उदयपुर चिंतन शिविर में संगठन में जान फूंकने के लिए कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा निकालने और अन्य बदलाव करने की बात कही थी. भारत जोड़ो यात्रा जम्मू-कश्मीर में पहुंचने के साथ ही अंतिम पड़ाव पर है. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस संगठन में कितना असर हुआ?


कांग्रेस में संगठन में फेरबदल और नियुक्ति का काम अध्यक्ष के साथ ही संगठन महासचिव की होती है. अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भले 2 महीने पहले बने हो, लेकिन केसी वेणुगोपाल पिछले 4 सालों से संगठन महासचिव पद पर हैं. इसके बावजूद कांग्रेस संगठन सड़कों पर खड़ा नहीं हो पा रहा है. 


आइए इस स्टोरी में जानते हैं कि कांग्रेस में संगठन महासचिव का पद कितना ताकतवर होता है और उनके जिम्मे क्या क्या काम आता है....


पहले जानिए केसी वेणुगोपाल कौन हैं?
एमएससी तक की पढ़ाई करने वाले केसी वेणुगोपाल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र संगठन NSUI से किया था. 1987-92 तक वे NSUI के केरल प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. 1991 में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के करुणाकरन ने केसी वेणुगोपाल को केरल की कासरगोड लोकसभा सीट से टिकट दे दिया. उस वक्त केसी की उम्र मात्र 28 साल थी. 


वेणुगोपाल अपना पहला चुनाव करीब 10 हजार वोटों से हार गए. वेणुगोपाल की सीट उन 3 सीटों में शामिल थी, जो कांग्रेस केरल में हार गई. केसी राष्ट्रीय राजनीति में तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने 1995 में अर्जुन सिंह विवाद में पीवी नरसिम्हा राव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 


अर्जुन सिंह और नरसिम्हा राव की लड़ाई में केसी के राजनीति गुरु करुणाकरन की भी कुर्सी चली गई. इसके बाद एके एंटोनी राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए. एंटोनी को 10 जनपथ का वरदहस्त प्राप्त था. 


करुणाकरन की विदाई के बाद रमेश चेन्निथल्ला और अन्य नेताओं के साथ मिलकर केसी वेणुगोपाल ने 1995 में केरल कांग्रेस में सुधारवादी ग्रुप बनाया, जिसे मलयालम में थिरुथेलवाड़ी कहा जाता था. केसी 1996 में पहली बार विधायक बने और फिर 2004 में उन्हें ओमान चांडी की सरकार में मंत्री बनाया गया.


2009 में पहली बार सांसद बने, राहुल के कहने पर केंद्रीय मंत्री
2009 में केसी वेणुगोपाल केरल के आलप्पुझा से पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते. 2011 में केंद्रीय कैबिनेट विस्तार में राहुल के युवा प्रयोग में केसी मंत्री बनाए गए. केसी के अलावा राजस्थान से सचिन पायलट, महाराष्ट्र से मिलिंद देवड़ा, मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया मंत्री बने. 


2011 से 2014 तक उर्जा और विमानन मामलों के विभाग में राज्यमंत्री रह चुके हैं. 2014 में केसी दूसरी बार लोकसभा चुनाव में आलप्पुझा सीट से सांसद बने. दूसरी बार सांसद बनने के बाद से ही केसी राहुल के करीबी नेताओं की लिस्ट में शामिल हो गए. 


4 साल से संगठन महासचिव हैं वेणुगोपाल
2018 में राजस्थान जीत के बाद तत्कालीन संगठन महासचिव अशोक गहलोत को कांग्रेस ने राज्य का मुख्यमंत्री बनाया. गहलोत की जगह रेस में सबसे आगे मुकुल वासनिक थे, लेकिन 2019 में राहुल गांधी ने केसी वेणुगोपाल को संगठन महासचिव नियुक्त कर दिया. वेणुगोपाल उस वक्त कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी थे. हालांकि, संगठन महासचिव बनने से पहले वे ज्यादा कांग्रेस संगठन में ज्यादा चर्चित नहीं थे. 


2017 में दिग्विजय सिंह के इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने केसी वेणुगोपाल को कर्नाटक का प्रभारी बनाया था. कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में केसी वेणुगोपाल की यह पहली बड़ी तैनाती थी. 


कांग्रेस नेताओं के निशाने पर रहे हैं केसी
कांग्रेस के G-23 गुट के नेताओं के निशाने पर केसी रहे हैं. G-23 ने केसी की कार्यशैली पर ही सवाल उठाते हुए कहा था कि पार्टी में सीनियर नेताओं की उपेक्षा हो रही है.


केरल में हार के बाद केसी वेणुगोपाल को हटाओ के पोस्टर कांग्रेस के कन्नूर जिला कार्यालय में लगाया गया. पोस्टर लगने के बाद कांग्रेस हाईकमान तुरंत सक्रिय हो गया.


केरल कांग्रेस के सचिव प्रशांत ने राहुल गांधी को पत्र लिखकर कहा कि जब से केसी वेणुगोपाल ने कार्यभार संभाला है, तब से पार्टी कमजोर हुई है. 


कांग्रेस में कितना महत्वपूर्ण होता है संगठन महासचिव का पद?
महासचिवों के महासचिव- कांग्रेस संविधान में संगठन महासचिव पद का कोई जिक्र नहीं है, लेकिन पार्टी अध्यक्ष के कामकाज को आसान बनाने के लिए यह पद बनाया गया है. 24 अकबर रोड के गलियारों में इसे महासचिवों का महासचिव कहा जाता है. 


राज्य कार्यकारिणी गठन और सीडब्लूसी की मीटिंग कॉर्डिनेट का जिम्मा भी संगठन महासचिव पर ही होता है. जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर नियुक्ति की घोषणा भी संगठन महासचिव के लेटरपैड से ही किया जाता है. यानी संगठन मजबूती का काम भी इन्हीं के जिम्मे रहता है.


टिकट बंटवारे में भूमिका, विवाद सुलझाने की भी जिम्मेदारी- कांग्रेस इलेक्शन कमेटी और कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग के बाद जो नाम टिकट बंटवारे के लिए फाइनल होता है, उसे अध्यक्ष के पास रखा जाता है. अध्यक्ष के पास नाम फाइनल कराने में कांग्रेस संगठन महासचिव की भी भूमिका अहम होती है.


इसके साथ ही कांग्रेस के भीतर किसी भी विवाद को सुलझाने की जिम्मेदारी संगठन महासचिव पर ही होता है. अगर अनुशासनहीनता का मामला होता है, तो फिर उसे अनुशासन कमेटी के पास भेज दिया जाता है.


दिग्गज नेता रह चुके हैं इस पद पर- केसी वेणुगोपाल से पहले अशोक गहलोत और जनार्दन द्विवेदी जैसे नेता इस पद पर रह चुके हैं. गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री, महासचिव और प्रदेश अध्यक्ष जैसे पद पर रह चुके हैं.


जनार्दन द्विवेदी सोनिया गांधी के करीबी रहे हैं और उन्हें भी संगठन में काम करने का तजुर्बा रहा है. 


4 साल में 3 विवाद, जिसे नहीं सुलझा पाए



  • राजस्थान कांग्रेस के बीच अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच ढाई साल से विवाद जारी है. केसी वेणुगोपाल को इसे सुलझाने की जिम्मेदारी मिली थी, लेकिन अब तक यह विवाद पूरी तरह नहीं सुलझ पाया है. 

  • कर्नाटक में आगामी चुनाव में चेहरे को लेकर सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार गुट के बीच विवाद की स्थिति बनी हुई है. कांग्रेस संगठन इसे भी नहीं सुलझा पाई है. 

  • छत्तीसगढ़ में भी टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल खेमा में विवाद की स्थिति बनी हुई है. सिंहदेव समर्थकों का कहना है कि हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था, जिसे अब तक पूरा नहीं किया गया है.


बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में संगठन नहीं
पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य में पिछले 2 साल से संगठन का विस्तार नहीं हो पाया है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर के कंधों पर ही प्रदेश की भी कमान है. यहां कई जिलों में पूरी की पूरी संगठन ही गायब है. 


बिहार में हाल में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति तो हुई है, लेकिन संगठन अब भी नहीं है. इतना ही नहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर पर कई फ्रंटल संगठन में भी नेताओं की नियुक्ति नहीं हो पाई है.


कांग्रेस के कानून और आरटीआई विभाग के चेयरमैन पद से जून 2019 में ही विवेक तन्खा इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन अब तक नई नियुक्तियां नहीं हो पाई है.