भारतीय सेना ने वायुसेना के साथ मिलकर अरुणाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले हिमालयी इलाकों में एक बड़ा संयुक्त बहु-क्षेत्रीय सैन्य अभ्यास शुरू किया है. इस अभ्यास का उद्देश्य तीनों सेनाओं के बीच संयुक्त संचालन क्षमता, तालमेल और सटीक मारक क्षमता की जांच करना है. रक्षा अधिकारियों के अनुसार, यह अभ्यास 10 नवंबर से शुरू होकर 15 नवंबर तक चलेगा.

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उच्च पर्वतीय इलाके में युद्ध जैसी तैयारीअभ्यास की समीक्षा 3 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GoC) लेफ्टिनेंट जनरल अभिजीत एस. पेंढारकर ने की. उन्होंने इस दौरान सभी सेनाओं के बीच दिखाई गई बेहतरीन तालमेल और तैयारी की सराहना की. इस अभ्यास की शुरुआत उन्नत निगरानी प्रणालियों, जैसे हेलिकॉप्टर, UAV, सैटेलाइट संसाधन और विशेष बलों की टीमों  की तैनाती से हुई, ताकि दुश्मन की गतिविधियों पर हर दिशा से नजर रखी जा सके.

आधुनिक हथियारों से ‘सटीक वार’ की परीक्षालक्ष्य का पता लगने के बाद उन्हें लॉन्ग-रेंज रॉकेट सिस्टम, मीडियम आर्टिलरी गन, सशस्त्र हेलिकॉप्टर, स्वॉर्म ड्रोन, लॉइटरिंग म्युनिशन और कामिकाजे ड्रोन के जरिए निशाना बनाया जा रहा है. यह पूरा अभ्यास इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षेत्र में हो रहा है, जिससे सैनिकों की वास्तविक युद्ध स्थितियों में तत्परता की जांच की जा सके.

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‘पूर्वी प्रहार’ और ‘प्रचंड प्रहार’ पर आधारित अगला स्टेजयह अभ्यास पहले हुए ‘पूर्वी प्रहार’ (2024) और ‘प्रचंड प्रहार’ (2025) अभ्यासों का विस्तार है. इन अभियानों का उद्देश्य वायुसेना और थलसेना की संयुक्त रणनीति, कमांड सिस्टम और निगरानी क्षमताओं का परीक्षण करना था.

भारत की सामरिक शक्ति और तकनीकी बढ़त का प्रदर्शनसेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत ने बताया कि यह युद्धाभ्यास भारत की संयुक्त सैन्य क्षमता, सटीक संचालन और तकनीकी प्रभुत्व को दर्शाता है. इससे यह साबित होता है कि भारत अपनी सीमाओं पर उभरते खतरों का डटकर और निर्णायक रूप से जवाब देने की क्षमता रखता है.

इससे पहले भारतीय सुरक्षा बलों ने 3 नवंबर से त्रि-सेवा सैन्य अभ्यास ‘त्रिशूल’ की शुरुआत की थी. इस अभ्यास में भारतीय नौसेना, वायुसेना और थलसेना की प्रमुख इकाइयां शामिल थीं. यह अभ्यास राजस्थान, गुजरात और उत्तर अरब सागर के इलाकों में 3 से 7 नवंबर तक चला.