असम के उदलगुरी जिले में हाथियों की लगातार हो रही मौतों ने वन अधिकारियों और वन्यजीव विशेषज्ञों में गहरी चिंता पैदा कर दी है. भूटान सीमा के पास स्थित यह इलाका हाथियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण कॉरिडोर माना जाता है. पिछले 20 दिनों में यहां चार जंगली हाथियों की मौत हो चुकी है-तीन की मौत करंट लगने से और एक के जहर खाने की आशंका है. पिछले एक साल में कुल 14 हाथियों की मौत हुई है, जिनमें से 10 इलेक्ट्रोक्यूशन से मारे गए. अधिकारियों के मुताबिक, बढ़ता अतिक्रमण, घटते जंगल और इंसान-हाथी संघर्ष तेजी से संकट को गहरा कर रहे हैं.

Continues below advertisement

मौतों के पीछे की वजह क्या है?उदलगुरी के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) मुस्तफा अली अहमद ने बताया कि हाल की अधिकांश मौतें उन क्षेत्रों में हुई हैं, जहां स्थानीय लोग धान की खेती करते हैं. उन्होंने कहा, 'लोग हाथियों को खेतों से दूर रखने के लिए बिजली के तार लगाते हैं, जिनके कारण ऐसे हादसे होते हैं. कई बार वे खेतों के चारों ओर लगाए तार हटाते भी नहीं.'

अहमद ने बताया कि लोग सरकारी ग्रिड से अवैध रूप से बिजली खींचकर मेटल के तार बिछा देते हैं, जिससे हाथियों की जान चली जाती है. उन्होंने बताया कि 25 अक्टूबर, 30 अक्टूबर, 2 नवंबर और 3 नवंबर को हुई चार घटनाओं में से तीन-मैलेली टी एस्टेट, भूटियाचांग टी गार्डन और बसुगांव-की मौतें करंट लगने से हुई थीं. ताजा मामला अमजुली हातिखुली का है, जहां एक छह साल का हाथी संदिग्ध जहरीला पदार्थ खाने के बाद मृत पाया गया. 2 नवंबर की घटना में एक हाथी करंट वाले तारों में उलझा हुआ मिला. 30 अक्टूबर को 40 वर्षीय दांत वाला हाथी भी भूटियाचांग टी गार्डन में करंट से मारा गया. वन विभाग ने नोनाइपारा के सुनील एक्का और बसुगांव के रतन चौहान को गिरफ्तार किया है. इसके अलावा पांच अन्य लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू की गई है.

Continues below advertisement

क्यों बढ़ती हैं ऐसी घटनाएं?DFO अहमद ने कहा कि हाथी भोजन की तलाश में जब जंगल छोड़कर अतिक्रमित क्षेत्रों में जाते हैं, तो इस तरह की घटनाएं बढ़ जाती हैं. उन्होंने कहा कि 'अतिक्रमण बढ़ने से हाथियों के पारंपरिक रास्ते तेजी से सिकुड़ रहे हैं.' उन्होंने बताया कि अतिरिक्त स्टाफ, वाहन और हथियार मांगे गए हैं, लेकिन सबसे जरूरी है-अतिक्रमित जंगलों को खाली कराना. असम के प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट्स (वाइल्डलाइफ) विनय गुप्ता ने कहा कि जिस तरह गोलपाड़ा में बड़े पैमाने पर बेदखली से हाथी संघर्ष कम हुआ था, वैसा ही उदलगुरी में भी करने की जरूरत है. पुराने हाथी कॉरिडोर पर कब्जा, रास्ते भटके झुंडविशेषज्ञों का कहना है कि हाथियों की मौत की जड़ें सिर्फ अतिक्रमण में नहीं, बल्कि उससे कहीं गहरी हैं. हाथी-मानव संघर्ष पर दो दशक से शोध कर रहे अनंत कुमार दास ने कहा कि उदलगुरी और भूटान की पहाड़ियों को जोड़ने वाला प्राकृतिक कॉरिडोर सदियों से हाथियों का रास्ता रहा है, लेकिन अब इसका बड़ा हिस्सा इंसानी बस्तियों और खेतों से घिर गया है.

उन्होंने बताया,'हाथी बेहद समझदार और सामाजिक जानवर हैं. वे उसी रास्ते का उपयोग करते हैं, जिसका इस्तेमाल उनके पूर्वज 50–100 साल पहले करते थे, लेकिन अब वे मार्ग बदल गए हैं और इंसानों ने जगह घेर ली है. ऐसे में झुंड भटक जाते हैं.'

भूटान की पहाड़ियों से हर साल जुलाई से सर्दियों तक 100–150 हाथियों के झुंड आते हैं. रास्ते संकरे और बिखरे हुए होने के कारण ये बड़े झुंड 10–12 के छोटे समूहों में बंट जाते हैं. दास ने कहा कि हाथियों की दिशा पहचानने की क्षमता मजबूत होती है, लेकिन जब उनके पुराने रास्ते खेतों या बस्तियों से घिर जाते हैं, तो वे भ्रमित हो जाते हैं. हर झुंड की अगुवाई एक वरिष्ठ मादा करती है, जिसे स्थानीय भाषा में धनरी कहा जाता है. वह संघर्ष से बचने की कोशिश करती है, लेकिन जब जंगल सिकुड़ जाते हैं, तो युवा हाथी राह भटक कर आक्रामक हो जाते हैं. दास ने बताया कि 2006 से अध्ययन के दौरान उन्होंने देखा कि अवैध बिजली के तारों की वृद्धि ने हाल के वर्षों में मौतों को कई गुना बढ़ा दिया है. उन्होंने कहा,'हमने हाथियों के प्राकृतिक मार्ग रोक दिए और अब हम उन्हें क्रूरता से मार रहे हैं. यह तुरंत रोकने की जरूरत है.'