नई दिल्ली: दुनिया में सबसे अधिक जहरीली हवा फैलाने वाली दिल्ली की यह हालत करने के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? समूचे देश की बात करें,तो वायु प्रदूषण के मामले में भारत उस खतरनाक मुकाम तक जा पहुंचा है कि यहां पैदा होने वाला हर नवजात शिशु अपनी पहली सांस के साथ ही फेफड़े के संक्रमण की बीमारी लेकर बड़ा हो रहा है. लेकिन बात देश की हो या राज्यों की, सरकारों को खतरे की घंटी का ये अलार्म या तो सुनाई नहीं देता या फिर वे इसे न सुनने का नाटक करती हैं.
अकेले साल 2019 में ही वायु प्रदूषण की वजह से 16 लाख 70 हजार लोगों की मौत हुई है. लेकिन हैरानी के साथ ही कितनी अफ़सोसजनक बात है कि किसी भी सरकार ने इसकी रोकथाम को अपनी प्राथमिकता कभी नहीं बनाया. चुनावों में लोगों को फ्री लेपटॉप, साइकिल और राशन देने का वादा करने वाली किसी भी राजनीतिक पार्टी ने कभी भी वायु प्रदूषण को न तो चुनावी मुद्दा बनाया और न ही यह बताया कि सत्ता में आने पर इससे होने वाली मौतों को को वे कैसे रोकेंगे. वजह साफ है कि सभी दलों को लगता है कि ये वोट दिलाने वाला मुद्दा नहीं है. दुर्भाग्यवश अन्य विकसित देशों की तरह भारत में यह गंभीर मसला आज तक जन आंदोलन का रुप भी नहीं ले पाया कि साफ-सुथरी हवा में सांस लेना लोगों का बुनियादी अधिकार है और इसकी जिम्मेदारी देश के साथ राज्य सरकारों की भी है.
इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ICMR ने पिछले साल जारी की अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत में साल 2019 में 16.7 लाख लोगों की मौत के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 1990 से 2019 तक 64 फ़ीसदी की कमी आई है लेकिन इसी बीच हवा में मौजूद प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 115 फ़ीसदी का इज़ाफा हुआ है.
आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव के मुताबिक इस अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि वायु प्रदूषण फेंफड़ों से जुड़ी बीमारियों के चालीस फीसदी मामलों के लिए जिम्मेदार है. वहीं, इस्केमिक हार्ट डिज़ीज, स्ट्रोक, डायबिटीज़ और समय से पहले पैदा होने वाले नवजात बच्चों की मौत के लिए वायु प्रदूषण 60 फ़ीसदी तक ज़िम्मेदार है.
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब किसी रिपोर्ट में ये बताया गया हो कि वायु प्रदूषण हानिकारक और जानलेवा है. लेकिन यह पहली बार है जब सरकार ने वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों और आर्थिक नुकसान के सटीक आंकड़े जनता के सामने रखे हैं.
रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगर कुछ न किया गया तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें, बीमारियां और आर्थिक नुकसान की वजह से भारत का साल 2024 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना टूट सकता है.
वायु प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ फिलहाल देश में कोई सख्त कानून नहीं है जिसके कारण उद्योगों,बिल्डरों से लेकर शहरों की नगर निगमों और PWD के अफसरों तक में न कोई खौफ़ है और न ही जवाबदेही तय करने का कोई पुख्ता सिस्टम है.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इस बारे में थोड़ा सख्त कानून लाने जा रही है. इससे संबंधित बिल को कैबिनेट से मंजूरी मिलने का इंतज़ार है जिसके बाद उसे संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाएगा. वहां से पारित होने के बाद ही नया कानून वजूद में आयेगा.
दरअसल, 1998 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद प्रदूषण की रोकथाम के लिए बनाये गए प्राधिकरण को भंग कर दिया गया है. उसके स्थान पर पांच महीने पहले एक अध्यादेश के जरिये वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन किया गया है. चूंकि अध्यादेश की अवधि खत्म हो चुकी है, लिहाजा सरकार संसद में बिल पारित कराकर इसे कानूनी शक्ल देगी. इसमें आयोग को कानूनी अधिकार दिए गए दिये हैं जिसके तहत वायु प्रदूषण फैलाने वाले उद्दोगों पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना व पांच साल की सजा का प्रावधान है. आयोग के फैसले को किसी सिविल कोर्ट में नहीं बल्कि सिर्फ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी NGT में चुनौती दी जा सकती है.
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