23 नवंबर को भारत से करीब 13 घंटे के सफर की दूरी पर 10 हजार साल पुराना ज्वालामुखी फट गया. रविवार की सुबह 8:30 बजे इथियोपिया के अफार क्षेत्र में हैली गूबी ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ. यह इतना भयानक था कि इसकी राख के बादल उत्तरी भारत की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे भारतीय विमानन प्राधिकरण (DJCA) और एयरलाइंस ने फ्लाइट संचालन पर नजर रखनी शुरू कर दी है. ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि ज्वालामुखी क्यों फटते हैं, इथियोपिया का ज्वालामुखी 10 हजार साल बाद कैसे फटा और इससे भारत पर क्या खतरा मंडरा रहा है...

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सवाल 1- इथियोपिया में ज्वालामुखी फटना असाधारण घटना क्यों है?जवाब- हैली गूबी ज्वालामुखी में हुए विस्फोट से उठने वाला धुआं करीब 18 किमी ऊंचाई तक पहुंच गया और लाल सागर पार करते हुए यमन और ओमान तक फैल गया. यह इतना पुराना और शांत ज्वालामुखी था कि आज तक इसका कोई रिकॉर्ड नहीं था. इस घटना में किसी की मौत नहीं हुई है लेकिन यमन और ओमान की सरकार ने लोगों को सावधानी बरतने को कहा है, खासकर जिन्हें सांस की तकलीफ रहती है.

एमिरात एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के चेयरमैन इब्राहिम अल जरवान ने कहा, 'यह घटना वैज्ञानिकों के लिए एक दुर्लभ मौका है, जिसमें वह एक ऐसे ज्वालामुखी को करीब से समझ सकते हैं, जो बहुत लंबे समय बाद जागा है.'

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हालांकि, ज्वालामुखी शांत होता दिख रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि शील्ड वॉल्केनो में शुरुआती विस्फोट के बाद कभी-कभी दोबारा धमाके भी हो सकते हैं.

 

ज्वालामुखी से निकला धुएं का गुबार 18 किलोमीटर दूर तक दिखाई दिया.

सवाल 2- ज्वालामुखी क्या होता है और यह कैसे फटता है?जवाब- ज्वालामुखी धरती की सतह पर मौजूद प्राकृतिक दरारें होती हैं. इनसे होकर धरती के आंतरिक भाग से पिघला हुआ पदार्थ जैसे मैग्मा, लावा, राख आदि विस्फोट के साथ बाहर निकलते हैं. ज्वालामुखी पृथ्वी पर मौजूद 7 टेक्टोनिक प्लेट्स और 28 सब टेक्टोनिक प्लेट्स के आपस में टकराने के कारण बनते हैं.

दरअसल, धरती 7 टेक्टोनिक प्लेट्स में बंटी है. धरती के नीचे की ये प्लेटें सालाना 2 से 10 किलोमीटर तक हिलती रहती हैं. प्लेटों की इसी हलचल से ज्वालामुखी बनते हैं...

  • सबसे पहले टेक्टोनिक प्लेटों के आपस में टकराने से गर्मी बढ़ती है और पृथ्वी की ऊपरी क्रस्ट के नीचे की चट्टानी परत (मैंटल) पिघलने लगती है.
  • मैंटल की चट्टानें पिघलने से गहराई से भाप और गैसें ऊपर उठती हैं और ऊपर की चट्टानों को भी पिघला देती हैं.
  • पिघली हुई चट्टानों से बना 1300 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला गाढ़ा पदार्थ यानी मैग्मा हल्का होने की वजह से धीरे-धीरे ऊपर उठता है.
  • मैग्मा ऊपर आकर इकट्ठा होने लगता है, जिसे मैग्मा चैंबर कहते हैं. मैग्मा में गैसें ज्यादा होने से पृथ्वी की क्रस्ट में दरारें पड़ती हैं.
  • दबाव बढ़ने पर मैग्मा इन दरारों से बाहर आने लगता है, जिसे ज्वालामुखी फूटना कहते हैं और मैग्मा लावा कहलाता है.

सवाल 3- ज्वालामुखी कितनी तरह के होते हैं?जवाब- दुनियाभर में ज्वालामुखी को ट्रैक करने वाली संस्था नेशनल पार्क सर्विस ( NPS) के मुताबिक, पूरी दुनिया में करीब 1600 ज्वालामुखी हैं. यह 3 तरह के ज्वालामुखी होते हैं...

1. शील्ड ज्वालामुखी: यह सबसे बड़े और सबसे चपटे होते हैं. लावा बहुत पतला और गर्म होता है, जो किलोमीटरों तक आराम से बह जाता है. इसलिए ढलान बहुत हल्की होती है, जैसे कोई बड़ी ढाल पड़ी हो. यह ज्वालामुखी फटते कम हैं, लेकिन जब फटते हैं तो लावा नदी की तरह बहता रहता है. जैसे हवाई के माउना लोआ और माउना केआ दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखी हैं.

2. स्ट्रैटो ज्वालामुखी या कम्पोजिट ज्वालामुखी: यह क्लासिक नुकीले और सुंदर पहाड़ जैसे दिखते हैं, जिन पर बर्फ भी रहती है. लावा गाढ़ा होता है, इसलिए जल्दी जम जाता है और ऊंचे गुबार बनते हैं. यह सबसे खतरनाक होते हैं क्योंकि बहुत जोर से फटते हैं. इनमें से राख, पत्थर, गैस सब उछलता है. जैसे जापान का माउंट फूजी, अमेरिका का माउंट रेनियर, क्राकाटोआ, मेरापी, मायोन, पोम्पेई को दबाने वाला वेसुवियस और पिनातुबो. दुनिया के 60-70% खतरनाक ज्वालामुखी इसी तरह के हैं.

3. सिंडर कोन ज्वालामुखी: यह सबसे छोटे होते हैं और एक ही बार में जोरदार फटते हैं. लावा के छोटे-छोटे टुकड़े हवा में उछलते हैं और ढेर बन जाता है. इनकी ऊंचाई 100-400 मीटर से ज्यादा नहीं होती. जैसे मेक्सिको का पैरिसुटिन ज्वालामुखी.

इनके अलावा लावा डोम ज्वालामुखी होते हैं, जो स्ट्रैटो ज्वालामुखी के अंदर या मुंह पर बनते हैं. कैल्डेरा ज्वालामुखी और फ्लड ज्वालामुखी भी होते हैं जिनसे लावा निकलता है लेकिन पहाड़ नहीं बनता.

सवाल 4- हैली गूबी ज्वालामुखी भारत के लिए खतरा क्यों बन सकता है?जवाब- गल्फ न्यूज के मुताबिक विस्फोट के साथ बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) भी निकला, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर को लेकर चिंता बढ़ गई है.

इब्राहिम अल जरवान ने कहा कि अगर ज्वालामुखी अचानक ज्यादा SO₂ छोड़ रहा है, तो यह बताता है कि अंदर दबाव बढ़ रहा है, मैग्मा हिल रहा है और आगे और विस्फोट हो सकता है.

आसमान में फैले राख की वजह से हवाई जहाजों को भी दिक्कत हो रही है. भारत के ऊपर भी राख आने की आशंका है, इसलिए दिल्ली-जयपुर जैसे इलाकों में उड़ानों पर नजर रखी जा रही है.

अधिकारियों ने बताया कि ज्वालामुखी विस्फोट के कारण सोमवार को कोच्चि हवाई अड्डे से रवाना होने वाली दो अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दी गईं. राख के कण इंजन को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए इंटरनेशनल विमानन प्रोटोकॉल के तहत सतर्कता बरती जा रही है.

दरअसल, ज्वालामुखी से निकला लावा असल में पिघला हुआ पत्थर होता है. इससे निकलने वाला लावा, राख और गैसें वगैरह आसपास के इलाके के लिए खतरा पैदा करते है. 

  • ज्वालामुखी से निकला पायरोक्लास्टिक या गर्म राख एक तरह से 800°C तापमान वाला आग का बादल होता है. इसमें शामिल जहरीली गैस और पत्थर तेज गति से कई किलोमीटर इलाके को तबाह कर सकते हैं.
  • ज्वालामुखी की राख में छोटे-छोटे कांच जैसे कण होते हैं, जो हवा के साथ फेफड़ों में जाकर सांस लेने में दिक्कत पैदा करते हैं, छतों पर जमा होकर उन्हें गिरा देते हैं, खेतों को बर्बाद कर देते हैं. इस वजह से भारत की तरफ बढ़ता गुबार चिंता का कारण बना हुआ है.
  • किसी ज्वालामुखी के फटने पर कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें लगातार निकलती रहती हैं.
  • जब ज्वालामुखी के पास बर्फ या झीलें पिघलकर राख से मिलती हैं, तो ‘लाहर’ यानी कीचड़ का बड़ा पहाड़ बन जाता है, जो 60 से 100 किमी प्रति घंटा की गति से दौड़ता है.
  • इसके अलावा ज्वालामुखी फटने से भूकम्प और सुनामी आने का खतरा भी होता है. समुद्र के नीचे ज्वालामुखी फटने से समुद्र में बड़ी लहरें पैदा होती हैं, जिसे ‘सुनामी’ कहा जाता है.