नई दिल्ली: आज भारतीय वायुसेना का 86वां स्थापना दिवस है. हाल के दिनों में वायुसेना से जुड़ी दो बड़ी खबरों ने सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है. पहली है रफाल लड़ाकू विमान सौदे से जुड़ा विवाद और दूसरी रूस से खरीदें जाने वाले एयर-डिफेंस मिसाइल सिस्टम, एस-400. रफाल लड़ाकू विमान को भारत आने में अभी पूरा एक साल है जबकि एस-400 को वायुसेना में शामिल होने में कम से कम दो साल लगेंगे. ऐसे में भारतीय वायुसेना की टू-फ्रंट वॉर यानि चीन और पाकिस्तान से एक साथ दो मोर्चों पर लड़ने की क्या तैयारी है ये जानने और समझने के लिए एबीपी न्यूज पहुंचा भारतीय वायुसेना के फ्रंट लाइन एयरबेस, आदमपुर में.

वायुसेना की पश्चिमी कमान के अंतगर्त आने वाले आदमपुर फ्रंट-लाइन एयरबेस से चीन और पाकिस्तान यानि दो-दो मोर्चों पर एक साथ निपटने की तैयारी चल रही है. पंजाब के जालंधर शहर के करीब आदमपुर बेस से पाकिस्तान की दूरी महज 100 किलोमीटर है और चीन से दूरी करीब 280 किलोमीटर है.

एबीपी न्यूज की टीम जब सबसे पहले भारतीय वायुसेना के फ्रंट लाइन एयरबेस, आदमपुर पहुंची तो वहां लड़ाकू विमान अपने ऑपरेशन्स की तैयारी कर रहे थे. एक बाद एक फाइटर जेट्स पंजाब के आदमपुर एयरबेस के रनवे से टेक ऑफ और लैंडिंग कर रहे थे. आसमान में पहुंचकर ये लड़ाकू विमान मैन्युवर यानि दुश्मन के विमानों को मार गिराने की ट्रैनिंग ले रहे थे. जमीन से लेकर आसमां तक इन लड़ाकू विमानों की गड़गड़ाहट कान फोड़ने जैसी थी.

लेकिन आदमपुर एयरबेस में सबसे हैरान कर देने वाली थी एक धनुर्धारी की पीतल की मूर्ति. किसी फाइटर एयरबेस पर हाथों में धनुष लिए योद्धा थोड़ा अजीब सा लग सकता था. लेकिन इससे पहले ही यहां तैनात मिग-29 लड़ाकू विमान की स्कॉवड्रन के कमांडिंग ऑफिसर यानि सीओ, ग्रुप कैप्टन टी एस वैद्य ने बताया कि उनके स्कॉवड्रन को 'ब्लैक आर्चर्स' के नाम से जाना जाता है और इसलिए हाथों में धनुष लिए ये धनुर्धर उनकी स्कॉवड्रन का प्रतीक चिंह है.

ब्लैक आर्चर्स का आदर्श-वाक्य है 'कृमाणी व्यापत धनु' जिसे कालिदास के महान काव्य, 'शाकुंतलम' से लिया गया है. इसका अर्थ है धनुष के कमान को हमेशा खींच कर रखना ताकि बाण को कभी भी चलाने के लिए तैयार रहा जाए. ग्रुप कैप्टन वैद्य के मुताबिक, उनकी स्कॉवड्रन अरब आदर्श वाक्य की तरह ही हमेशा ऑपरेशन्ली तैयार रहती है. इस यौद्धा का बाण जिस दिशा में रहता है उसे जानकार आप हैरान रह जायेंगे. धनुष पर चढ़े तीर की दिशा हमेशा पाकिस्तान की तरफ रहती है. क्यों कि पाकिस्तान की सीमा यहां से महज़ 100 किलोमीटर है.

ब्लैक आर्चर्स के आदर्श वाक्य की तरह ही इस स्कॉवड्रन में तैनात मिग-29 फाइटर एयरक्राफ्ट हमेशा ऑपरेशन्ली तैयार रहते हैं. आदमपुर एयरबेस पर मिग-29 लड़ाकू विमानों की दो स्कॉवड्रन तैनात हैं. एक ब्लैक आर्चर्स और दूसरी का नाम है ट्राइडेंट यानि त्रिशूल. ब्लैक आर्चर्स का आदर्श-वॉक्य अगर हमेशा ऑपरेशन्ली तैयार रहना है तो ट्राइडेंट का है ' विजयाय अमोघाशास्त्र' यानि दुश्मन पर विजय पाने वाला हथियार. इन दोनों स्कॉवड्रन में करीब करीब 36 लड़ाकू विमान हैं. इन मिग-29 लड़ाकू विमानों से ही भारतीय वायुसेना टू-फ्रंट यानि चीन और पाकिस्तान से एक साथ दो मोर्चों पर लड़ने के लिए तैयार है.

मिग-29 लड़ाकू विमानों को भारतीय वायुसेना ने 80 के दशक में रूस से खरीदा था. ये भारतीय वायुसेना का पहला सुपरसोनिक विमान था और आज भी सुखोई फाइटर जेट्स के तरह ही एयर-सुपीरियोरिटी की जिम्मेदारी संभलता है. अपने हथियारों और मिसाइलों से लिए होकर जब भी मिग-29 आसमान में उड़ान भरता है तो कई सालों किलोमीटर दूर तक भी दुश्मन का कोई लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर और यूएवी पास तक नहीं फटकने की जुर्रत नहीं कर पाता है. आपको बता दें कि मिग29 को पाकिस्तान के सीमा तक पहुंचने में महज़ 10-15 मिनट लगते हैं. कहते हैं कि मिग29 एयरक्राफ्ट 'दुश्मन के पायलट्स को चैन से नहीं बैठने देता.'

भारतीय वायुसेना के पास इस वक्त मिग-29 की कुल तीन स्कॉवड्रन हैं. आदमपुर में दो स्कॉवड्रन के अलावा तीसरी स्कॉवड्रन गुजरात के जामनगर में है. दुनिया भर में मिग-29 लड़ाकू विमान को 'फलकर्म' के नाम से जाना जाता है जो उसका नाटो नाम है. जबकि वायुसेना में उसे 'बाज़' के नाम से जाना जाता है क्योंकि एक बाज़ की तरह ही मिग29 आसमान में अपनी पैनी निगाहें गाड़े रखता है और दुश्मन को देखते ही उसपर ऐसा झप्पटा मारता है कि उठने का मौका नहीं देता.

एबीपी न्यूज जब आदमपुर बेस पर मौजूद था तभी खतरे की घंटी बज गई और एक फाइटर जेट को 'स्क्रैमबल' कर दिया गया. खबर मिली थी कि पाकिस्तान ‌का‌ एक‌ विमान ‌भारतीय‌ सीमा के करीब पहुंचने लगा‌ है ऐसे में एयरबेस के कमांड एंड कंट्रोल ‌सेंटर ने एलार्म बजा दिया. आपको बता दें कि पिछले दिनों पाकिस्तान का जो हेलीकॉप्टर रविवार को पूंछ में एलओसी पार कर भारत की सीमा में दाखिल हो गया‌ था उसके लिए वायुसेना ने अपना एक लड़ाकू विमान 'स्क्रैमबल' कर दिया था. फाइटर पायलट तुरंत अपने लड़ाकू विमान की‌ तरफ दौड़ गया.‌ हालांकि बाद में पता चला कि पाकिस्तान का वो विमान भी वापस लौट गया है.

किसी भी वायुसेना के लिए 'स्क्रैमबल' एक अहम भूमिका होती है. इसके लिए भारतीय वायुसेना के हरेक‌‌ एयरबेस पर एक लड़ाकू विमान और एक फाइटर पायलट हमेशा तैयार‌ रहता है.‌‌ जैसे ही कमांड एंड कंट्रोल ‌सेंटर से अलर्ट मिलता है‌ कि‌ दुश्मन ‌का कोई फाइटर जेट‌, हेलीकॉप्टर, विमान या फिर यूएवी हमारी ‌सीमा में दाखिल होने जा रहा है‌ तो इंडियन ‌एयरफोर्स‌ का‌ ये फाइटर पायलट बिना समय‌ गंवाए दुश्मन के‌ उस‌ टारगेट को गिराने ‌के‌ लिए अपने फाइटर जेट में पहुंच जाता है.‌ आनन फानन की‌‌इस‌ कारवाई को ही वायुसेना ‌की भाषा में ‌स्क्रैमबल कहते हैं.‌ कुल छह मिनट में पायलट को अपने जेट‌ को आसमान में उड़ा ले जाना होता है. ये इतनी त्वरित कार्यवाही होता है कि अगर फाइटर पायलट को ड्यूटी के दौरान थोड़ा आराम करना होता है तो वो अपना जी-सूट और प्रोटेक्टिव गियर पहनकर ही बैड पर लेटता है. क्योंकि उसे हमेशा स्टैंड-बाय पोजिशन में रहना होता है.

आदमपुर बेस पर स्क्रैमबल के लिए जो फाइटर पायलट एक बंकरनुमा कमरे में स्टैंड-बाय पर था उसके बैड‌ के‌ पास ही एक बड़ा‌ सा पोस्टर लगा‌ था‌ जिसपर पाकिस्तान एयर फोर्स ‌यानि पीएएफ ‌के‌ लड़ाकू विमानों ‌की‌‌ तस्वीरें थी और साथ में चीन की पीएलएएफ एयरफोर्स ‌के फाइटर जेट्स ‌की तस्वीरें लगीं थीं.‌ये तस्वीरें इसलिए लगीं थी ताकि‌ पायलट ‌को‌ दुश्मन के‌ फाइटर जेट्स‌‌ की पूरी पहचान हो. आदमपुर एयरबेस पर तैनात एयर-वॉरियर्स ने बताया कि पाकिस्तान की सीमा करीब होने के चलते यहां हमेशा ओआरओपी एसओपी यानि ओपरेशन्ल रेडी प्लेटफॉर्म युद्ध-कौशल के तहत कार्यवाही की जाती है.

आपको बता दें कि वायुसेना की पश्चिमी कमान के अंतर्गत आने वाला आदमपुर एयरबेस भारतीय वायुसेना का दूसरा सबसे बड़ा और एक पुराना एयरबेस है. 1965 से लेकर 1971 और करगिल युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ यहां से कई बड़े ऑपरेशन्स को अंजाम दिया गया था. 1965 के युद्ध में पाकिस्तान ने जब यहां अपने पैरा-कमांडो को एयर-ड्रॉप कर एक बड़ी कारवाई करने की कोशिश की थी तो यहां तैनात वायुसैनिक और आसपास के गांववालों ने इस मिशन को फेल कर दिया था और पाकिस्तान के 90 से ज्यादा कमांडोज़ को युद्ध-बंदी बना लिया था. लेकिन अब आदमपुर बेस ने केवल पाकिस्तान बल्कि चीन से भी दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है. वो भी तब जबकि भारतीय वायुसेना की मात्र 31 स्कॉवड्रन रह गई हैं और रफाल लड़ाकू विमान को भारत पहुंचने में पूरा एक साल है.

भारतीय वायुसेना के आदमपुर 'स्ट्रटेजिक' एयरबेस पर सिर्फ लड़ाकू विमान ही तैनात नहीं हैं. सूत्रों के मुताबिक, इस बेस पर भारत की पहली लेकिन सबसे भरोसेमंद सतह से सतह तक मार करने वाली बैलेस्टिक मिसाइल, पृथ्वी भी तैनात है. यही वजह है कि आदमपुर एयरबेस देश के लिए सामरिक तौर से बेहद महत्वपूर्ण है.

पृथ्वी मिसाइल के साथ साथ आदमपुर एयरबेस बेस पर पिचौरा और इग्ला मिसाइल की स्कॉवड्रन यानि 'फ्लाइट' भी तैनात हैं. ये इसलिए यहां तैनात की गई है कि अगर फाइटर जेट दुश्मन के लड़ाकू विमान या फिर हेलीकॉप्टर को मार गिराने से चूक जाता है तो पिचौरा मिसाइल उसे हवा में मार गिराने में सक्षम है. इसकी रेंज 18-25 किलोमीटर है. यानि दुश्मन से आ रहे खतरे को ये इतनी दूरी पर ही मार गिराने में सक्षम है. आदमपुर एयरबेस पर पिचौरा मिसाइल के तीन लांचर तैनात हैं और हरेक में चार मिसाइल लगाई जा सकती हैं. पिचौरा मिसाइल स्कॉवड्रन के बाद बारी थी भारतीय वायुसेना की स्नाइपर-मिसाइल की. ये थी रूस की बना इग्ला मिसाइल जिसे सैनिक कंधे पर रखकर दागते हैं. इसकी रेंज करीब पांच किलोमीटर है.

आदमपुर बेस पर फाइटर एयरक्राफ्ट और मिसाइलों के बाद बारी थी यहां तैनात गरूण कमांडोज़ की. थलसेना के पैरा-एसएफ कमांडोज की तर्ज पर भारतीय वायुसेना गरूण कमांडोज़ को तैयार कर रही है. इन कमांडोज़ को इस तरह तैयार किया जा रहा है कि वे एयरबेस की सुरक्षा तो करे में साथ ही दुश्मन की सीमा में घुसकर ऑपरेशन भी कर सकें. क्योंकि अब भारत के सैनिक दुश्मन की सीमा में घुसते भी हैं और मारते भी हैं.

दिनभर आदमपुर एयरबेस पर भारतीय वायुसेना की ताकत और ऑपरेशन्ल तैयारी के बाद बारी थी नाइट फ्लाइंग और रात में होने वाले ऑपरेशन्स की. करगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना का कोई भी लड़ाकू विमान नाइट ऑपरेशन्स नहीं कर सकता था. लेकिन अब मिग29 सहित अधिकतर फाइटर एयरक्राफ्ट रहे में ना केवल टेकऑफ़ और लैंडिंग कर सकते हैं बल्कि दुश्मन के छक्के छुड़ाने में भी पूरी तरह सक्षम हैं. क्योंकि भारतीय वायुसेना का मूल सिद्धांत है कि अगर शांति कायम रखनी है तो युद्ध की तैयारी करें.

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