नई दिल्ली: गेट रेडी....जुपीटर इस ऑन द मूव. संसद भवन के कमरा नंबर 10 के बाहर वायरलैस सेट्स पर कौंधता यह संदेश कई बार सुनने को मिलता था जब प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी की आवाजाही होती थी. प्रधानमंत्री की सुरक्षा करने वाले विशेष सुरक्षा दस्ते यानी एसपीजी के बीच ‘जुपिटर’ अटल बिहारी वाजपेयी का कॉल कोड था. यह विडंबना ही है बृहस्पतिवार 16 अगस्त 2018 को यह जुपिटर इस दुनिया को छोड़ कर चला गया.
हालांकि भारतीय राजनीति के इस विशालमना 'जुपिटर' का गरुत्वाकर्षण ही था कि उनके साथ संपर्क में आने वाला, साथ काम करने वाला और उनकी टीम में जगह पाने वाला, हमेशा के लिए उनसे जुड़ गया. प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी की टीम में उनके प्रायवेट सेक्रेटरी रहे भारतीय विदेश सेवा अधिकारी अजय बिसारिया कहते हैं कि उनके पद छोड़ने के बाद भी उन्हें देखने जाने औऱ उनसे मिलने का सिलसिला जारी रहा. बीते दिनों अपनी भारत आया तो उन्हें एम्स में देखने भी गया था.
पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त के तौर पर तैनात बिसारिया ने अपनी फेसबुक पोस्ट में अपने पूर्व बॉस को भावुक विदाई देते हुए लिखा- गुडबाय सर, हमने देश का एक बेहतरीन सपूत खो दिया जो 21वीं सदी के भारत की सोच का साकार स्वरूप था. वो सहमति की राजनीति में विश्वास रखने वाले थे. सुनने की कला उनका मजबूत गुण था. वो एक मजबूत भारत चाहते थे और अगर वह शांति के लिए हो तो किसी भी जोखिम को छोटा मानते थे. पांच बरस तक वाजपेयी की टीम में काम कर चुके बिसारिया के शब्दों में, वो न केवल दुनियाभर में सम्मान पाने वाले वैश्विक नेता थे बल्कि एक शानदार बॉस थे जिनका स्पर्श सुकून देने वाला होता था.
अपने टीम के प्रति वाजपेयी के स्नेह की सराहना के ऐसे ही सुर उनके साथ पीएमओ में रहे वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार शर्मा के शब्दों में भी सुनाई देते हैं. वाजपेयी की मीडिया टीम में रहे शर्मा के शब्दों में उन जैसा शब्दों का जादूगर अक्सर निरुत्तर कर देता था. उन जैसे प्रखर वक्ता के लिए भाषण लिखना अपने आप में चुनौती भी होता था.
..तो क्या जरूरी है हर बार यही कहा जाए?
देर रात वाजपेयी निवास 6A कृष्णमेनन मार्ग पर मौजूद उनके पूर्व सहयोगी शर्मा ने एबीपी न्यूज से बातचीत में एक वाकया सुनाते हुए राजकुमार शर्मा ने बताया, एक बार किसी कार्यक्रम के लिए हमने उनका भाषण लिखा. निर्धारित व्यवस्था के मुताबिक भाषण का मसौदा उन्हें दिखाया गया. समय सुविधा थी सो प्रधानमंत्री के साथ भाषण के मसौदे पर चर्चा के लिए सीधे-संवाद का मौका भी मिल गया. मसौदे में किसी व्यक्ति विशेष के बारे में लिखी गई बात पर उन्होंने पूछा, ऐसा क्यों लिखा है आपने? जवाब में उनके पुराने भाषणों का हवाला देते हुए मैंने यह समझाने का प्रयास किया कि वो पहले भी संबंधित व्यक्ति के बारे में ऐसा कहते रहे हैं. वाजपेयी ने मुस्कुरा कर कहा, तो क्या जरूरी है कि हर बार वही कहा जाए? उनका जवाब बताने को काफी था कि संबंधित व्यक्ति के बारे में उनकी राय बदल चुकी है.
शर्मा के शब्दों में, "पांचजन्य अखबार में अपने पूर्व संपादक रहे अटल जी का मूड देख मैंने उन्हें कहा कि यदि उचित समझें तो आप ही बता दें. इतने पर उन्होंने कुछ ही पलों में भाषण में लिखे 13 वाक्यों को तीन वाक्यों में समेट कर मेरे हाथों में थमा दिया."
हिंदी में बात हो तो यह नौबत ही न आए...
एक अन्य घटना का जिक्र करते हुए राजकुमार शर्मा बताते हैं कि शब्दों के जादूगर अटलजी के पास उनसे खेलने की अद्भुत कला थी. घटना हिंदी भाषा से जुड़े एक कार्यक्रम की है जहां वाजपेयी भी मौजूद थे. उनके भाषण का मौका आया तो उन्होंने कहा, हिंदी पर बहुत बात होती है, मगर हिंदी में कम बात होती ह. अगर हिंदी में बात होने लग जाए तो यह नौबत ही न आए. सरल शब्दों में कही वाजपेयी की यह बात बहुत गहरे अर्थ रखने वाली थी.
बीजेपी मुख्यालय में उनके अंतिम दर्शनों की गहमा-गहमी के बीच नम आंखों और दबी आवाजों में कई बड़े नेता तो अनेक छोटे कार्यकर्ता यह कहते नजर आए कि उनके जैसा नेता हो नहीं सकता. उनकी अंतिम यात्रा में लगे पार्टी के एक कार्यालय पदाधिकारी यह बताते हुए भावुक हो गया कि एक बार पार्टी कार्यकारिणी में एक शीर्षस्थ नेता होने के बावजूद वाजपेयी ने किस तरह उसे अपने करीब बैठाकर भोजन कराया.
पूरे राजकीय सम्मान से वाजपेयी के अंतेष्टि कार्यक्रम के इंतजामों में लगे एक सरकारी अधिकारी के पास भी वाजपेयी की सहजता के किस्से सुनाते नहीं थक रहे. एक छोटे अधिकारी ने बताया कि एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ पीएमओ पहुंचे औऱ परिचय कराया गया तो जिंदादिल नेता वाजपेयी से बड़ी गर्मजोशी से उनका हाथ थाम लिया. वाजपेयी हाथ थामे हालचाल पूछते रहे तो वहीं इस सरकारी कर्मचारी की जान इस बात में सूखी जा रही थी कि कहीं वरिष्ठ अधिकारी इसे उसकी हिमाकत न समझ ले. हालांकि एक प्रधानमंत्री और राजनेता के तौर पर उनका यही स्पर्श उन्हें जन नायक बनाता है.