतिबंधित है. 7. सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड की भी अपील खारिज की. संविधान पीठ ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार यह सरकारी जमीन है.


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6. पीठ ने कहा कि भीतरी और बाहरी बरामदे का कब्जा ट्रस्ट के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी या इस तरह की गठित किसी अन्य संस्था को सौंप दिया जाना चाहिए. पीठ ने केंद्र से यह भी कहा कि, यदि उचित समझे, इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व दिया जाये.


7. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिन्दू यह साबित करने में सफल रहे हैं कि विवादित ढांचे के बाहरी बरामदे पर उनका कब्जा था और उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड अध्योध्या विवाद में अपना मामला साबित करने में विफल रहा है.


8. जिन्होंने सुनाया फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने आज सुबह 10 बजकर 30 मिनट पर फैसला सुनाना शुरू किया. संविधान पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस ए अब्दुल नजीर मौजूद थे.


9. किस मामले पर आया फैसला: संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों (सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान) के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी.


10. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत तमाम नेताओं ने प्रतिक्रिया दी और सभी ने फैसले का स्वागत किया. वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि हम पहले पूरे फैसले को पढ़ेंगे, फिर आगे का फैसला लेंगे. वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मैं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से सहमत हूं. ओवैसी ने कहा है कि हम हक के लिए लड़ रहे थे. हमें पांच एकड़ जमीन नहीं चाहिए. हमें किसी की भीख की जरूरत नहीं है. हमें खैरात नहीं चाहिए. पर्सनल लॉ बोर्ड को जमीन लेने से इनकार कर देना चाहिए.


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