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80% बच्चों के पास ऑनलाईन पढ़ाई के लिए नहीं है लैपटॉप, NCERT सर्वे में हुए कई खुलासे

ऑनलाइन क्लास करने के लिए कम से कम 27 प्रतिशत छात्रों की स्मार्टफोन या लैपटॉप तक पहुंच ही नहीं है. जबकि 28 प्रतिशत छात्र और अभिभावक बिजली की समस्या को एक प्रमुख रूकावट मानते हैं.

नई दिल्ली: कोरोना संकट के दौर में स्कूली बच्चों की सिर्फ़ ऑनलाईन क्लासेज़ हो रही हैं जिनमें बच्चों को समझने से लेकर संसाधनों तक की दिक़्क़तें आ रही हैं. बच्चों के लिए न्यू नॉर्मल की जगह ले रहे ऑनलाईन क्लासेज़ पर एनसीईआरटी ने एक बड़ा सर्वे कराया जिसमें देश भर से कुल 34,598 स्कूल प्रिंसिपल, टीचर, छात्र और अभिभावकों को जोड़ा गया. इस सर्वे में कई ऐसी बातें सामने आईं हैं जिसमें सरकारी स्तर पर तुरंत हस्तक्षेप की ज़रूरत है.

सबसे महत्वपूर्ण बात, जिसमें बच्चों को मदद की ज़रूरत है

इस सर्वे से अब ये बात सामने आई है कि सीबीएससी बोर्ड के 27% बच्चे ऐसे हैं जिनकी पहुंच ऐसे स्मार्टफ़ोन तक भी नहीं है जिससे वो अपनी ऑनलाईन क्लासेज़ तक पहुंच सकें.

कितने बच्चे पढ़ते हैं ऑनलाईन क्लासेज़ में

सीबीएसई से जुड़े केंद्रीय विद्यालय और जवाहर नवोदय विद्यालय को मिलाकर देश भर में कुल 22500 स्कूल हैं. इनमें 10वीं में क़रीब 18 लाख और 12वीं में क़रीब 12 लाख छात्र हैं. इन सभी क़रीब 30 लाख छात्रों को ऑन लाईन क्लासेज़ में पढ़ाई करने का निर्देश है.

एनसीईआरटी के सर्वे की महत्वपूर्ण बातें

1. 27% छात्रों के पास स्मार्ट फ़ोन और लैप टॉप नहीं है यानी क़रीब एक तिहाई छात्रों के पास ऑन लाईन क्लासेज़ से जुड़ने का संसाधन नहीं है. 2. जबकि सिर्फ़ क़रीब 33% छात्र ही ऑन लाईन पढ़ाई के साथ सहूलियत महसूस कर रहे हैं 3. 80% छात्र ऐसे हैं जो सिर्फ़ ऑन लाईन क्लासेज़ के लिए सिर्फ़ मोबाईल का ही इस्तेमाल कर रहे हैं 4. सिर्फ़ 16% छात्र कम्प्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल कर पा रहे हैं. 5. इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल टूल की कमी ऑनलाईन शिक्षा में बड़ी बाधा बनी हुई है 20-30% के लिए ये मुश्किलों भरा अनुभव था 6. 10-20% लोगों ने कहा ऑन लाईन शिक्षा कष्टप्रद है. 7. 16% अध्यापकों और 32.6% छात्रों ने ऑन लाईन शिक्षा को कठिन बताया 8. 42.6% अध्यापकों और 16.2% छात्र ऑन लाईन क्लासेज़ के लिए लैप टॉप का इस्तेमाल करते हैं 9. केवल 4.8% छात्रों ने स्मार्ट टीवी का प्रयोग किया 10. अधिकतर लोगों ने कहा कि गणित की ऑन लाईन पढ़ना मुश्किल है 11. सर्वे में ये सुझाव दिया गया है कि सरकारों को आगे आ कर उन छात्रों को ऑन लाईन जुड़ने के संसाधन देने चाहिए जो अन्यथा ये नहीं पा सकेंगे .

क्या कह रहे हैं अभिभावक

दिल्ली के कड़कड़डूमा केंद्रीय विद्यालय के छात्रों के अभिभावकों से एबीपी न्यूज़ की टीम ने बात की. इन अभिभावकों का कहना है कि ऑनलाईन क्लास वक़्त की ज़रूरत और मजबूरी दोनों है लेकिन जिन इलाक़ों में हम रहते हैं वहाँ हमारे घरों में इंटरनेट की समस्या बनी रहती है. ऐसे ही एक अभिभावक जतिन कुमार ने कहा कि,”मेरे घर के बच्चे 6वीं और 7वीं क्लास में पढ़ते हैं. लैपटॉप वैगरह न होने के कारण ऑनलाईन एजुकेशन में प्रोब्लम आ रही है. मोबाईल में भी नेट की समस्या बनी रहती है. ऑनलाईन बच्चों को न मैथ्स समझ आती है न साइंस.”

एक अन्य अभिभावक रवि कुमार कहते हैं,”दिक्कत तो है. मेरे घर में अलग अलग क्लास में दो बच्चे हैं. दोनों केंद्रीय विद्यालय में पढ़ते हैं. कभी कभी घर में एक ही मोबाईल होता है तो हमें एक की क्लास छुड़ानी पड़ जाती है. दिल्ली सरकार में तो हार्ड कॉपी भी दी जा रही है बच्चों को. हम लोग एडजस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं.”

सीबीएससी से जुड़े स्कूल क्या कह रहे हैं

इस सर्वे के बाद स्कूल तर्क दे रहे हैं कि उनकी ऑनलाईन कक्षाएँ इस तरह चलती हैं कि एक ही घर के दो छात्र अलग-अलग समय पर एक ही स्मार्टफ़ोन से ऑनलाईन क्लास कर सकता है. दिल्ली के कड़कड़डूमा केंद्रिय विद्यालय की प्रिंसिपल प्राची दीक्षित ने एबीपी न्यूज़ से कहा, ''हमनें ऑन लाईन क्लास को तीन पालियों में बांटा है. आठ बजे से बारह बजे तक नौंवी से बारहवीं की क्लास चलती है. छठवीं से आठवीं क्लास को बारह बजे से तीन बजे के बीच पढ़ाया जाता है. प्राइमरी की क्लास शाम को तीन बजे से छः बजे के बीच लगाई जाती हैं."

गूगल जी सूट और ओलैप पर हो रही है पढ़ाई

केवीए प्रिंसिपल प्राची दीक्षित के अनुसार केंद्रीय विद्यालयों के बच्चों का गूगल जी सूट एकाउंट खोला गया है जिससे केवल वो बच्चे ही क्लासरूम में आ सकते हैं. टीचर अपने क्लास की रिकॉर्डिंग भी वहाँ सेव कर देते हैं ताकि जिसके पास उस वक़्त डिवाइस नहीं है वो बाद में देख सकें. साइंस के लिए ओ लैब एप का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें प्रैक्टिकल भी थ्री ड़ाइमेंशन में किए जा सकते हैं.

सरकार गरीब स्कूली बच्चों को ऑनलाईन क्लासेज़ के साधन दे

डीपीएस साहिबाबाद की प्रिंसिपल और शिक्षाविद् डा. ज्योति गुप्ता का तर्क है कि बच्चों को जो समस्याएँ हो रही हैं उनको दूर करना आसान है बशर्ते स्कूल और अभिभावकों के साथ सरकार भी इसमें सक्रिय सहयोग करें. ख़ासतौर से सरकार को चाहिए कि वो उन छात्रों को स्मार्ट फ़ोन उपलब्ध कराएँ जिनके परिवारों के लिए इसे हासिल करना मुश्किल है.

डा. ज्योति गुप्ता का कहना है कि जिन बच्चों के पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है उन्हें सरकार या एनजीओ को आगे आ कर स्मार्ट फ़ोन देना चाहिए. हालांकि पैरेंटस् को भी इस साल यूनिफ़ार्म और किताबें नहीं ख़रीदनी हैं क्योंकि स्कूल खुले नहीं हैं और रीडिंग मटीरियल सब ऑनलाईन फ़्री है. ऐसे में इस बचत से ही वो पांच हज़ार का स्मार्ट फ़ोन ख़रीद सकते हैं. क्योंकि ये दौर अभी लम्बा चलने वाला लग रहा है. ऑन लाईन पढ़ाई का एक समानांतर सिस्टम तो अब हमेशा ही रहेगा.

दीक्षा प्लेटफ़ार्म का लाभ

इस साल टेक्नॉलजी ने बच्चों का साल बचा लिया वरना इस साल को स्कूली शिक्षा के लिए ज़ीरो ईयर घोषित करना पड़ जाता. ऐसे समय में दीक्षा प्लेटफ़ार्म का भी लाभ मिला है. प्रधानमंत्री ने दीक्षा प्लेटफ़ार्म को लाँच किया जिसपर अलग-अलग राज्यों ने और सीबीएससी ने अपने-अपने टिचिंग एंड लर्निंग प्रोसेस को अपलोड किया. अब इस पर बच्चे पढ़ने के लिए और टीचर अपने सपोर्ट मटीरियल के लिए जा सकते हैं. यहाँ पर मटीरियल काफ़ी कम बैंडविथ पर डाउनलोड हो जाता है.

नलाईन क्लासेज़ पर अन्य एक्सपर्ट की राय

सीबीएससी के माध्यम से ये सर्वे स्कूलों को भेजा गया था जिसमें क़रीब बारह पेज़ का प्रोफ़ार्मा था. एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऑन लाईन क्लासेज़ में स्किल और कॉम्पिटेंसी की बात ज़्यादा करनी चाहिए कॉंटेंट कम होना चाहिए. उद्देश्य सिर्फ़ इंटरैक्शन होना चाहिए. स्कूलों का कहना है कि टीचरों ने भी काफ़ी कुछ सीखा है. पीपीटी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. गूगल फार्म में प्रश्नपत्र और एसाइनमेंट अपलोड किए जाते हैं. ये सब अधिकांश अध्यापकों के लिए नया अनुभव है.

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