जिस गुड्डू को कभी माया ने चाहा था, उसकी शादी के बाद उसका दिल ही टूट गया था. लेकिन इसके बाद जब गुड्डू एक दिन उसे मिला तो क्या वो उसे पहचान पाई?
कई दिनों से गुड्डू माया के घर के सामने से जानबूझ कर गुज़रने लगा. माया भी गुड्डू की हरकतों को समझ रही थी. शर्मा आंटी अपनी बड़ी बेटी की शादी कर रही थीं. शादी की तैयारियां ज़ोर-शोर पर थीं. हलवाई बैठ चुका था. स्टेज सज चुका था. मोहल्ले की सारी लड़कियां सबसे खूबसूरत दिखने की होड़ में जी भर कर तैयार हुई थीं. माया हमेशा की तरह नीले रंग के सूट में सिंपल और सोबर दिख रही थी. जहां सारी लड़कियां गाढ़ी लिपिस्टिक और गुलाबी रूज़ में चमक रही थीं, वहीं माया सिर्फ आंखों में काजल लगाए पार्टी की रौनक बनी हुई थी. “यह आपके लिए,” गुड्डू दुल्हा-दुल्हन पर फेंके गए लाल गुलाब में झाड़ू की डंडी घुसाए और डंडी को सलाद की प्लेट से उठाए गए चुकंदर पर टिकाए हुए माया के पीछे खड़ा था. “यह क्या है,” पीछे मुड़कर माया ने चौंकते हुए गुड्डू से कहा. “आपके लिए,” गुड्डू ने कहा. “मैं इसका क्या करूंगी,” माया ने कहा, “हालत देखी है आपने इस फूल की. पूरी तरह से इसकी खुशबू और रंग दोनों ही उड़ चुके हैं.” “यह फूल तो आपसे बात शुरू करने का बहाना है. आइए मैं आपको कुल्फी फलूदा खिलाता हूं.” “मैं खुद खा लूंगी.” “नहीं आज मुझे देने दीजिए,” इतना कहते हुए गुड्डू ने कुल्फी फलूदा की कटोरी माया के आगे रख दी. ~ माया और गुड्डू की दोस्ती परवान चढ़ चुकी थी. मोहल्ले में इस नई मोहब्बत के चर्चे थे. माया ब्राह्मण की बेटी थी और गुड्डू ठाकुर. माया के पिताजी किसी प्राईवेट दफ्तर में नौकरी करते थे और मोहल्ले में किराए पर घर ले कर रह रहे थे. गुड्डू के पिता को अपने बेटे की शादी के लिए कोई मोटी पार्टी चाहिए थी. एक ऐसी लड़की जो दहेज़ से पूरा घर भर दे. अपने लालच के चलते सिंह साहब ने गुड्डू की शादी एक ऐसी लड़की से तय कर दी जो हाईस्कूल पास थी. लड़की का नाम सोनी था. सोनी के पिता का प्रॉपर्टी का काम था. पिता के पास बहुत पैसा था. इतना पैसा कि गुड्डू को दहेज़ में बड़ी गाड़ी, सौ तोले सोना, शहर में चार कमरों का नया घर मिलने वाला था. ~ सोनी और गुड्डू की शादी हो रही थी. गुड्डू बहुत खुश था. पहली बार दुल्हा बना था. घोड़ी पर चढ़ा था. सेहरा बांधे खुद को राजेश खन्ना समझ रहा था और माया कहीं दूर छूट गई थी. गुड्डू तो जानता भी नहीं था, कि उसकी शादी वाली रात माया सुबह चार बजे तक तकिए में मुंह छिपा कर रोती रही. अगली सुबह माया की आंखें इतनी सूज चुकी थीं, कि दुल्हन देखने के लिए वह गेट से बाहर भी नहीं आई.(रंजना त्रिपाठी की कहानी 'गुड्डू भईया' का यह अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)