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'मेरी उम्र को लेकर मुझे कोई समस्या नहीं हैं. मैं जैसी दिखती हूं, उससे बहुत खुश हूं. कोई लड़की कैसी दिखती है, इसको लेकर लोग कभी खुश नहीं होते. लोग कुछ न कुछ कह ही देते हैं, जैसे नाक सीधी होनी चाहिए, रंग ऐसा हो, वजन ऐसा हो.'

बॉलीवुड एक्ट्रेस हुमा कुरैशी के बयान ने खूबसूसरती पर फिर बहस छेड़ दी है. दरअसल, जब भी किसी खूबसूरत लड़की की तस्वीर जहन में बनती है, तो उसका रंग गोरा ही सोचा जाता है. लेकिन यह ख्याल सिर्फ लड़कियों के लिए नहीं, बल्कि लड़कों के लिए भी है. जबकि हिंदू परंपरा में पुरुषों की सुंदरता का प्रतीक भगवान ‘कृष्ण’ को माना जाता है. वो श्याम वर्ण के थे. वाल्मीकि रामायण के मुताबिक भगवान राम का रंग भी सांवला था और वो बेहद सुंदर माने जाते हैं. तो फिर यह पैमाने बदल कैसे गए. ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि असल खूबसूरती आखिर होती क्या है, क्यों शरीर की कसी हुई बनावट असल सुंदरता बनी और हुस्न के पैमाने कैसे बदलते हैं...

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सवाल 1- गोरे रंग को खूबसूरत और काले को बदसूरत क्यों माना जाता है?जवाब- आज से कई सौ सालों पहले काले रंग को असल खूबसूरती माना जाता था और गोरे रंग को शैतानी. भारत में महिलाओं की सबसे पुरानी तस्वीरें मौर्य काल की हैं, जो चौथी से दूसरी सदी BCE तक की हैं और इनमें महिलाओं को 'बड़े ब्रेस्ट, चौड़े हिप्स और पतले पैरों' के साथ दिखाया गया है.

भरतुत की तस्वीरों में महिलाओं को 'खूबसूरती से चोटी किए हुए' बालों और बड़े गोल ब्रेस्ट, पतली कमर और चौड़े हिप्स के साथ दिखाया गया है. दिलचस्प बात यह है कि 'महिलाओं को उनके शारीरिक रूप के आधार पर अलग करने की कोई कोशिश नहीं की गई.' आधी सदी बाद शुंग काल में सांची में महिलाओं की तस्वीरों में उनके शरीर 'S' आकार के कर्व में मुड़े हुए दिखाए गए, जो सुंदरता का पैमाना था.

1292 में भारत आए इतालवी व्यापारी मार्को पोलो ने अपनी किताब 'द ट्रैवल्स' में लिखा है कि यहां सबसे काले इंसान को सबसे ज्यादा सम्मान मिलता है. ये लोग अपने देवताओं और मूर्तियों को काला और शैतानों को बर्फ की तरह सफेद दिखाते हैं.

लेकिन 16वीं शताब्दी के बाद मुगल शासन के दौरान, भारत के लोगों में गोरे रंग की ओर आकर्षण बढ़ा. मुगल शासक और उनके दरबार में सेंट्रल एशिया और फारसी मूल के लोग थे, जिनकी त्वचा ज्यादा गोरी थी. उनकी कला, साहित्य और जीवनशैली ने गोरेपन को शाही और अमीर वर्ग से जोड़ा. यह प्रभाव धीरे-धीरे समाज में फैलने लगा.

भारत में ब्रिटिश हुकूमत आई तो उसने काले-गोरे में भयंकर विभाजन शुरू कर दिया. क्योंकि सभी अंग्रेज गोरे थे, इसलिए उन्होंने गोरे रंग को बेहतर बताया और काले रंग को गुलामी, अज्ञानता और हीनता से जोड़ दिया. उनकी देखा-देखी भारत के उच्च वर्ग ने भी इस विचार को अपना लिया, क्योंकि वो अंग्रेजी शासकों के करीब रहना चाहते थे. इस दौरान गोरे रंग को लेकर एक मानसिकता बनी, जो आज भी कायम है.

बची-कुची कसर शायरी और फिल्मी गानों ने पूरी कर दी. उर्दू के मशहूर शायर साहिर लुधियानवी का एक शेर है,

'संग-ए-मरमर से तराशा हुआ वो शोख बदन,

इतना दिलकश है कि अपनाने को जी चाहता है .'

इसमें गोरे रंग को इतना ज्यादा खूबसूरत बताया है कि संग-ए-मरमर पत्थर से मिसाल दी है. इसके अलावा पंकज उदास का एक गीत है, 'चांदी जैसा रंग है तेरा' और आनंद बख्शी का गीत 'गोरे रंग पेइतना गुमान कर' जैसे गानों ने गोरे रंग को पैमाना बना दिया.

सवाल 2- तो फिर असल खूबसूरती होती क्या है और इसके पैमाने क्या हैं?जवाब- 'Beauty is in the eye of the beholder' यानी खूबसूरती देखने वालों की आंखों में होती है. इसकी कोई एक परिभाषा नहीं है, क्योंकि दुनियाभर में अलग-अलग थ्योरीज हैं.

रिचर्ड एफ. टेफलिंगर की रिसर्च स्टडी 'बायोलॉजी बेसिस ऑफ सेक्स अपील' के मुताबिक, 'कोई महिला या पुरुष प्रजनन और बच्चे पैदा करने के लिए प्राकृतिक रूप से जितना सक्षम और उपयोगी है, वो उतनी ही आकर्षक और सुंदर लग सकती है.'

इसी वजह से महिलाओं में सुंदरता के लिए सुडौल स्तन, लंबे बाल, सुराही जैसी गर्दन, चेहरे की सिमेट्री, बड़े और चौड़े हिप्स जैसे पैरामीटर इजाद हुए हैं. इसी तरह पुरुषों में लंबा कद, गठीला शरीर, भारी आवाज, घने काले बाल और चेहरे की सिमेट्री जैसे पैमाने इवॉल्व हुए हैं...

  • सुडौल स्तनों का मतलब महिला शारीरिक तौर पर मजबूत है और वो अपने बच्चों को पर्याप्त पोषण दे सकती है.
  • बाल लंबे हैं या आवाज सुरीली होने का मतलब है कि उसमें हॉर्मोनल डेवलपमेंट बेहतर तरीके से हुआ है.
  • बड़े हिप्स एरिया का मतलब है कि महिला अपने गर्भ में स्वस्थ बच्चे को आराम से रख सकती है.
  • इसी तरह लंबा कद, गठीला शरीर, भारी आवाज, घने काले बाल वाले पुरुषों की प्रजनन क्षमता अच्छी होने की संभावना ज्यादा होती है और वो स्वस्थ नस्ल पैदा कर सकते हैं.
  • चेहरे की लंबाई, चौड़ाई, आंखों की दूरी, नाक का आकार और होठों की स्थिति अगर एक सिमेट्री में है यानी शख्स में कोई विकार नहीं है. ये भी सुंदरता का पैमाना है.

 

सुंदरता मापने के लिए इस तरह गोल्डन सिमेट्री फेस थ्योरी का इस्तेमाल होता है. यानी आपके चेहरे को बीच से एक-दूसरे पर पलटा जाए तो आकार बराबर रहे.

सवाल 3- बदलते वक्त के साथ खूबसूरती के पैमाने किस तरह बदलते गए?जवाब- रेबेका गेल्स की रिसर्च स्टडी 'फेयर एंड लवली: स्टेंडर्ड ऑफ ब्यूटी, ग्लोबलाइजेशन एंड द मॉर्डन इंडियन वुमेन' के मुताबिक, समाज के सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी बदलावों के साथ खूबसूरती के पैमाने भी बदलते रहे हैं...

  • पुराने समय में मिस्र में काले रंग को सकारात्मक रूप में देखा जाता था और पतली आकृति को बेहतर माना जाता था.
  • ग्रीस और रोम में कसा हुआ शरीर और चमकदार त्वचा को खूबसूरती की निशानी माना जाता था.
  • मध्यकाल की शुरुआत से ईसाई धर्म में साधारण और मासूम दिखने वाली महिलाओं को अच्छा माना जाता था.
  • महिलाओं में निखरी हुई त्वचा को खूबसूरत और पतली दिखने वाली महिलाओं को बदसूरत कहा जाता था.
  • विक्टोरियन काल यानी 18वीं सदी के शुरू होने पर खूबसूरती का पैमाना बदलकर ठहराव, सादगी और सभ्यता वाला हुआ. उस समय महिलाओं को फुल स्कर्ट्स, कसे हुए कोरसेट्स और लंबी चादरों में देखा जाता था.
  • 20वीं सदी में हॉलीवुड फिल्मों का खूबसूरती पर बड़ा असर पड़ा. एक्ट्रेस मार्लिन मुनरो, ऑड्री हेपबर्न और ब्रिजिट बार्डोट जैसी हस्तियों ने स्टाइल और सुंदरता के पैमाने गढ़े. पतला शरीर, हल्का रंग और आकर्षक चेहरे को खूबसूरत माना गया.
  • अब 21वीं सदी में सिर्फ चेहरा या शरीर नहीं, आत्मविश्वास और खुशी भी सुंदरता का हिस्सा है. टीवी, फिल्मों और सोशल मीडिया पर हर तरह के लोग दिखते हैं. हर उम्र, रंग और आकार को सराहा जाता है.

 

इथियोपिया में मुर्सी और सूरी जनजातियों में जो महिलाएं होठ में जितना बड़ी प्लेट लगाती हैं, वो उतना ही खूबसूरत मानी जाती हैं.

सवाल 4- इसके बावजूद गोरा रंग पहली पसंद क्यों बना हुआ है?जवाब- मिसेज इंडिया रनरअप (2019) और पर्सनालिटी कोच डॉ. अलका खेमचंदानी कहती हैं, 'असल खूबसूरती काबिलियत होती है, न कि चेहरा, गोरा रंग या फिगर. गोरी त्वचा को खूबसूरत समझने की सोच इतनी मजबूत और विकसित हो गई है कि इस पर बात या बहस होती ही नहीं. अगर कोई जन्म से गोरा है तो वो पैदाइशी खूबसूरत है, लेकिन अगर कोई जन्म से काला होता है तो उसे खूबसूरत बोलने की बजाय गोरा करने के नुस्खों पर काम शुरू कर दिया जाता है. '

डॉ. अलका खेमचंदानी के मुताबिक, 'भारत में खूबसूरती का पैमाना कभी भी किसी का कलर नहीं रहा है, यह वेस्टर्न कल्चर का दिया हुआ है. आज के समय में इसमें सबसे बड़ा योगदान ब्यूटी प्रोडक्ट्स का है. वे खूबसूरती के झूठे स्टैंडर्ड सेट करते हैं, ताकि उनका प्रोडक्ट आसानी से बिक सके.'

सवाल 5- गोरा और खूबसूरत दिखने की चाहत में कैसे जोखिम बढ़ रहा है?जवाब- डॉ. अलका खेमचंदानी कहती हैं, 'गोरा दिखने के लिए लड़कियां और लड़के भी अपनी सेहत, सुरक्षा और खुशी को भी दांव पर लगा देते हैं. इसके लिए सर्जरी और कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट करवाते हैं. लिप फिलर्स या होंठों की सर्जरी भी होती है, क्योंकि गुलाब की पत्तियों जैसे होठों को खूबसूरत माना जाता है. इसके अलावा बालों के लिए हानिकारक ट्रीटमेंट, स्किन को नुकसान पहुंचाने वाले प्रोडक्ट्स, सख्त डाइटिंग और वजन घटाने के कई तरीके अपनाते हैं. इनसे नुकसान बढ़ जाता है. खूबसूरत दिखने के लिए सबसे जरूरी चीज है- कॉन्फिडेंस.'