'मुझे हमारे अधिकारों पर भी वही समानता चाहिए जो हिंदू महिलाओं को हासिल है. मैं मुसलमान हूं, लेकिन पहले हिंदुस्तानी औरत हूं.'
23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच के सामने शाह बानो ने यह लफ्ज कहे, जो 24 अप्रैल के अखबारों की हेडलाइन बने. सुप्रीम कोर्ट में तो शाह बानो की जीत हुई, लेकिन इससे कांग्रेस सरकार मुश्किल में फंस गई. तब प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने इस केस के खिलाफ कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया. नतीजतन, यह केस राम मंदिर का ताला खोलने की चाबी बना और बीजेपी के लिए हथियार. अब 7 नवंबर 2025 को शाह बानो पर फिल्म 'हक' रिलीज हो रही है, जो पहले से विवादों में घिर गई है.
तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि फिल्म हक पर विवाद क्या, कैसे शाह बानो केस राम मदिंर खुलवाने की चाबी बना और राजीव गांधी के किस फैसले को बीजेपी ने हथियार बनाया...
सवाल 1- शाह बानो पर आधारित फिल्म 'हक' में ऐसा क्या है, जो विवाद की वजह बन गई?जवाब- 7 नवंबर को रिलीज होने वाली 'हक' में शाह बानो का किरदार यामी गौतम और मोहम्मद अहमद खान का किरदार इमरान हाशमी निभा रहे हैं. लेकिन 3 नवंबर को शाह बानो की बेटी सिद्दीका बेगम ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में याचिका दायर कर फिल्म को बैन करने की मांग की थी. शाह बानो के परिवार ने आरोप लगाते हुए कहा कि फिल्म ने उनकी प्राइवेसी का उल्लंघन किया है और फिल्म प्रोड्यूसर्स ने फिल्म बनाने से पहले उनकी इजाजत नहीं ली थी.
शाह बानो के नाती जुबैर अहमद खान ने ANI से कहा कि हमें टीजर देखकर पता चला कि उनकी नानी पर फिल्म बनी है. सिद्दीका के वकील तैसीफ वारसी ने ANI बताया कि यह फिल्म एमए खान बनाम शाह बानो बेगम के ऐतिहासिक मामले पर आधारित है. भारतीय इतिहास में पहली बार किसी मुस्लिम महिला ने गुजारे-भत्ते के लिए लड़ाई लड़ी और केस जीता था. किसी व्यक्ति की पर्सनल लाइफ या नाम का इस्तेमाल करने से पहले उसकी सहमति लेना जरूरी है, क्योंकि यह राइट टू प्राइवेसी के तहत आता है.
वहीं, फिल्म मेकर्स का कहना है कि घटनाओं को नाटकीय रूप देने के लिए कुछ स्वतंत्रता ली गई है और यह एक काल्पनिक चित्रण है.
सवाल 2- 1985 में शाह बानो का केस क्या था और सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था?जवाब- 1932 में मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली शाह बानो का मोहम्मद अहमद खान से निकाह हुआ था. उनके 5 बच्चे हुए, 3 बेटे (इरशाद, अली हुसैन, फैसल) और 2 बेटियां (सिद्दीका बेगम और रशीदा बेगम). 43 साल की शादी के बाद 1975 में खान ने दूसरी शादी कर ली और शाह बानो को घर से निकाल दिया. फिर 1978 में खान ने उन्हें तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) दे दिया.
मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, खान ने सिर्फ इद्दत (तलाक या विधवा होने पर 3 महीने अकेले गुजारना होते हैं) के लिए 200 रुपए महीना दिया. 62 साल की शाह बानो बिना कमाई के 5 बच्चों के साथ सड़क पर आ गईं. उन्होंने इंदौर की ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में CrPC की धारा 125 के तहत मेंटेनेंस मांगा. अगस्त 1979 में कोर्ट ने 25 रुपए महीना देने का आदेश दिया. जुलाई 1980 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भत्ता बढ़ाकर 179.20 रुपए महीना कर दिया. फरवरी 1981 में खान ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) दाखिल की. जस्टिस फजल अली और जस्टिस वरदराजन की बेंच ने इस केस को बड़ी बेंच को भेजा, क्योंकि यह सिर्फ पैसे का नहीं, बल्कि धर्म vs कानून का सवाल था.
23 अप्रैल 1985 को 5 जजों की बेंच (पूर्व चीफ जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़, जस्टिस रंगनाथ मिश्रा, जस्टिस डी. ए. देसाई, ओ. चिन्नप्पा रेड्डी और ई. एस. वेंकटरमैया) ने खान की अपील खारिज कर दी, शाह बानो को 500 रुपए महीना और 10 हजार रुपए एकमुश्त राशि (महर के बदले) देने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा, 'धारा 125 सभी पर लागू है, कानून धर्म से ऊपर है.'
यह पहला केस था जहां सुप्रीम कोर्ट ने पर्सनल लॉ vs सेक्युलर लॉ का मुद्दा उठाया था. पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने कहा, 'मुस्लिम हसबैंड का फर्ज सिर्फ इद्दत तक नहीं है, कुरान कहता है कि अच्छा व्यवहार करो.'
इस फैसले के साथ कोर्ट ने सरकार से यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की ओर आगे बढ़ने की बात कही.
सवाल 3- इस केस से कांग्रेस सरकार कैसे जुड़ी और राजीव गांधी ने क्या किया था?जवाब- शाह बानो फैसले के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने विरोध किया. बोर्ड का कहना था कि सु्प्रीम कोर्ट का फैसला इस्लाम पर हमला है. इस फैसले ने देश को दो खेमों में बांट दिया था. मुस्लिम कम्युनिटी में 'इस्लाम खतरे में' का नारा लगा. AIMPLB, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और बरेलवी लीडर ओबैदुल्लाह खान आजमी ने विरोध को लीड किया. दिल्ली, लखनऊ और हैदराबाद में प्रोटेस्ट हुए, जिसमें 1 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए.
BJP और RSS ने UCC लागू करने की मांग कर दी, लेकिन मुस्लिम विरोध को 'बैकवर्डनेस' कहा. AIMPLB ने राजीव गांधी पर मुस्लिम वोट खराब करने का दबाव बनाया. इसके आगे राजीव गांधी सरकार झुक गई. 1986 में सरकार ने लोकसभा में मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) बिल पेश किया और पास कर के कानून बना दिया. इसके मुख्य प्रावधान के तहत तलाकशुदा महिला को सिर्फ इद्दत तक मेंटेनेंस दिया जाएगा, उसके बाद रिश्तेदार या वक्फ बोर्ड जिम्मेदारी लेगा. इस कानून ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया.
सवाल 4- कैसे शाह बानो केस ने राजीव गांधी को राम मंदिर का ताला खुलवाने पर मजबूर किया था?जवाब- राजीव गांधी के फैसले को 'माइनॉरिटी अपीज' कहा गया. यानी वो काम जो अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए किया जाए. इससे हिंदुओं में नाराजगी बढ़ गई. BJP ने 'सॉफ्ट हिंदुत्व' शुरू कर दिया. देशभर में राजीव सरकार के खिलाफ एक माहौल देखने को मिला. 1984 के लोकसभा में सिर्फ 2 सीटों पर जीतने वाली BJP ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया. दबाव बढ़ता देख राजीव सराकर ने एक के बाद एक फैसले लिए.
हिंदुओं का समर्थन हासिल करने के लिए 1 फरवरी 1986 को राम मंदिर का ताला खुलवा दिया. हालांकि, सरकार के इस फैसले ने नए राजनीतिक मुद्दों को जन्म दिया. अयोध्या का मामला जो पहले राष्ट्रीय स्तर पर इतना व्यापक नहीं था, वो पूरे देश में मुद्दा बन गया.
BJP 40 साल बाद भी राजीव गांधी के इस फैसले को लेकर कांग्रेस को टारगेट करती है. पीएम मोदी ने एक भाषण में कहा था, 'राजीव गांधी ने शाह बानो का सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट उखाड़कर फेंक दिया और संविधान को बदल दिया, क्योंकि वोटबैंक की राजनीति करनी थी.'
सवाल 5- तीन तलाक को लेकर क्या-क्या बदलाव हुए और मौजूदा कानून क्या है?जवाब- 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लीकेशन एक्ट के तहत तीन तलाक वैध था. भारत दुनिया का आखिरी देश था, जहां यह लीगल था. पाकिस्तान, बांग्लादेश, मिस्र और यूएई जैसे 20 से ज्यादा देशों में इसे पहले ही बैन कर दिया था.
- 22 अगस्त 2017 को सायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 3:2 के बहुमत तसे इसे असंवैधानिक घोषित किया.
- कोर्ट ने कहा कि यह आर्टिकल 14 और आर्टिकल 15 का उल्लघंन है. यह अनैच्छिक, मनमाना और महिलाओं के खिलाफ है.
- कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार ने 2019 में मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) एक्ट पास किया, जो 12 जुलाई 2019 से लागू हुआ.
- इसका मुख्य प्रावधान तीन तलाक को खत्म करता है. तीन तलाक को किसी भी रूप में (मुंह से, लिखित, ई-मेल, एसएमएस, व्हाट्सएप मैसेज या अन्य) अवैध और शून्य करता है.
- तीन तलाक देने पर पति को 3 साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है. यह कॉग्निजेबल यानी बिना वारंट गिरफ्तार, नॉन-बेलेबल और क्रिमिनल ऑफेंस है.
- इसके तहत प्रभावित महिला (पत्नी) अपने बच्चों के भरण-पोषण की मांग कर सकती है.
- CrPC की धारा 125 के तहत मेंटेनेंस (भरण-पोषण) का हक बरकरार है.
- तलाक की धमकी भी अपराध मानी जाती है और यह पूरे भारत में लागू होता है.