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सोनिया को दिया ये फॉर्मूला, फिर खुद को बताया अभिभावक, समझिए अशोक गहलोत का नया 'जादू'

राजस्थान में कुर्सी की लड़ाई अशोक गहलोत इतनी जल्दी हार नहीं मानेंगे. सोनिया गांधी से माफी मांगने के बाद अब अशोक गहलोत ने कहा है कि वो 102 विधायकों के अभिभावक हैं.

राजनीति में अगर आपको लगे कि सब कुछ शांत हो गया है  तो आप धोखे का शिकार हो सकते हैं. दरअसल ऐसे हालात ठहरे हुए पानी की तरह होते हैं जिसमें धाराएं एक दूसरे को अंदर ही अंदर काटती रहती हैं. 

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब दिल्ली आकर विधायकों की बगावत पर सोनिया गांधी से माफी मांगी और इस पर दुख जताया कि पार्टी आलाकमान के फरमान की वो तामील नहीं करा सके तो ऐसा लगा कि अब सब कुछ ठीक हो गया है.

दिल्ली से लेकर जयपुर तक सभी को इस बात का अंदाजा हो गया कि अशोक गहलोत अब बिना किसी ना नुकुर के सीएम पद की कुर्सी का मोह त्याग देंगे और सचिन पायलट का सपना पूरा हो जाएगा.

कभी मंच पर जादूगरी दिखाने वाले अशोक गहलोत के पास अभी कई दांवपेंच बाकी हैं. रविवार उन्होंने एक बार फिर दिल्ली को अपनी ताकत का अहसास करा दिया. 

उन्होंने कहा, ' अध्यक्ष पद के लिए ऐसी परिस्थिति बन गई है. विधायकों ने मेरी बात भी नहीं मानी. ऐसी नौबत क्यों आई. पहली बार माफी मांगी. मोदी सरकार हमेशा कोशिश करेगी कि कैसे सरकार गिरा दें.

गहलोत ने कहा, 'हमारे विधायकों को अमित शाह ने मिठाई खिलाई थी. 102 लोगों (विधायक जो पायलट की बगावत के समय साथ खड़े थे) को कैसे भूल सकता हूं. 10 करोड़ का रेट था, बाद में 10, 20, 50 करोड़ की बात होने लगी.  

राजस्थान के सीएम ने आगे कहा, 'मैं कहां रहूं या नहीं रहूं, यह अलग बात है. मैं विधायकों का अभिभावक हूं. आज दो-चार विधायक मेरे खिलाफ कमेंट भी कर देते हैं तो मैं बुरा नहीं मानता हूं.' 

इसके बाद उन्होंने एक कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे मल्लिकार्जुन खड़गे की तारीफ भी की. उन्होंने कहा, खड़गे अनुभवी नेता हैं. शशि थरूर भी अच्छे हैं लेकिन एलिट क्लास के हैं संगठन का अनुभव खड़गे के साथ है जिसकी तुलना थरूर के साथ नहीं की जा सकती है.

जयपुर में मीडिया से बातचीत में अशोक गहलोत ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस के प्रतिनिधि भी खड़गे जी के साथ ही जुड़ाव महसूस करेंगे क्योंकि वो कांग्रेस के संगठन को भी समझते हैं.

और इसके साथ ही उन्होंने विधायकों की बगावत पर भी साफ कह दिया कि आलाकमान को आगे फैसला करना है लेकिन मैंने सोनिया गांधी से कहा कि 50 साल में पहली बार मैंने देखा कि हम एक लाइन का प्रस्ताव पारित नहीं करवा पाए. जबकि वह हमारी ड्यूटी थी. लेकिन यहां पर यह स्थिति क्यों बनी, इस पर रिसर्च की जरूरत है.

गहलोत ने कहा,  यह नौबत क्यों आई कि यहां के विधायक मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं थे? स्पीकर के पास इस्तीफा देकर आ गए! शायद उन्हें डर था कि अब अगला दिल्ली जा रहा है हमें किस के भरोसे छोड़ कर जा रहा है?

राजस्थान के सीएम ने कहा कि मुख्यमंत्री रहते हुए हम पर बड़ा संकट आया. लेकिन हमने उसे विफल कर दिया बीजेपी आगे भी सरकार को डिस्टर्ब करने की कोशिश करेगी. लेकिन प्रदेशवासियों का सहयोग उनके साथ है तभी वह बार-बार कहते हैं कि वे उनसे दूर कैसे हो सकते हैं.


अशोक गहलोत के इन बयानों को अगर डिकोड किया जाए या मायने निकालें तो एक बार फिर उन्होंने आलाकमान को साफ संदेश दिया है कि फिलहाल राजस्थान के नेता वही हैं. उन्होंने इस बात का भी क्रेडिट लिया कि जब सचिन पायलट के गुट की बगावत की वजह से प्रदेश सरकार पर संकट आया था तो उन्होंने और उनके साथ खड़े विधायकों की वजह से ही सरकार बच पाई थी.

इसके साथ ही उन्होंने ये भी नसीहत दे डाली कि आलाकमान के आदेश के खिलाफ जो बगावत उनके साथ खड़े विधायकों ने की है उसका जिम्मेदार भी दिल्ली में बैठे नेता हैं जो ये समझ नहीं पाए कि वो किसी भी कीमत पर उनके सिवाए किसी और को नेता मानने को तैयार नहीं है. उन्होंने कहा कि बिना किसी का नाम लिए कहा कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को इस पूरे घटनाक्रम पर रिसर्च की भी सलाह दी है.

उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव न लड़ने की बात मानकर ये पहले ही जाहिर कर दिया है कि वो किस भी कीमत पर सीएम की कुर्सी की नहीं छोड़ना चाहते हैं. हालांकि अशोक गहलोत भी नहीं चाहते हैं कि उनका पार्टी के साथ किसी भी तरह का टकराव हो. इसलिए अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे मल्लिकार्जुन खड़गे का पलड़ा भारी देख वो उनकी तारीफ करना भी नहीं भूले हैं.

कांग्रेस के तीन-तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके अशोक गहलोत का जादू ही कि हर बार सीएम पद की कुर्सी उनके कांग्रेस आलाकमान के एक लाइन के फरमान की वजह से ही मिली है. राजस्थान की राजनीति में जहां राजपूतों, ब्राह्णणओं और जाटों का वर्चस्व रहा हो वहां खुद को स्थापित करने कर तीन बार सीएम बन जाना अशोक गहलोत की राजनीतिक कुशलता का ही नतीजा है.

लेकिन जब कांग्रेस आलाकमान ने एक लाइन के फरमान से उनको कुर्सी से हटाना चाहा तो बागी न बनते हुए बागवत करा दी और कह दिया कि ये उनके कंट्रोल में नहीं है. खबरों की मानें तो अशोक गहलोत सीएम पद से इस्तीफा देने को तैयार हो चुके थे. लेकिन उनके सिपहसालारों को अहसास था कि सीएम बदलते ही उनके राजनीतिक करियर पर ग्रहण लग जाएगा. इसके बाद अशोक गहलोत ने वो कर डाला जो कांग्रेस आलाकमान को शायद ही कभी उनसे उम्मीद रही होगी. 

सोनिया गांधी उन पर विश्वास करके पूरी कांग्रेस की कमान देने को तैयार थीं. लेकिन अशोक गहलोत के नफा-नुकसान के गणित में सीएम का पद उनको ज्यादा फायदेमंद लगा. फिलहाल अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव होने तक राजस्थान की कांग्रेस में शांति रहेगी.

अशोक गहलोत ने चिट्ठी में सोनिया से क्या कहा था
बीते गुरुवार को अशोक गहलोत जब सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे थे तो उनके हाथ में एक चिट्ठी थी. जिसकी कुछ लाइनें कैमरे में हो गई थीं. लेकिन अब उसमें लिखीं जो बातें सामने आई हैं उसके बाद साफ हो गया है कि अशोक गहलोत ने माफी भले ही मांगी हो लेकिन वो सीएम बदलने की बात पर राजी नहीं है. काग़ज़ की पहली लाइन बिलकुल साफ़ पढ़ने में आ रही थी. जिसमें उन्होंने लिखा, ' जो हुआ बहुत दुःखद है, मैं भी बहुत आहत हूँ.'
 
इसके बाद अगली लाइन थी जो पूरी तरह पढ़ने में नहीं आ रही लेकिन समझा जा सकता है कि गहलोत ने आगे के शब्द क्या लिखे होंगे. उन्होंने लिखा,  'राजनीति में हवा बदलते देख साथ...'

इस लाइन को बस यही तक पढ़ा जा सकता है लेकिन इसके आगे गहलोत ने लिखा होगा कि छोड़ देते हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. 

ये बात गहलोत ने राजस्थान में विधायक दल की रविवार को होने वाली बैठक से पहले हुए ड्रामे को लेकर लिखी थी जिसका मतलब था कि राज्य में हवा बदलने की आशंका के बावजूद उनके समर्थकों ने पाला नहीं बदला.  

इसके बाद अगली लाइन थी, 'RG 1 घंटे - SP/CP (PM)....'यहां आरजी का मतलब है राहुल गांधी एसपी मतलब सचिन पायलट और  सीपी मतलब डॉ. सीपी जोशी जो कि राजस्थान विधानसभा के स्पीकर हैं.
 
एक घंटे का हवाला गहलोत ने राहुल गांधी से एक घंटे की मुलाक़ात को लेकर दिया है. लेकिन पीएम शब्द को यहां लिखने की मंशा को समझ सकना थोड़ा मुश्किल है.  इसके आगे गहलोत लिखते हैं,  'SP will leave parti- observer..पार्टी के लिए अच्छा होता...'

ये लाइन गहलोत ने सचिन पायलट की दो साल पहले की बग़ावत को लेकर लिखी है और उन्होंने संकेत दिया है कि तब पार्टी पर्यवक्षकों ने कहा था कि पायलट पार्टी छोड़ देंगे.  ऐसा पार्टी के लिए अच्छा होता.  इसके आगे गहलोत के काग़ज़ में लिखा था, 'पहला प्रदेश अध्यक्ष जिसने...'

इसका मतलब ये है कि गहलोत ने सोनिया को बताया कि सचिन पहले ऐसे अध्यक्ष थे जिन्होंने अपनी ही सरकार को गिराने के लिए बग़ावत की थी. आगे गहलोत ने लिखा, '102 v/s SP+18'
 

इसका मतलब है कि बग़ावत के वक़्त 102 विधायक एक तरफ़ जबकि सचिन पायलट के साथ कुल 18 विधायक थे. आगे गहलोत के काग़ज़ में लिखा था, '10 cr-BJP कार्यालय  इसका मतलब था कि सचिन की बग़ावत के वक्त बीजेपी दफ़्तर से विधायकों को दस-दस करोड़ दिए गए थे. 

गहलोत के काग़ज़ में आगे लिखा था, 'विधायकों में भय इसका अर्थ है कि रविवार को जयपुर में जो हुआ वो विधायकों में पनपे भय के वजह हुआ क्योंकि ऐसी चर्चा थी कि पायलट सीएम बन रहे हैं
 
इस काग़ज़ में आगे गुंडागर्दी पुष्कर शकुंतला और चांदना जैसे शब्द लिखे थे. इन शब्दों को जोड़े तो समझा जा सकता है कि गहलोत ने पिछले दिनो गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला की अस्थि विसर्जन के दौरान हुई घटना का ज़िक्र किया है.

बता दें कि कर्नल बैंसला के अस्थि विसर्जन का कार्यक्रम पिछले दिनों पुष्कर में हुआ था. इस दौरान बड़ी संख्या में गुर्जर समुदाय के लोग जमा हुए थे. इस दौरान जब राजस्थान के दो गुर्जर मंत्री शकुंतला रावत और अशोक चांदना मंच पर भाषण दे रहे थे तब सभा में जमकर विरोध हुआ था. लोगों ने जूते चप्पल फेंक कर इन दोनों को भाषण नहीं देने दिया था.  गहलोत इसे सचिन ख़ेमे की गुंडागर्दी बताया है.

अशोक गहलोत ने क्यों लीक की चिट्ठी
बड़ा सवाल ये  कि आख़िर गहलोत ने इसे मीडिया को लीक क्यों किया.  इसकी वजह जो समझ आती है वो ये कि गहलोत अपने ख़ेमे के लोगों को ये बताना चाहते थे कि उन्होंने सभी बाते आलाकमान को बता दी है.  गहलोत ने अपने हाथ में जो कागज पकड़ा हुआ था वो उन्होंने ख़ुद मीडिया को लीक किया था क्योंकि अगर उन्हें ये कागज मीडिया कि निगाहों से बचाना था तो वो उसे छिपाकर करके भी ले जा सकते थे. इस कागज पर जो कुछ लिखा था वो गहलोत की अपनी हैंड राइटिंग में था.

About the author मानस मिश्र

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