नई दिल्ली: 'परंपरागत राजनीति' से अलग राजनीति का नारा देकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी (आप) पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या आप भी उसी कीचड़ में फंस गई है? दरअसल, आम आदमी पार्टी (आप) के दो नेताओं आतिशी मार्लेना और प्रवीण कुमार ने अपने नाम के आगे से सरनेम (उपनाम) हटा लिया है और एक पूर्व नेता आशुतोष ने दावा किया है कि उन्हें जबरदस्ती सरनेम लगाने के लिए कहा गया था. पार्टी सूत्रों ने नाम हटाने की वजह जातिगत समीकरण बताया है.
कल पत्रकार और आप से हाल ही में इस्तीफा देने वाले आशुतोष ने पार्टी प्रमुख केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि पत्रकारिता के 23 साल के करियर में कभी किसी ने मुझसे मेरी जाति या उपनाम नहीं पूछा. मैं हमेशा अपने नाम से जाना जाता था.
उन्होंने आगे कहा कि 2014 में जब मुझे लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया तो मुझे पार्टी वर्कर के बीच मेरे उपनाम के साथ उल्लेख किया गया. मैंने इसका विरोध किया था. मुझसे बाद में कहा गया था कि सर आप जीतोगे कैसे, आपकी जाति के यहां काफी वोट हैं.
आशुतोष के दावों के बाद अब खबर है कि 2015 में जंगपुरा से आम आदमी पार्टी (आप) विधायक प्रवीण कुमार ने अपने नाम से ‘देशमुख’ उपनाम हटा लिया था. अपने चुनावी हलफनामे में जंगपुरा के विधायक ने जिक्र किया कि उनका नाम प्रवीण कुमार है. 2015 के चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में भी यही नाम दिखा.
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पार्टी सूत्रों का कहना है कि देशमुख उपनाम हटाने का निर्णय काफी सोच समझकर किया गया क्योंकि इस उपनाम का प्रयोग मुख्यत: महाराष्ट्र के लोग करते हैं और कुमार सिख बहुल इलाके से चुनाव लड़ रहे थे. 2013 के चुनावों में सीट से सिख प्रत्याशी मनिंदर सिंह धीर जीते थे.
बहरहाल कुमार ने इससे इंकार किया. कुमार ने कहा, ‘‘मेरा उपनाम अब भी देशमुख है. मैं अपना नाम प्रवीण कुमार लिखता हूं. यह मेरे वोटर कार्ड पर है.’’
वहीं पिछले दिनों आप की पूर्वी दिल्ली दिल्ली सीट से लोकसभा प्रत्याशी आतिशी मार्लेना ने अपने नाम के आगे से मार्लेना हटा लिया था. पार्टी के लोगों का कहना है कि विपक्ष द्वारा इसे ‘ईसाई नाम’ करार दिए जाने के कारण उन्होंने उपनाम हटा लिए. सूत्रों ने कहा कि आप को चिंता थी कि बीजेपी उन्हें मतदाताओं के बीच ईसाई बताकर निशाना बना रही थी.
जाति-धर्म के नाम पर वोट की राजनीति देश में आम है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और चिंतक सवाल उठा रहे हैं कि जिस पार्टी के बनने का आधार जाति-धर्म नहीं बल्कि नई तरह की क्लीन राजनीति थी वो भी उसी कीचड़ में फंस गई.
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