नई दिल्ली: भारत पर राज करने वाले मुगल शासक अकबर के बारे में आप कितना जानते हैं. बरसों की रिसर्च के बाद 'अकबर' पर एक एतिहासिक उपन्यास लिखा गया है. बुधवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशन सेंटर में एबीपी न्यूज़ के वरिष्ठ पत्रकार शाज़ी ज़माँ के इस ऐतिहासिक उपन्यास 'अकबर' का लोकार्पण हुआ. इस मौके पर इतिहासकार मुकुल केशवन ने शाज़ी ज़माँ से अकबर उपन्यास से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों पर बातचीत की करीब दो दशकों की रिसर्च और पिछले 8 सालों के लेखन के बाद शाज़ी ज़माँ के उपन्यास अकबर ने आकार लिया तो इसकी खासियत यही है कि इसका एक भी तथ्य ऐसा नहीं जो ऐतिहासिक रूप से सत्य न हो. अकबर उपन्यास की खासियत इसकी लेखनी में है. लॉन्च के दौरान उन्होंने बताया, 'अकबर की मनस्थिति का विश्लेषण है. घटनाओं से पहले अकबर के दिल में क्या क्या हुआ वो खोज करने की कोशिश की.'
शाज़ी ज़माँ के इस एतिहासिक उपन्यास को हिंदी के मशहूर प्रकाशक राजकमल ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक छापा है जिससे इस उपन्यास को खास अंदाज मिल गया.
शाज़ी ज़माँ के इस उपन्यास में अकबर की रुहानी कैफ़ियत और विभिन्न धर्मों के प्रति उसके नजरिये को आधिकारिक स्रोतों के आधार पर विस्तारित किया गया है. सुलह-ए-कुल और दिन-ए-इलाही के सम्बन्ध में भी कई नए और रोचक तथ्य इस उपन्यास में जाहिर हुए हैं. इसके लावा, कब ऐसा हुआ कि बादशाह अकबर को लंगोट में ही अपने कमरे से बाहर आना पड़ा और फ़िर उन्होंने अपने दूध जात भाई को कौन सी गाली दी यह सब भी इस उपन्यास का हिस्सा है.
"पूरे चाँद के नीचे... ज़मीन से चालीस फिट की ऊँचाई पर आकाश दिया जल रहा था.... जो अवाम के लिए यह संकेत था की बादशाह सलामत हैं और सलामत रहेंगे." इसी टेक के साथ शाज़ी ज़माँ का उपन्यास अकबर कहानी दर कहानी आगे बढ़ता है. शिल्प के रूप में, दिखाया गया है कि बादशाह अपने पचास हजार सिपाहियों और इससे भी बड़े लश्कर के साथ आगे बढ़ते वक्त फिलहाल एक शिकार के पड़ाव पर हैं , बादशाही खेमा लगा हुआ है और बादशाह सलामत अकबर जन्नत मकानी बाबर और जन्नत आशियानी हुंमायू के किताबों में दर्ज किस्से सुन रहे हैं. और इन्हीं किस्सों के मार्फ़त शाज़ी ज़माँ वो सब कुछ सुना देते हैं जिसे वो बड़े जतन से 'बेहद बिखरे ऐतिहासिक साक्ष्यों से' चुन-सिरज के पाठकों के लिए लाए हैं.
अकबर के चरित्र को खोलने के लिए शाज़ी ज़माँ ने अकबर की कैफ़ियत के एक खास क्षण में अकबर को पकड़ा है. इस कैफ़ियत को अकबर के दरबारी कलम नवीसों ने हालत-ए-अजीब की संज्ञा दी है. ये मन की वो दशा है जिसमें बादशाह अकबर कुछ अनर्गल प्रलाप करते हुए नज़र आते हैं. अकबर के मन की इस दशा को समझने के लिए उन्होंने ऑक्सफोर्ड के मनोचिकित्सकों तक से बात की और फ़िर भी एक उपन्यासकार के नाते ये समझा कि हर ऊँचे पाए के किरदार में इस किस्म की कैफ़ियत आती है क्योंकि उसकी सोच सामान्य फर्मों से ज़रा हट के भी होती है.
बादशाह अकबर को कई तरह से पहले भी जाना था. इस पुस्तक में उत्सुकता थी कि यहाँ अकबर को किस कोण, किन नए बिंदुओं से देखा जाएगा. सो इस उपन्यास में ऐसे नए नुक्तों से अकबर को देखना वाकई सुखद है. शाज़ी ज़माँ ने अकबर को ज्योतिष कथनों के माध्यम से जलालुद्दीन की कुंडली से निकलता हुआ दिखाया. यह भी वाकई नया और मेहनती प्रयोग है क्योंकि इसके पीछे ज्योतिष का रुझान नहीं बल्कि अकबर के समकालीन ऐतिहासिक स्रोतों की छानबीन से निकले तथ्य हैं जो एक साथ एक जगह जमा हो कर कदाचित पहली बार मुखर हो पाए हैं.
शाज़ी ज़माँ के गहरे शोध के चलते अकबर और उससे जुड़े चरित्रों की वो तफ़सीलें भी यहाँ मिल जाती हैं जो एक साथ कहीं और नहीं मिलतीं. मसलन बैराम खान के बारे में और उनके हज से पहले मार दिये जाने की जितनी तफसील यहाँ है मुझे कहीं और एक साथ देखने को नहीं मिली.
किसी भी फिल्म या उपन्यास का मज़ा तब आता है जब लेखक उस दौर को ज्यों का त्यों सामने ला दे. पाठकों के लिए संतोष की बात है कि इस काम को करने में टीवी के माहिर पत्रकार शाज़ी ज़माँ बिल्कुल नहीं चूके हैं. अकबर की कालीन पर क्या डिजाइन बनी थी या फ़िर हुंमायू को शाह तस्माप ने कितने सौ तरह के शर्बत पेश किए सब ब्यौरा आपको इस उपन्यास में मिलेगा. वाद्य यंत्रों से लेकर कपडों की किस्मों के इतने नाम मिलेंगे कि कोई चाहे तो पूरी फिल्म खड़ी कर ले.
एक बादशाह की शान में दूसरा बड़ा शासक क्या-क्या करता था, अपने इलाके से हो कर यात्रा करते हुए बादशाह की आगवानी कैसे की जाती थी इसका विस्तॄत और रोचक वर्णन उपन्यास में आया है.
कम लोग जानते होंगे की कल्ला मीनार किसे कहते हैं ! मुग़ल बादशाह जब कोई जंग जीतते थे तो मारे गए दुश्मनों के सर को गिनती कर उन सरों से एक ऊँची मीनार बनवाते थे जिसे कल्ला मीनार कहते थे. जैसे अकबर ने एक फतह के बाद पाँच हज़ार सरों की कल्ला मीनार बनवाई. उपन्यास ऐसे रोचक ऐतिहासिक तथ्यों से भरा पड़ा है.
अंत में, शाज़ी ज़माँ की ये खूबी है कि वो अकबर पर सब कुछ कह देने का अंदाज़ नहीं अपनाते बल्कि अपने पात्र के प्रति इतनी उत्सुकता जगा जाते हैं कि लगता है यह उपन्यास अकबर पर एक और आला दर्जे का उपन्यास लिखे जाने की गुंजाइश छोड़ जा रहा है.