बिना प्रोटेक्शन सेक्स करने वाले लोगों में एड्स का खतरा ज्यादा होता है. इस बीमारी का नाम सुनते ही हिचकिचाहट जरूर होती है, क्योंकि यह जानलेवा है. अब भारत में एड्स से बचाने वाली दवा ‘लेनाकापविर’ मिलने वाली है, जिसके 2 इंजेक्शन सालभर एड्स से महफूज रखेंगे. ट्रायल्स में इस दवा के रिजल्ट 100% रहे हैं. ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि लेनाकापविर क्या है और कैसे काम करती है समेत 5 जरूरी सवालों के जवाब…

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सवाल 1- लेनाकापविर क्या है और इसकी चर्चा क्यों हो रही है?जवाब- लेनाकापविर करीब 30 साल पुरानी दवा है, जिस पर 1990 के दशक से काम चल रहा था. लेकिन 2006 में गेलाड साइंसेज ने इसे ऑफिशियली डेवलप करना शुरू किया. यह दवा ह्यूमन इम्यूनोडेपिशिएंसी वायरस यानी HIV एड्स के इलाज और रोकथाम के लिए इस्तेमाल होती है. यह HIV-1 वायरस के कैप्सिड यानी प्रोटीन शेल को रोकती है, जिससे वायरस फैलता है. यह वायरस को कमजोर बनाकर उसके फैलाव को रोक देती है.

  • जून 2025 में US फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने HIV एड्स से बचाने के लिए साल में दो बार लेनाकापविर की डोज देने की मंजूरी दी थी.
  • सितंबर 2025 में डॉ. रेड्डी लेबोरेट्रीज और हेटरो ड्रग ने बताया कि 2027 तक इस दवा की ब्रिक्री भारत में शुरू हो सकती है.
  • अक्टूबर 2025 में गिलाड साइंसेज ने लेनाकापविर को भारत में बेचने की मंजूरी दे दी.

लेनाकापविर की चर्चा होने की सबसे बड़ी वजह है कि यह HIV की रोकथाम में 100% में गेम चेंजर साबित हुई है. मेडिकल डायलॉग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2025 में लेनाकापविर का तीसरा ट्रायल किया गया, जो सभी पैमानों पर खरा उतरा है. यानी कोई भी मरीज इसे ले रहा था, उसे HIV पकड़ नहीं सका.

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इससे पहले लेनाकापविर के दो ट्रायल हुए थे-

  • ट्रायल-1: 2021 में साउथ अफ्रीका और युगांडा में 5,338 महिलाओं और लड़कियों पर ट्रायल किया गया. इनमें लेनाकापविर लेने वालों में एक भी संक्रमित नहीं हुआ.
  • ट्रायल-2: 3,273 पुरुषों, ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों पर हुआ. इनमें 99.9% रिजल्ट मिले, सिर्फ 2 लोग संक्रमित हुए थे.

सवाल 2- HIV एड्स से बचाने वाली लेनाकापविर काम कैसे करती है?जवाब- वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेश (WHO) के मुताबिक, HIV वायरस एक 'कैप्सिड' नाम के प्रोटीन शेल के अंदर रहता है. यह कैप्सिड HIV-1 के p24 प्रोटीन से बना होता है, जो वायरस को प्रोटेक्ट करता है और उसके लाइफ साइकल को कंट्रोल करता है. लेनाकापविर दुनिया की पहली 'कैप्सिड इनहिबिटर' दवा है, जो सीधे इसे बाइंड करके बिगाड़ देती है. यह HIV के सभी स्टेज पर काम करती है.

आसान शब्दों में समझें तो लेनाकापविर शरीर में एक दीवार बना देती है, जिससे वायरस न तो अंदर घुस पाता है और न ही खुद को कॉपी कर पाता है.

अभी तक यह दवा गोलियों के रूप में दी जाती थी, लेकिन अब यह इंजेक्शन के फॉर्म में भी लगाई जाती है. 1 साल में दो बार यानी 6-6 महीने के गैप से इंजेक्शन लगाया जाता है. अगर HIV का जोखिम हो, तो दवा कैप्सिड को फौरन बिगाड़ देती है, जिससे वायरस फैलता नहीं है.

सवाल 3- लोनाकापविर भारत में कब से मिलेगी और कीमत क्या होगी?जवाब- 2 अक्टूबर 2024 को गिलियड साइंसेज ने डॉ. रेड्डीज लेबोरेट्रीज, एमक्योर फार्मास्यूटिकल्स, हेटेरो लेब्स और मायलन भारतीय कंपियनों को रॉयल्ट-फ्री लाइसेंस दिया. ये कंपनियां दवा बनाएंगी और भारत समेत 120 देशों में बेचेंगी.

भारत की ड्रग रेगुलेटर CDSCO के अप्रूवल के बाद लेनाकापविर को लॉन्च किया जाएगा. हालांकि, इसके लिए लोकल ट्रायल्स की जरूरत पड़ सकती है, जिस वजह से दवा को बाजार में आने में देर हो सकती है.

लेनाकापविर की कीमत करीब 3,300 रुपए तक हो सकती है. पहले यह प्राइवेट हॉस्पिटल्स में शुरू होगी फिर NACO प्रोग्राम में फ्री या सब्सिडी पर मिल सकती है.

सवाल 4- क्या लोनाकापविर के साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं?जवाब- मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हर दवा की तरह इसके भी कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. अच्छी बात यह है कि ज्यादातर साइड इफेक्ट्स हल्के होते हैं और समय के साथ कम हो जाते हैं. क्लिनिकल ट्रायल्स में 80-90% लोगों में कोई गंभीर समस्या नहीं हुआ और सिर्फ 1-2% लोगों ने दवा छोड़ी. लेकिन अगर कोई साइड इफेक्ट हो, तो तुरंत डॉक्टर से बात करना चाहिए.

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि इंजेक्शन लगवाने के बाद उस जगह पर दर्द, सूजन, लालिम, खुजली या निशान पड़ सकता है. जो 1-3 दिन में खुद ठीक हो जाता है. इसके अलावा कुछ लोगों में जी मिचलाना, सिरदर्द या पेट संबंध समस्याएं हो सकती हैं. जो वक्त के साथ ठीक हो जाती हैं.

सवाल 5- भारत में HIV एड्स के कितने मरीज हैं, आंकड़े क्या कहते हैं?जवाब- नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (NACO) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में भारत में करीब 23.48 लाख लोग HIV से संक्रमित थे. जो 2023 में बढ़कर 25.44 लाख हो गए. यानी 4 सालों में 8% मरीजों में बढ़ोतरी हुई.

2019 में 69,220 नए मरीज मिले थे, जो 2023 में घटकर 68,541 हो गए. यानी 1% की मामूली कमी हुई. 2019 में रोजाना करीब 190 नए केस थे, जो 2023 में 187 रह गए.

एड्स से मौतों में सबसे ज्यादा कमी आई. 2019 में करीब 58 हजार लोगों की मौतें हुईं थीं, जो 2024 में घटकर 35,866 रह गई. यानी 38-40% की गिरावट हुई. 

2019 से 2023 तक महामारी को कंट्रोल करने में सफलता तो मिली, लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं.