अगर कोई आपसे पूछे कि हर महीने 4 लाख रुपए मिलें, तो काफी होंगे? शायद आप जवाब में हां कहें. लेकिन भारतीय गेंदबाज मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां का जवाब इससे जुदा है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हसीन से पूछा- 'क्या 4 लाख की रकम काफी नहीं है?' तो हसीन ने पहले से तैयार जवाब और मांग बताते हुए कहा- 'हर महीने 10 लाख रुपए गुजारा भत्ता.' क्योंकि मोहम्मद शमी के पास करोड़ों रुपए की जायदाद है.

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तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि मोहम्मद शमी का गुजारा भत्ता का मामला क्या है, यह कैसे तय होता है और क्या पति भी इसका हकदार है...

सवाल 1- मोहम्मद शमी और हसीन का मामला सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा और कोर्ट ने क्या कहा?जवाब- 2014 में मोहम्मद शमी और हसीन जहां की शादी हुई थी. हसीन जहां पहले से शादीशुदा थीं और उनके 2 भी हैं. वे कोलकाता नाइट राइडर्स में चीयरलीडर्स थीं. मोहम्मद शमी ने परिवार के खिलाफ जाकर हसीन से शादी की थी. 2015 में दोनों की एक बेटी आयरा हुई. लेकिन 2018 से दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया. हसीन ने शमी और उनके परिवार पर हिंसा करने के आरोप लगाए. शमी और हसीन अलग हो गए.

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इसके बाद हसीन ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अंतरिम भरण-पोषण की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया. ट्रायल कोर्ट ने बच्चे के लिए 80 हजार रुपए प्रति माह मंजूर किए, लेकिन हसीन को कोई भरण-पोषण देने से इंकार कर दिया.

हसीन की अपील पर सेशन कोर्ट ने 2023 में पत्नी के लिए 50 हजार रुपए और बेटी के लिए 80 हजार का मुआवजा देने का आदेश दिया. फिर 1 जुलाई 2025 को कलकत्ता हाईकोर्ट ने राशि बढ़ाकर हसीन को 1.5 लाख और बेटी को 2.5 लाख रुपए महीना कर दिया.

7 नवंबर को हसीन ने दोनों फैसलों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने शमी की लाइफस्टाइल और दौलत के हिसाब से राशि बढ़ाने की मांग की. याचिका में कहा कि 2021-22 में शमी के पास 48 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. इसलिए अब हसीन ने बेटी के लिए 7 लाख और अपने लिए 3 लाख रुपए महीना मेंटेनेंस मांगा.

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने हसीन को फटकारते हुए पूछा कि क्या 4 लाख रुपए की रकम भी काफी नहीं है? अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार और मोहम्मद शमी को नोटिस भेजकर चार हफ्ते में जवाब मांगा है.

सवाल 2- गुजारा भत्ता क्या होता है और इसकी रकम कैसे तय होती है?जवाबः जब एक व्यक्ति दूसरे कमजोर या अक्षम व्यक्ति को खाना, कपड़ा, घर, एजुकेशन और मेडिकल जैसी बेसिक जरूरत के लिए आर्थिक मदद करता है तो उसे गुजारा-भत्ता यानी मेंटेनेंस कहते हैं. हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत गुजारा-भत्ता दो तरह का होता है-

1. अंतरिम गुजारा-भत्ता: जब मामला कोर्ट में लंबित है तो उस दौरान के लिए जो गुजारा-भत्ता तय किया जाता है, वह अंतरिम गुजारा-भत्ता होता है. जैसे- तलाक का कोई केस यदि कोर्ट में गया तो अंतिम फैसला आने तक कोर्ट एक धनराशि तय करता है. जब तक मुकदमा चलेगा, पति को वह तय रकम पत्नी को गुजारे-भत्ते के रूप में अदा करनी होगी.

2. परमानेंट गुजारा-भत्ता: तलाक के अंतिम फैसले में कोर्ट द्वारा तय की गई राशि पति को आजीवन पत्नी को देनी होती है. इसके साथ कई बार कुछ नियम और शर्तें भी हो सकती हैं. जैसे कि जब तक पत्नी दोबारा विवाह न करे आदि. स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 36 और 37 में गुजारे-भत्ते के बारे में जरूरी प्रावधान किए गए हैं.

इसके अलावा स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा-36 और 37 में भी गुजारा भत्ता के लिए प्रावधान हैं. मेंटेनेंस कितना देना होगा ये व्यक्ति की आय, संपत्ति, जिम्मेदारी और जरूरतों को देखकर तय किया जाता है. इसकी कोई अपर या लोअर लिमिट तय नहीं है.

मुसलमानों के मामले वैध विवाह और निकाह से पहले हुए समझौते की स्थिति के मुताबिक निपटाए जाते हैं और उन पर मुस्लिम महिला कानून 1986 लागू होता है.

गुजारा भत्ता देते वक्त 4 बातें याद रखी जाती हैं...

  1. तलाक या सेपरेशन का कारण.
  2. गुजारा-भत्ता3 देने और मांगने वाले दोनों पक्षों की कमाई के स्त्रोत.
  3. महिला की आर्थिक स्थिति, जरूरतों और जिम्मेदारियां.
  4. पति की आर्थिक स्थिति और जिम्मेदारियां.

सवाल 3- अगर पति-पत्नी दोनों अच्छा कमा रहे हैं, क्या तब भी मेंटेनेंस मिलेगा?जवाब: सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं, 'पत्नी अगर कामकाजी है या वह शादी से पहले नौकरी करती थी, इसका मतलब कि उसकी शैक्षिक योग्यता इतनी है कि वह खुद नौकरी करके अपनी जीविका चला सकती है. इस स्थिति में महिला को गुजारा-भत्ता नहीं मिलता है.'

अक्टूबर 2023 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पति-पत्नी दोनों समान रूप से क्वालिफाइड हैं और एक बराबर कमा रहे हैं तो हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत पत्नी को मेंटेनेंस नहीं मिल सकता. मौजूदा केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां भी इसी तरफ इशारा कर रही हैं.हालांकि इसका कोई अंतिम नियम नहीं है. अगर दंपती के बच्चे हैं तो पति को पिता के तौर पर अपने बच्चों के भरण-पोषण का खर्च उठाना होगा. अगर पति की आय पत्नी से कई गुना ज्यादा है तो ऐसी स्थितियों में कोर्ट पति को गुजारा-भत्ता देने का आदेश दे सकता है.

विराग गुप्ता कहते हैं, 'अगर पत्नी कामकाजी तो है, लेकिन उसकी आय इतनी नहीं है कि वह अकेले अपनी कमाई से सारे खर्च वहन कर सके तो भी कोर्ट गुजारे-भत्ते का आदेश दे सकता है. गुजारे-भत्ते का अंतिम फैसला कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है.'

सवाल-4: क्या गुजारा भत्ता पाने का अधिकार पत्नी का है या पति को भी मिल सकता है?जवाब: हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 का सेक्शन 24 जेंडर न्यूट्रल है. यानी पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे से गुजारा-भत्ता मांग सकते हैं, लेकिन उसकी कुछ शर्तें हैं. जैसे-

  • यदि पति आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है.
  • यदि पति दिव्यांग है या किसी भी कारण से अपनी आजीविका कमाने में सक्षम नहीं है.
  • पति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है या वह किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है.

पत्नी पर गुजारा-भत्ता देने का दायित्व तभी होता है, जब वह आर्थिक रूप से मजबूत हो, सक्षम हो और पैसे कमा रही हो. हालांकि, व्यावहारिक तौर पर अदालतों में ऐसी अर्जी मंजूर नहीं होती.