सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को मंगलवार को सूचित किया गया कि 122 सांसद और विधायक धनशोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के मामलों में आरोपी हैं और उनके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांच की जा रही है, जबकि 121 अन्य के खिलाफ अलग-अलग अपराधों में केंद्रीय अन्वेष्ण ब्यूरो (सीबीआई) ने मामला दर्ज किया है. सांसदों के खिलाफ धनशोधन रोकथाम कानून के तहत दर्ज मामलों में से 28 मामलों में जांच लंबित है और 10 मामले निचली अदालतों में आरोप तय किए जाने के चरण में हैं.

शीर्ष अदालत को यह भी बताया गया कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित 77 मामले उत्तर प्रदेश सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत वापस ले लिए और इसका कोई कारण नहीं बताया गया. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ बुधवार को अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई करने वाली है.

सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों में जल्द निपटारा किए जाने का आग्रह करने से संबंधित मामले में अदालत मित्र के रूप में नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया द्वारा दायर रिपोर्ट में कहा गया कि विधानसभा और विधान परिषदों के सदस्यों के खिलाफ ईडी द्वारा दर्ज किए गए 48 मामलों में जांच लंबित है और 15 मामले आरोप तय किए जाने के चरण में हैं. कोर्ट को यह सूचना अधिवक्ता स्नेहा कालिता द्वारा दायर रिपोर्ट के माध्यम से दी गई. हंसारिया ने कहा कि जिन अदालतों में मामले लंबित हैं, उन्हें मामलों को दैनिक सुनवाई के आधार पर जल्द निपटाने का निर्देश दिया जा सकता है.

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र की तरफ से विस्तृत जवाब न आने पर नाराज़गी जताई थी. सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाया था. जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम मौका दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई भी राज्य सरकार जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित केस बिना हाई कोर्ट की अनुमति के वापस न ले.

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