Assam Assembly: असम विधानसभा में मुस्लिम विधायकों के लिए शुक्रवार (21 फरवरी) को मिलने वाली दो घंटे की 'नमाज ब्रेक' की परंपरा अब पूरी तरह खत्म कर दी गई है. विधानसभा के पिछले सत्र में इस फैसले को मंजूरी दी गई थी, लेकिन इसे मौजूदा बजट सत्र से लागू किया गया है.
इस फैसले पर असम की विपक्षी पार्टी एआईयूडीएफ (AIUDF) ने कड़ा ऐतराज जताया है. पार्टी के विधायक रफीकुल इस्लाम ने इसे "संख्या बल के आधार पर थोपा गया फैसला" करार दिया. उन्होंने कहा "असम विधानसभा में करीब 30 मुस्लिम विधायक हैं. हमने इस फैसले के खिलाफ अपना रुख साफ किया था, लेकिन बीजेपी के पास बहुमत है और वे इसे अपने हिसाब से लागू कर रहे हैं."
विधानसभा में नमाज व्यवस्था की मांग
कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुस्लिम विधायकों के लिए विधानसभा परिसर में ही नमाज अदा करने की व्यवस्था की जा सकती है. उन्होंने कहा "आज मेरी पार्टी के कई साथी और एआईयूडीएफ (AIUDF) के विधायक अहम चर्चा से चूक गए क्योंकि वे नमाज के लिए बाहर गए थे. चूंकि ये केवल शुक्रवार की विशेष प्रार्थना के लिए जरूरी है इसलिए इसके लिए एक उचित समाधान निकाला जा सकता है."
धर्मनिरपेक्षता के आधार पर लिया गया फैसला: स्पीकर
असम विधानसभा के स्पीकर बिस्वजीत दैमारी ने कहा कि इस फैसले को "संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को ध्यान में रखते हुए" लिया गया है. उन्होंने प्रस्ताव रखा था कि शुक्रवार को भी सदन की कार्यवाही बाकी दिनों की तरह सामान्य रूप से चले. विधानसभा की नियम समिति में ये प्रस्ताव पेश किया गया और सर्वसम्मति से इसे पारित कर दिया गया.
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने किया फैसले का स्वागत
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि ये परंपरा 1937 में मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला की ओर से शुरू की गई थी. उन्होंने कहा "ये फैसला प्रोडक्टिविटी को प्राथमिकता देता है और औपनिवेशिक दौर की एक और निशानी को हटाने का काम करता है."