गाजियाबाद: आरूषि हत्याकांड में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरुषि के माता पिता को बरी कर दिया. बावजूद इसके आज भी तलवार दंपत्ति की रिहाई मुश्किल है. तलवार दंपत्ति के वकील हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी आज गाजियाबाद कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट रेणु यादव के सामने पेश करेंगे और उनसे जेल से रिहाई के लिए रिलीज ऑर्डर जारी करने की अपील करेंगे.


छुट्टियों के दिन कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट बैठते हैं हालांकि गाजियाबाद में तलवार दंपत्ति के वकीलों का कहना है कि रिमांड मजिस्ट्रेट को जेल से रिहा करने का अधिकार नहीं है. जिस कोर्ट का केस है वहां से ही रिहाई के कागजात जारी होंगे. तलवार दंपत्ति के वकीलों को हाईकोर्ट के आदेश की सर्टीफाइड कॉपी शुक्रवार शाम को मिल गई थी.


वकील आदेश की कॉपी इलाहाबाद से लेकर सड़क के रास्ते निकले हैं. इस दोहरे हत्याकांड के सिलसिले में सीबीआई अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद तलवार दंपत्ति नवंबर 2013 से डासना जेल में बंद हैं. बीते गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलवार दंपत्ति को मामले में बरी कर दिया था. अदालत ने कहा था कि उपलब्ध साक्ष्य और हालात दोनों ही उन्हें दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.


गाजियाबाद की सीबीआई अदालत ने 28 नवंबर 2013 को तलवार दंपत्ति को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बहरहाल, तलवार दंपत्ति को बरी किए जाने के साथ ही एक बार फिर यह सवाल उठता है कि आखिर 14 वर्षीय आरुषि और 45 वर्षीय हेमराज की हत्या किसने की है? जस्टिस बीके नारायण और न्यायमूर्ति एके मिश्रा की पीठ ने तलवार दंपत्ति की अपील पर सीबीआई अदालत का आदेश निरस्त करते हुए कहा था कि इस बात की मजबूत संभावना है कि घटना को किसी बाहरी व्यक्ति ने अंजाम दिया है.


क्या है हाईकोर्ट का फैसला?
हाईकोर्ट ने सीबीआई के सबूतों को नाकाफी माना और सबूतों के अभाव में तलवार दंपत्ति को कातिल मानने से इनकार कर दिया. जस्टिस बी के नारायण और जस्टिस ए के मिश्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा है कि सीबीआई की दलील में दम नहीं है. वारदात के वक्त घर में सिर्फ राजेश और नुपूर तलवार थे इसलिए हत्या इन्हीं लोगों ने की ये साबित नहीं होता. हत्याकांड में कोई ठोस सबूत नहीं है, तलवार दंपति को संदेह का लाभ दिया जाता है.


सीबीआई के जज पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने परिस्थित जन्य साक्ष्यों के आधार पर ही फैसला सुना दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि हत्या की वजह को लेकर स्थिति स्पष्ट ही नहीं है. सीबीआई अदालत ने कानून के बुनियादी नियम की अनदेखी की है.


हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि मानो जज को कानून की सही जानकारी तक नहीं थी, इसी वजह से उन्होंने कई सारे तथ्यों को खुद ही मानकर फैसला दे दिया जो थे ही नहीं. ट्रायल जज एक गणित के टीचर की तरह व्यवहार नहीं कर सकता. ट्रायल जज ने L 32 में जो हुआ उसे एक फिल्म निर्देशक की तरह सोच लिया.


अब सीबीआई क्या करेगी?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सीबीआई ने कहा है कि पूरा फैसला पढ़ने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट में अपील पर फैसला करेंगे. आरुषि हत्याकांड की जांच
सीबीआई ही कर रही थी. जब आरुषि केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी उस वक्त अरुण कुमार ने सीबीआई की जांच टीम का नेतृत्व किया था. अरुण कुमार की फैसले पर प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने कहा है कि तलवार दंपति को निर्दोष बताने वाले सबूत कोर्ट में पेश नहीं किए गए थे, अपने हिसाब से सबूत के मायने लगाए गए.


सीबीआई कोर्ट ने सुनाई थी उम्रकैद की सजा
सीबीआई की विशेष अदालत ने राजेश-नुपुर तलवार दंपत्ति को अपनी बेटी आरुषि और घरेलू नौकर हेमराज के कत्ल का दोषी पाया था और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी. खंडपीठ ने तलवार दंपति की अपील पर सात सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और फैसला सुनाने की तारीख 12 अक्टूबर तय की थी.


सबसे चर्चित मर्डर केस?
पूरे देश को हिलाकर रख देने वाले इस केस की कहानी 2008 में शुरू हुई थी. 16 मई 2008 को नोएडा के जलवायु विहार इलाके में 14 साल की आरुषि का शव बरामद हुआ. अगले ही दिन पड़ोसी की छत से नौकर हेमराज का भी शव मिला.


केस में पुलिस ने आरुषि के पिता राजेश तलवार को गिरफ़्तार किया. 29 मई 2008 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. सीबीआई की जांच के दौरान तलवार दंपति पर हत्या के केस दर्ज हुए.


मर्डर केस में सभी पक्षों की सुनवाई के बाद सीबीआई कोर्ट ने 26 नवंबर 2013 को नुपुर और राजेश तलवार को उम्रकैद की सजा सुनाई. सीबीआई के फैसले के खिलाफ़ आरुषि की हत्या के दोषी माता-पिता हाई कोर्ट गए और अपील दायर की. राजेश और नुपुर फिलहाल गाजियाबाद की डासना जेल में सजा काट रहे हैं.