'वो सर्दियों की धूप की तरह गुम हो गया,लिपट रही है उसकी याद जिस्म से लिहाफ की तरह...'
मुसव्विर सब्जवारी के शेर में महबूब अपनी महबूबा को शिद्दत से याद कर रहा है, क्योंकि मौसम है सर्दियों का. जब हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड में भी 'महबूबा' को देखकर दिल कुलांचे भरता है. तकरीबन हर मर्द अपनेपन से भरे छुअन की चाहत में औरतों की तरफ प्यार भरी निगाहों से देखता है. सर्दियों में शरीर सिर्फ गर्मी नहीं, बल्कि मुहब्बत की आग मांगता है. साइंस की जुबान में इसे 'कफिंग सीजन' भी कहते हैं. ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि कैसे सर्दियों में पार्टनर की ज्यादा तलब लगती है, 4 महीने का प्यार ठंड में क्यों होता है और इसकी साइंटिफिक वजहें क्या हैं...
सवाल 1- सर्दियां आईं नहीं कि दिल बेकरार क्यों हो जाता है?जवाब- सर्दियों में जब हवा काटने लगती है, जब रातें लंबी और सन्नाटा गहरा होता है, तो ठंड हड्डियों में नहीं, रूह में उतरती है. इस कंपन से चीख निकलते हुए कहती है, 'मुझे कोई गले लगा ले, मुझे कोई अपना बना ले, वरना मैं मर जाउंगा इस ठंड में'. यह बेकरारी कोई नई नहीं, बल्कि सदियों से शायर लिखते आए हैं, 'ठिठुरती रातों में तेरा साथ चाहिए'. अब साइंस ने भी मान लिया कि यह हकीकत है.
90 के दशक में एक शोध में पता लगाने की कोशिश हुई कि क्या सेक्स करने का मूड भी मौसम के साथ बदलता है? इसके लिए शोधकर्ताओं ने चार चीजें देखीं- शादी के बिना होने वाले बच्चे, गर्भपात के मामले, यौन संक्रमण और कंडोम्स की बिक्री. उन्होंने पाया कि सर्दियों में यौन संबंध और असुरक्षित सेक्स में बढ़ोतरी होती है. हालांकि ऐसा कोई हालिया अध्ययन नहीं है जिससे पता चले कि यह ट्रेंड अब भी चल रहा है. अब इंसान मौकापरस्त हो गया है यानी जब भी सेक्स करने का मौका मिले, तो चूकेगा नहीं.
सिनेमा से जुड़ा भारत का सबसे बड़ा इवेंट ‘इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ हर साल सर्दियों में आयोजित होता है. रोमांटिक फिल्में भी इसी सीजन में खूब हिट होती हैं. इसकी वजह पता चलती है ’जर्नल ऑफ कंज्यूमर रिसर्च’ की एक रिपोर्ट से, जिसके मुताबिक ठंड के दिनों में लोगों को रोमांटिक मूवीज देखना और रोमांस से भरपूर कहानियां पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है. इसी मौसम में पोर्न वेबसाइट्स पर भी सबसे ज्यादा ट्रैफिक होता है. यह सब देखकर लोग गर्म महसूस करते हैं. इससे उन्हें मौसमी सर्दी से राहत मिलती है.
गर्मियों में सिंगल लोग खूब आजादी और मस्ती से रहते हैं, लेकिन जैसे ही नवंबर-दिसंबर आता है, अचानक एक पार्टनर की जरूरत महसूस होने लगती है. कोई ऐसा जो सर्द रातों में साथ रहे. उसे किसी प्रोग्राम में लेकर जाएं, तो रिश्तेदार सिंगल होने का ताना न दें और आपको किसी कपल को देखकर जलन न हो. यानी इस मौसम में लोग जान-बूझकर रिलेशनशिप तलाशते हैं, जिसे 'कफिंग सीजन' कहते हैं.
सवाल 2- सर्दियों में पार्टनर की जरूरत के बीच 'कफिंग सीजन' कहां से आ गया?जवाब- 'जर्नल SAGE’ पर मौजूद एक रिपोर्ट के मुताबिक, हेट्रोसेक्शुअल पुरुष यानी वो मर्द जो औरतों को रोमांटिक नजरों से देखते हैं, वह सर्दियों में औरतों के बॉडी शेप की तरफ सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं, जबकि गर्मियों में आकर्षण सबसे कम होता है. सर्दियों में युवाओं में रोमांस बढ़ता है, मगर वह कमिटमेंट नहीं चाहते. ऐसे में 4 महीने का इश्क यानी कफिंग सीजन शुरू हो जाता है.
कफिंग सीजन यानी हाथ में हथकड़ी लग गई हो और अब भागना मुश्किल हो. यह शब्द 2009 से बोलचाल में आया. 'हथकड़ी लग गई' यानी अब कमिटेड रिलेशनशिप में बंध गया. 2010 में 'अर्बन डिक्शनरी' ने सबसे पहले कफिंग सीजन टर्म को अपने शब्दकोष में जगह दी थी. 2017 में 'कोलिंस डिक्शनरी' ने इसे 'वर्ड ऑफ द ईयर' घोषित किया था.
दुनियाभर में हर साल सितंबर से जनवरी के बीच 'कफिंग सीजन' गूगल ट्रेंड में शामिल होता है. 'कफिंग सीजन' यानी वह समय जब सिंगल लड़के-लड़कियां सर्दियों में नए साथी की तलाश शुरू करते हैं और शॉर्ट टर्म रिलेशनशिप में जाते हैं. आमतौर पर कफिंग सीजन की शुरुआत अक्टूबर से होती है और वैलेंटाइंस डे के बाद खत्म हो जाती है.
कैलिफोर्निया की सैन जोस स्टेट यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफेसर क्रिस्टीन मा-केलमिस BBC को बताती हैं, 'कफिंग सीजन का सार यह है कि इंसानों के मिलन के व्यवहार भी मौसम के साथ बदल जाते हैं'.
टिंडर की 2024 ईयर इन स्वाइप रिपोर्ट के मुताबिक, कफिंग सीजन में नए मैच 42% तक बढ़ जाते हैं. बंबल के सर्वे में 87% यूजर्स ने कहा कि डेटिंग के छोटे-छोटे पल ही जिंदगी की आग जलाते हैं.
डेटिंग वेबसाइट मैच.कॉम के वैज्ञानिक सलाहकारों का भी कहना है, 'ऑनलाइन डेटिंग तो साल भर चलती रहती है. रोज लाखों-करोड़ों स्वाइप और मैसेज होते हैं लेकिन सर्दियों के महीनों में सचमुच एक बड़ा उछाल आता है.'
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि सर्दियों में लोगों से मिलना-जुलना कम हो जाता है. ठिठुरन भरी रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होते हैं. यह माहौल अकेलापन, एंग्जाइटी और डिप्रेशन बढ़ाता है. ऐसे में इंसान सोचता है कि कोई पार्टनर मिल जाए, तो सर्दियां सुकून से गुजर जाएं.
सवाल 3- आखिर कफिंग सीजन और पार्टनर की कमी ठंड में ही क्यों होती है?जवाब- मेलबर्न स्थित ‘बेकर हार्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट’ की एक रिसर्च के मुताबिक, सर्दियों में लोगों का मानसिक स्वास्थ्य थोड़ा कमजोर हो जाता है. दिन छोटे होते हैं, धूप बहुत कम मिलती है, ठंड बहुत रहती है, इसलिए लोग ज्यादातर घर के अंदर ही रहते हैं. इससे अकेलापन और उदासी बढ़ जाती है. धूप कम पड़ने से हमारे दिमा में सेरोटोनिन कम बनता है, जो हमारे मूड को बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाता है.
सेरोटोनिन कम हुआ तो पूरा बदन और मन दोनों सुस्त पड़ जाते हैं, जिसे सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) भी कहते हैं. इससे बचने के लिए लोग कोई रास्ता ढूंढते हैं या यूं कहें कि सर्दी में रोमांस ढूंढते हैं.
सेरोटोनिन के साथ ऑक्सीटोसिन यानी लव हार्मोन भी कम होने लगता है. ऐसे में आपका दिमाग सोचता है कि मुझे थोड़ा लव हार्मोन चाहिए, शायद यह इंसान मुझे दे सके. अपनी माशूका के करीब जाने से, उसे छूने से, गले लगाने, चूमने या सेक्स करने से भी ऑक्सीटोसिन बहुत तेजी से बढ़ता है. इस वजह से पहला प्यार या हनीमून भुलाया नहीं जाता.
सिर्फ रोमांटिक पार्टनर को ही नहीं, बल्कि मां के बच्चे को गले लगाने, उसे सहलाने, ब्रेस्टफीडिंग कराने पर भी उसमें ऑक्सिटोसिन लेवल बढ़ जाता है. रो रहे बच्चे को सहलाते ही उसके चुप हो जाने की वजह भी यही है. अपनेपन से भरे छुअन का यह अहसास ऑक्सिटोसिन हॉर्मोन का लेवल बढ़ा देता है, जो रिश्तों में बॉन्डिंग को मजबूत बनाने में अहम रोल निभाता है.
’यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो’ के रिसर्चर्स के मुताबिक, तन्हाई महसूस होने पर लोगों में ठंड का अहसास बढ़ जाता है. जबकि, अपनों के करीब रहने पर कड़कड़ाती सर्दी में भी गर्माहट का अहसास बना रहता है. लेकिन मजेदार बात यह है कि मर्दों और औरतों के शरीर में ठंड या गर्मी महसूस करने का तरीका अलग-अलग होता है.
औरतों के शरीर में त्वचा और मांसपेशियों के बीच ज्यादा चर्बी होती है, जिससे गर्मी त्वचा, हाथ-पैर और नाक की नोक तक ठीक से नहीं पहुंच पाती, साथ ही उनका मेटाबॉलिज्म पुरुषों से थोड़ा धीमा होता है, यानी शरीर कम गर्मी बनाता है. शायद इस वजह से लड़कों के मुकाबले लड़कियां सेक्स करने के लिए हमेशा तैयार नहीं रहतीं. लेकिन जब लड़कियां तैयार हो जाएं, तो फिर उन्हें चरम सुख देना लड़कों के बस से बाहर हो जाता है.
सवाल 4- तो क्या रोमांस की तलब सिर्फ हॉर्मोन्स के खेल के सिवा कुछ नहीं?जवाब- हां भी और नहीं भी. हॉर्मोन्स तो सिर्फ बहाना है, असल बात यह है कि इंसान को सर्दियों में लगता है कि मेरे अंदर खालीपन है और बाहर बर्फीली हवाएं. ऐसे में कोई इश्क में डूबा कपल दिख जाए, तो यह कॉम्पिटीशन भी बन जाता है. फिर सर्दी की जकड़न, जिस्म की तलब और ऊपर से अपनों का प्रेशर भी पार्टनर की तलाश में अहम कड़ी बनता है. जब हम अपनों के बीच होते हैं तो बार-बार याद दिलाया जाता है कि लोगों को हमसे पार्टनर और अपना परिवार बनाने की उम्मीदें हैं.
'द इंटिमेट एनिमल' किताब के लेखक जस्टिन गार्सिया के मुताबिक, 'दुनिया के किसी भी जीव से ज्यादा इंसान के प्यार और शादी-ब्याह में परिवार का दखल होता है. भले ही इस पर खुलकर न बोला जाए. हम जानते हैं कि लोग छुट्टियों और रोमांस को जोड़कर देखते हैं.'
क्रिसमस और न्यू ईयर जैसी छुट्टियां आती हैं तो सवालों की बौछार होती है कि किसे साथ ला रहे हो? कब शादी करोगे? वगैरह. इसी तरह भारत में शादियां सर्दियों में बढ़ती हैं और लव अफेयर्स वेलेंटाइन्स पर. दिसंबर-जनवरी की वो रातें, जब शादियां चरम पर होती हैं और बिस्तर पर नया जोड़ा एक-दूजे से लिपट रहा होता है.
हेल्थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम के डेटा के मुताबिक, सितंबर में 9.35% बच्चे जन्म लेते हैं, क्योंकि जनवरी-फरवरी की रंगीन रातों का नतीजा, अगस्त-नवंबर में आता है. 37% बच्चे अगस्त-नवंबर में आते हैं, मतलब ठंड की वो रातें बीज बोती हैं.
सवाल 5- सर्दियों की हसीन शामों को विंटर कोटिंग 'शर्म का मौसम' कैसे बना देता है?जवाब- 'विंटर कोटिंग' रिलेशनशिप से जुड़ा सबसे बदनाम टर्म है. अकेले रह रहे लोग खासकर सर्दियों के दौरान फिर से अपने पार्टनर के पास लौटते हैं और उनका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. ऐसे इरादों की वजह से ही इसे 'विंटर कोटिंग' का नाम दिया गया है. ऐसा करने वालों को 'विंटर कोटर्स' कहा जाता है.
यह विंटर कोटर्स अपने पिछले पार्टनर और रोमांटिक रिश्तों में सिर्फ इसलिए जाते हैं, ताकि ठिठुरते महीनों में वह फिर से गर्म हो जाएं. वह सिर्फ सेक्स करने की कोशिश करते हैं. विंटर कोटर्स को स्वार्थी माना जाता है. इनसे बचने के लिए...
- सोचें, एक्स पार्टनर ने पिछली बार कब और किस वजह से बात की थी.
- याद करें कि रिलेशनशिप कैसे माहौल में किस वजह से टूटा था.
- कहीं आपके पिछले साथी ने आपके साथ बेवफाई तो नहीं की थी.
- क्या एक्स पार्टनर पहले भी आपका इतना ही ख्याल रखता था.
- कहीं वह सिर्फ फिजिकल रिलेशन बनाने की कोशिश में तो नहीं है.
यह स्टेज होती है 'कैंसिल या कमिटमेंट' की. मतलब या तो अपने-अपने रास्ते निकल जाइए या फिर प्यार हो गया है, तो हमेशा साथ रहने का वादा करिए. हम रिश्तों से ही मजबूत होते हैं. रिश्ते में गलतियां करते हैं, सीखते हैं, समझते हैं कि हम कौन हैं और हमें चाहिए क्या. रिश्ते ही वह बर्तन हैं जिसमें हम पकते हैं, निखरते हैं. तस्लीम फाजली अपनी गजल में कहते हैं, 'प्यार जब हद से बढ़ा, तो सारे तकल्लुफ मिट गए'.