Arjun Ram Meghwal: कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शुक्रवार (9 फरवरी) को कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अभी उसकी क्षेत्रीय पीठों की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने यह बात प्रश्नकाल के दौरान सरकार की ओर से एक संसदीय समिति की उस सिफारिश को मान लिए जाने के बाद एक पूरक सवाल के जवाब में कही, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठ गठित किए जाने का जिक्र है. 


कानून मंत्री ने कहा कि कानून और कार्मिक मामलों की स्थायी समिति की सिफारिशें एक अलग चीज हैं, लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने कहा कि अभी इसकी कोई जरूरत नहीं है. संसद में बुधवार (7 फरवरी) को पेश एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठ होने के बारे में एक संसदीय समिति की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है, लेकिन यह भी ध्यान दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट इस विचार को निरंतर खारिज करती रही है और यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है.


सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठों सिफारिश की गई


कानून एवं कार्मिक मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने पहले न्यायिक प्रक्रिया और उसमें सुधार शीर्षक से एक रिपोर्ट दी थी. समिति ने इसकी सिफारिशों की क्रियान्वयन रिपोर्ट में कहा है कि उसकी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है. समिति ने पहले इस बात का संज्ञान लिया था कि सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठों की मांग न्याय तक पहुंच के लिए है, जो संविधान के तहत मौलिक अधिकार है.


क्षेत्रीय पीठ बनने से होता ये फायदा


लंबे समय से यह मांग रही है कि सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठ हो, ताकि न्याय तक लोगों की पहुंच हो सके. समिति ने कहा कि इस कदम से एक सकारात्मक बात यह होगी कि न्यायपालिका पर मुकदमों का दबाव कम होगा और मुकदमे पर होने वाला खर्च कम होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति अपने इस मत पर अभी तक कायम है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 130 का प्रयोग कर देश में पांच या छह स्थानों पर पीठ बना सकती है.


सरकार ने कहा कि इस मामले को दो बार तत्कालीन अटार्नी जनरल (जी ई वाहनवती और मुकुल रोहतगी) के पास भेजा गया, लेकिन दोनों ने ही इस प्रस्ताव के विरूद्ध सुझाव दिया. इस मामले को सुप्रीम कोर्ट की ओर से 2016 में संविधान पीठ के पास भेजा गया था. यह मामला वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.


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