भारत में स्कूलों को बच्चों का दूसरा घर कहा जाता है. लेकिन पिछले कुछ महीनों में कई ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाएं सामने आई हैं, जहां टीचरों की सख्ती, डांट-फटकार या मानसिक प्रताड़ना ने बच्चों को इतना तोड़ दिया कि उन्होंने अपनी जान ले ली. ये सिर्फ एक-दो मामले नहीं हैं, बल्कि एक पैटर्न बनता जा रहा है. फिर चाहे वो चौथी क्लास की अमायरा हो, जिसने स्कूल की बालकनी से कूद कर जान दे दी या फिर 16 साल का शौर्य, जिसने मेट्रो के सामने कूदकर खुदकुशी कर ली. ABP न्यूज के मॉर्निंग एक्सप्लेनर में समझते हैं कि बच्चे अपनी जान देने पर क्यों तुले हैं, कैसे टीचरों की बेरहमी काल बन रही है और अपने बच्चे की हिफाजत कैसे करें...

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सवाल 1- भारत में पिछले 6 महीनों से बच्चे अपनी जान कैसे लिए जा रहे हैं?जवाब- आजकल बच्चे खुद को इतना अकेला और बेबस महसूस कर रहे हैं कि अपनी जान तक ले रहे हैं...

1. 10वीं क्लास के शौर्य ने मेट्रो के आगे कूदकर आत्महत्या की

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  • 18 नवंबर 2025 को दिल्ली के राजेंद्र पैलेस मेट्रो स्टेशन पर 16 साल के क्लास 10th के स्टूडेंट शौर्य प्रदीप पाटिल ने प्लेटफॉर्म से कूदकर अपनी जान दे दी. शौर्य सेंट्रल दिल्ली के नामी सेंट कोलंबा स्कूल का स्टूडेंट था.
  • उसके बैग से एक हाथ से लिखा सुसाइड नोट मिला, जिसमें उसने तीन टीचर्स जूली वर्गीज, मनु कालरा और युक्ति महाजन समेत प्रिंसिपल अपराजिता पाल पर लंबे समय से मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया.
  • शौर्य ने लिखा, 'सॉरी मम्मी, मैंने आपका दिल कई बार तोड़ा और अब आखिरी बार तोड़ रहा हूं. स्कूल की टीचर्स ऐसी हैं, क्या कहूं... मेरी लास्ट विश है कि इनके खिलाफ एक्शन लिया जाए, ताकि कोई और बच्चा मेरी तरह ऐसा कदम न उठाए.'
  • शौर्य के पिता प्रदीप पाटिल ने बताया कि शौर्य एक साल से शिकायत कर रहा था कि छोटी-छोटी बातों पर टीचर्स डांटती थीं, बेइज्जत करती थीं. घटना वाले दिन ड्रामा क्लास में गिरने पर एक टीचर ने उसे 'ओवरएक्टिंग' का मजाक उड़ाया, रोते बच्चे से कहा 'जितना रोना है रो लो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.'

2. 9 साल की अमायरा ने स्कूल से कूदकर जान दी

  • 1 नवंबर 2025 को जयपुर के नामचीन नीरजा मोदी स्कूल में क्लास 4th की सिर्फ 9 साल की अमायरा ने चौथी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी. CCTV फुटेज में साफ दिखा कि वो रेलिंग पर चढ़ी और कूद गई. मौके पर ही मौत हो गई.
  • अमायरा के पैरेंट्स ने बताया कि उनकी बेटी क्लासमेट्स से बार-बार बुलिंग और गालियां सहती थी. घटना वाले दिन भी वो कई बार टीचर के पास शिकायत करने गई, लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया.
  • मां ने पहले भी वॉट्सएप पर ऑडियो भेजकर बुलिंग की शिकायत की थी, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया. अमायरा ने मां से फोन पर कहा था, 'मम्मी, मुझे स्कूल नहीं जाना, सब मुझे तंग करते हैं.'
  • पुलिस जांच में टीचर की लापरवाही सामने आ रही है. ये 9 साल की मासूम बच्ची का मामला दिखाता है कि छोटे बच्चे भी कितने कमजोर हो रहे हैं. बुलिंग को रोकने की जिम्मेदारी टीचर की होती है, लेकिन अगर वे अनसुनी कर दें तो बच्चा अकेला पड़ जाता है.

3. टीचर ने साढ़े तीन साल के बच्चे को दो दिन तक बेरहमी से पीटा

  • 19 नवंबर को मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में एक सरकारी स्कूल के टीचर ने साढ़े तीन साल के बच्चे को दो दिन तक पीटा. बच्चा इतना छोटा था कि ठीक से बोल भी नहीं पाता. परिजनों ने हंगामा किया, तो ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने तीन सदस्यीय जांच टीम बना दी.
  • ये शारीरिक प्रताड़ना का मामला है, जो बताता है कि कुछ टीचर अभी भी पुरानी सोच में हैं कि बच्चों मारने-पीटने से वह सुधर जाएंगे.
  • इस मामले में बच्चा जिंदा है, लेकिन ऐसे मामले मानसिक ट्रॉमा देते हैं, जो बाद में आत्महत्या की वजह बन सकते हैं.

4. 21 साल की ज्योति ने हॉस्टल में फांसी लगा

  • 18 जुलाई 2025 को ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी की सेकेंड ईयर BDS स्टूडेंट ज्योति शर्मा ने अपने रूम में खुदकुशी कर ली. ज्योति ने सुसाइड नोट में दो असिस्टेंट प्रोफेसर्स डॉ. शायरी वशिष्ठ और डॉ. महिंदर सिंह चौहान पर लंबे समय से प्रताड़ना और अपमान करने का आरोप लगाया.
  • ज्योति ने लिखा कि ये दोनों टीचर्स उन्हें लगातार ह्यूमिलिएट करते थे, प्रोजेक्ट फाइल में सिग्नेचर फोर्ज करने का आरोप लगाकर तंग करते थे और कहा कि 'मैं ऐसे जी नहीं सकती'. इनके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाए और ये लोग जेल जाएं.
  • परिवार का कहना था कि ज्योति गेहूं की एलर्जी से पीड़ित थीं, जिसके लिए वो हमेशा बीमार रहती थीं. लेकिन टीचर्स इसे लेकर भी ताने मारते थे. घटना के बाद स्टूडेंट्स ने कैंपस में जोरदार प्रदर्शन किया, यूनिवर्सिटी ने दोनों प्रोफेसर्स को सस्पेंड कर दिया और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

5. 15 साल के विवेक ने फांसी लगाकर आत्महत्या की

  • 1 जुलाई 2015 को महाराष्ट्र के अमरावती के 10th क्लास के स्टूडेंट विवेक महादेव राउत ने घर में फांसी लगा ली. विवेक के सुसाइड नोट में साफ लिखा था, 'मैं फांसी लगा रहा हूं क्योंकि सूर्यवंशी टीचर ने मुझे डांटा और मेरे पैरेंट्स के बारे में बुरा कहा'.
  • क्लास में टीचर ने विवेक से कुछ सवाल किए थे, वो जवाब नहीं दे पाया तो टीचर ने गुस्से में क्लास के सामने डांट लगाई, मजाक उड़ाया और कहा कि 'तेरे पैरेंट्स को बुलाऊंगा, बोलूंगा तू पढ़ता नहीं है.'
  • विवेक इतना टूट गया कि घर जाकर फांसी लगा ली. घटना के बाद लोकल लोगों ने टीचर को पीटा, जिससे वह अस्पताल में भर्ती हो गए. पुलिस ने टीचर के खिलाफ अबेटमेंट टू सुसाइड का केस दर्ज किया और जांच की.

यह मामले दिखाते हैं कि कोचिंग, कॉलेज या स्कूल, कहीं भी टीचर का रवैया बच्चे को तोड़ सकता है. हालांकि, 2025 के पूरे आंकड़े अभी नहीं आए, लेकिन ट्रेंड वही है जो पहले था.

सवाल 2- स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर बच्चों की जान के दुश्मन क्यों बन रहे हैं?जवाब- एक्सपर्ट्स का मानना है कि टीचर्स का रोल गुरु से बदलकर जल्लाद जैसा हो गया है. छोटी-छोटी बातों पर पब्लिक ह्यूमिलिएशन, डांट-फटकार, बुलिंग को इग्नोर करना और शिकायतों को गंभीरता से न लेना है. दरअसल, आज का एजुकेशन सिस्टम मार्क्स की रेस बन चुका है, जहां टीचर्स पर प्रेशर होता है कि 100% रिजल्ट लाओ, बच्चे को टॉप कराओ. ऐसे में कई टीचर्स पुरानी सोच में होते हैं कि डराओ, डांटो और मारो तो बच्चा पढ़ेगा. लेकिन आज के बच्चे इमोशनली बहुत सेंसिटिव हैं.

एजुकेशन मिनिस्ट्री की उम्मीद गाइडलाइंस 2023 और सुप्रीम कोर्ट की 15 बाइंडिंग गाइडलाइंस के बावजूद ज्यादातर प्राइवेट और सरकारी स्कूल इन्हें लागू नहीं कर रहे. नतीजतन, टीचर्स पर रिजल्ट का प्रेशर इतना है कि वे पुरानी 'डराओ-डांटो' वाली पद्धति अपनाते हैं, जबकि आज का बच्चा भावनात्मक रूप से पहले से कमजोर है क्योंकि सोशल मीडिया और पारिवारिक कॉम्पिटिशन उसे लगातार तनाव में रखता है.

सवाल 3- आजकल बच्चे भावनात्मक रूप से इतने कमजोर क्यों हो गए हैं?जवाब- लेंसेंट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया जर्नल की 2024 स्टडी में पाया गया कि भारत में 12-17 साल के 22% बच्चे क्लिनिकल डिप्रेशन के शिकार हैं, लेकिन सिर्फ 2% को ही प्रोफेशनल मदद मिल पाती है. जब ऊपर से टीचर बेइज्जत करे या शिकायत अनसुनी कर दे, तो बच्चा सबसे आसान रास्ता चुन लेता है- अपनी जान.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, आज के बच्चे पहले से ज्यादा सेंसिटिव हैं क्योंकि सोशल मीडिया, कॉम्पिटिशन और पारिवारिक प्रेशर उन्हें अकेला कर रहा है. छोटी उम्र में बुलिंग या बेइज्जती से उन्हें लगता है कि दुनिया खत्म हो गई. जैसे सिर्फ 9 साल की अमायरा बुलिंग से इतना डर गई कि चौथी मंजिल से कूद गई. इतनी ऊंचाई से बड़ों को भी झांकने में डर लगता है. शौर्य का इतना मजाक उड़ाया कि उसमें मेट्रो के आगे कूदने की हिम्मत आ गई.

कई बार बच्चे सुसाइड नोट में लिखते हैं कि कोई मेरी बात नहीं सुनता. पब्लिक ह्यूमिलिएशन से उन्हें लगता है कि वह बेकार हैं. पहले बच्चे सह लेते थे, लेकिन अब डिप्रेशन, एंग्जाइटी और तनाव जैसे मेंटल हेल्थ इश्यूज आम हो गए हैं.

सवाल 4- भारत में बच्चों की आत्महत्या के आंकड़े क्या कहते हैं?जवाब- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के डेटा के मुताबिक, 2023 में पूरे भारत में 13,892 स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया. ये 2013 के मुकाबले 65% ज्यादा है. कुल सुसाइड में स्टूडेंट्स का हिस्सा 8.1% रहा था. इसकी सबसे बड़ी वजहें एग्जाम में फेल होना, एकेडमिक प्रेशर, बुलिंग और मेंटल हैरासमेंट हैं.

2024-25 के आंकड़े अभी आए नहीं हैं, लेकिन ट्रेंड बढ़ता ही जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार गाइडलाइंस जारी की हैं कि स्कूलों में काउंसलिंग और एंटी-बुलिंग पॉलिसी अनिवार्य हो. लेकिन जमीनी स्तर पर अमल कम है.

NCPCR की 2024 रिपोर्ट कहती है कि 65% से ज्यादा स्कूलों में अभी भी कोई लिखित एंटी-बुलिंग पॉलिसी नहीं है और 78% स्कूलों में फुल-टाइम काउंसलर तक नहीं रखा गया.

सवाल 5- आखिर बच्चों को आत्महत्या से बचाने का हल क्या है?जवाब- जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा था, 'स्टूडेंट सुसाइड एक सिस्टेमिक फेल्योर है. एजुकेशन का असली मकसद रैट रेस बनाना नहीं, बल्कि बच्चे को सुरक्षित और खुश रखना है.' सुप्रीम कोर्ट ने 15 पैन-इंडिया गाइडलाइंस जारी कीं जो सभी स्कूलों, कॉलेजों, यूनिवर्सिटीज और कोचिंग सेंटर्स पर लागू हैं.

  • सभी शैक्षणिक संस्थानों में क्वालिफाइड काउंसलर या साइकोलॉजिस्ट रखना जरूरी है.
  • बच्चे की कैपेसिटी से ज्यादा टारगेट देना बैन है.
  • हर जगह हेल्पलाइन नंबर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना अनिवार्य है.
  • पैरेंट्स के लिए सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम चलाने हैं.
  • मेंटल हेल्थ पॉलिसी बुलिंग, रैगिंग, कास्ट डिस्क्रिमिनेशन और टीचर हैरेसमेंट पर फौरन एक्शन.
  • बच्चे के डिस्ट्रेस होने पर फौरन रेफरल प्रोटोकॉल होगा.

इसके अलावा टेली-मानस, मनोदर्पण और उम्मीद जैसे सरकार इनिशिएटिव शुरू किए गए हैं. अगर यह सब सही ढंग से लागू हो जाएं तो बहुत सारे बच्चे बच सकते हैं. इसके अलावा पैरेंट्स को अपने बच्चे पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. बच्चों की शिकायत को हल्के में न लेकर फौरन एक्शन लेना चाहिए. ये सिर्फ गाइडलाइंस नहीं, बच्चों की जिंदगी बचाने का जरिया है.