बिहार में पहले चरण की 121 सीटों पर शाम 5 बजे तक 64.66% वोटिंग हुई है. अगर दूसरे और आखिरी फेज की 122 सीटों पर भी इसी तरह वोटिंग हुई, तो यह बिहार की राजनीति को पूरी तरह बदल सकती है. 3.75 करोड़ मतदाताओं में से लाखों लोग बूथों पर उमड़ पड़े, जिनमें युवा और बुजुर्ग तो थे ही, साथ ही महिलाएं भी शामिल थीं. इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (ECI) के ये आंकड़े, इतिहास रचने वाले थे. लेकिन यह सिर्फ नंबर्स नहीं, बिहार की राजनीति की धड़कन हैं. इतिहास गवाह रहा है कि जब भी बिहार में रिकॉर्ड वोटिंग हुई है, तब सत्ता ही नहीं, सियासी दौर बदल गया है.
तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि बिहार की रिकॉर्ड वोटिंग के क्या मायने, ज्यादा या कम वोट प्रतिशत से कैसे सियासत बदल जाती और राज्य में मतदाताओं ने जमकर वोट क्यों दिए...
सवाल 1- पहले चरण में कहां-कितनी वोटिंग हुई और ये रिकॉर्ड तोड़ने वाली कैसे बनी?जवाब- हां, बिल्कुल रिकॉर्ड तोड़ने वाली वोटिंग है. 6 नवंबर को सुबह 7 बजे मतदान शुरू हुआ, जो ज्यादातर जगहों पर शाम 6 बजे तक चलना था, लेकिन कुछ संवेदनशील इलाकों जैसे- सिमरी बख्तियारपुर (सहरसा जिला), महिषी (सहरसा), तारापुर (मुंगेर), मुंगेर, जमालपुर (मुंगेर) और सूर्यगढ़ा (मुंगेर) के 56 बूथों पर सुरक्षा कारणों से शाम 5 बजे ही खत्म कर दिया गया. बिहार के ECI चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर विनोद सिंह गुंजयाल ने शाम 7:30 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि 121 सीटों पर समय पूरा होने के बाद कुल 64.66% वोटिंग हुई, जो बिहार के इतिहास में सबसे ज्यादा है. ये आंकड़े 45,341 मतदान केंद्रों में से 41,943 से लिया गया था. कुल मिलाकर 3.75 करोड़ मतदाताओं में से करीब 2.25 करोड़ ने वोट डाला है.
अब जिला-वार ब्रेकडाउन देखिए, ये बताता है कि ग्रामीण इलाकों में उत्साह चरम पर था, जबकि शहरी पटना में थोड़ी सुस्ती थी...
- मुजफ्फरपुर: 70.96% – EBC और यादव वोटर सक्रिय रहे.
- समस्तीपुर: 70.63% – यहां ज्यादा वोटिंग ग्रामीण उत्साह का प्रतीक बना.
- बेगूसराय: 69.27% – सुबह 11 बजे तक ही 30.37% हो गया था. यहां BJP vs RJD की कांटे की टक्कर थी.
- वैशाली: 67.37%- महागठबंधन के अंदर ही फ्रेंडली फाइट देखने को मिली.
- मधेपुरा: 67.21% – सीमावर्ती इलाके में प्रवासी मजदूरों की वापसी से वोटिंग बूस्ट मिला.
- पटना: सिर्फ 57.93% – यहां कम वोटिंग रही, शहरी उदासीनता साफ दिखी. दीघा सीट पर तो 39.1% ही रहा.
सवाल 2- इस बार के मतदान प्रतिशत की तुलना में पिछले 5 चुनावी मतदान कैसे रहे?जवाब- 64.66% वोटिंग एक रिकॉर्ड है. 2020 चुनाव के पहले फेज में सिर्फ 55.82% वोटिंग हुई थी, यानी इस बार 8.84% वोटिंग ज्यादा हुई है...
| चुनावी साल | कुल वोटिंग प्रतिशत |
| 2025 | 64.66% (फेज- 1) |
| 2020 | 57.29% |
| 2015 | 56.91% |
| 2010 | 52.73% |
| 2005 (अक्टूबर) | 45.85% |
| 2005 (फरवरी) | 46.50% |
| 2000 | 62.57% |
ECI चीफ इलेक्शन कमिश्नर ज्ञानेश कुमार ने कहा, 'ये 1951 के बाद का सबसे ऊंचा टर्नआउट है. स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) ने 68 लाख डुप्लिकेट वोटर हटाए, जिससे साफ चुनाव हुआ.'
सवाल 3- जब पहले मतदान प्रतिशत ज्यादा या कम हुआ था, तो क्या हुआ?जवाब- बिहार में वोटिंग प्रतिशत राजनीति का थर्मामीटर है. ज्यादा मतलब असंतोष की लहर और कम मतलब पुरानी सरकार की हवा है. यानी जब-जब बिहार में 5% से ज्यादा वोटिंग बढ़ी या घटी, तो राज्य में सियासी भूचाल आया है. दरअसल, भारत के चुनावी इतिहास में माना जाता है कि जब वोटिंग ज्यादा होती है, तो जनता बदलाव यानी एंटी इनकंबेंसी चाहती है. लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता है. कई बार ज्यादा मतदान का मतलब सरकार के लिए समर्थन यानी प्रो इनकंबेंसी भी होता है...
ज्यादा टर्नआउट (60% से ऊपर): 2000 में 62.57% मतदान हुआ, तो राजद ने 124 सीटें जीतीं और 15 साल की सत्ता पाई. जंगलराज का दौर रहा, लेकिन यादव-मुस्लिम (MY) वोट एकजुट हुए. 2015 में 56.66% वोट से महागठबंधन (नीतीश-लालू) ने NDA को हराया, नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने. NDA की सत्ता गिरी, क्योंकि ग्रामीण-युवा वोटर बेरोजगारी पर गुस्से में थे.
कम टर्नआउट (50% से नीचे): 2005 (फरवरी) में 46.5% पर हंग असेंबली की वजह से राष्ट्रपति शासन लगा. फिर अक्टूबर में 45.85% पर NDA ने 206 सीटें लपकीं, नीतीश की दूसरी पारी शुरू हुई. लालू-राबड़ी शासन का अंत हुआ. तब सत्ता का बदलाव कम वोटिंग से हुआ. लेकिन 2020 में 57.29% पर NDA लौट आई, क्योंकि महिलाओं का टर्नआउट (59%) ज्यादा था, जिसे कल्याण योजनाओं ने बूस्ट दिया.
कुल मिलाकर 4-5% बढ़ोतरी 10-15 सीटें हासिल कर सकती है. 6 नवंबर को प्रशांत किशोर ने कहा, 'उच्च टर्नआउट नई राजनीति का संकेत है.'
इलेक्शन एनालिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, 'वोटिंग प्रतिशत बिहार की सड़ों पर चल रही जंग का आईना है. ज्यादा वोट प्रतिशत असंतोष दिखाता है. 2015 की तरह एंटी-इनकंबेंसी की लहर लाता है. लेकिन ये हर बार सही भी नहीं होता. बिहार में उच्च टर्नआउट महिलाओं और युवाओं से आता है, जो बदलाव चाहते हैं.'
सवाल 4- बिहार में रिकॉर्ड वोटिंग बढ़ने की क्या वजहें हैं?जवाब- पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसकी 3 बड़ी वजहें हैं...
- महिलाओं से वोटिंग प्रतिशत बढ़ा: NDA और महागठबंधन की ओर से महिलाओं के लिए योजनाओं का वादा किया गया. NDA की नीतीश सरकार ने चुनाव से पहले ही महिला रोजगार के तहत 1.21 करोड़ महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए की पहली किस्त डाल दी. वहीं, तेजस्वी यादव ने महिलाओं को हर साल 30 हजार रुपए देने का वादा किया. एक्सपर्ट्स का मानना है कि NDA और महागठबंधन के वादों की वजह से महिला वोटर्स की तादाद बढ़ी है.
- SIR ने वोटिंग बढ़ाने में मदद की: इससे वोटर लिस्ट रियलिस्टिक बन गई. पुरानी लिस्ट में फर्जी और मृत नामों से टर्नआउट कम लगता था. 68 लाख नए वोटर्स जुड़े, जिनमें युवा और महिलाएं ज्यादातर शामिल हैं. युवाओं को बेरोजगारी के मुद्दे और नौकरी के वादों ने वोट डालने पर मजबूर किया. वहीं, दूसरी ओर महागठबंधन ने इसे वोट चोरी का मुद्दा बनाया, जिसके चलते पिछड़ा और अति पिछड़ा वोटर इस बार बढ-चढ़कर वोट देने पहुंचे.
- बदलाव की पहल: बिहार में वोटिंग बढ़ने की एक वजह बदलाव की चाहत भी हो सकती है. प्रशांत किशोर की जनसुराज का चुनाव में आना लोगों के अंदर उम्मीद लेकर आया है. इसके अलावा 2010 के बाद अब छठ पर्व पर चुनाव हुए हैं. ऐसे में बाहर से आए लोग भी वोट देने के लिए रुक गए. यह वजह ज्यादा बड़ी तो नहीं है, लेकिन असरदार जरूर हो सकती है.
सवाल 5- दूसरे चरण की वोटिंग से क्या उम्मीदें हैं?जवाब- दूसरा चरण 11 नवंबर 2025 को 122 विधानसभा सीटों में होगा, जहां 3.5 करोड़ मतदाता हैं. पहले चरण की 64.66% से उम्मीदें ज्यादा हैं. ECI का अंदाजा है कि कुल टर्नआउट 65% को पार कर सकता है. पहले चरण के ट्रेंड्स दूसरे को प्रभावित करेंगे. ग्रामीण इलाकों और महिलाओं में उत्साह बना रहेगा.
अमिताभ तिवारी कहते हैं, 'वोटिंग बढ़ने से फायदा और नुकसान दोनों हो सकता है. बिहार में महिलाएं घरों से निकलकर वोट देने पहुंची हैं. वहीं, नीतीश कुमार के कोर-वोटर्स ने भी बड़ी तादाद में वोट दिया है. ये उनकी तरफ से नीतीश कुमार के लिए एक फेयरवेल की तरह है.'
हालांकि, कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार में इतनी एग्रेसिव वोटिंग सत्ता बदलने के लिए ही होती है. अगले फेज में अगर यही ट्रेंड रहा तो सरकार जा सकती है. कल तक नीतीश कुमार के प्रति लोगों की सिंपैथी दिख रही थी, लेकिन आज की वोटिंग उससे उलट लग रही है.