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Chehre Review: तारीख पर तारीख नहीं, एक ही सुनवाई में होता है यहां फैसला, अमिताभ बच्चन-इमरान हाशमी जमे

Chehre Review: दो बड़े सितारों वाली फिल्म लंबे समय बाद थिएटरों में है. अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी के फैन्स को यह फिल्म मजा देगी. अदालती खेल की इस कहानी का रोमांच बांधता है.

Chehre Review: असली अदालती मामलों में भले ही तारीख पर तारीख मिलती है मगर फिल्मों में दो-ढाई घंटे में ही काम तमाम हो जाता है. यही मजा भी है. थिएटरों में सिनेमा की वापसी हो चुकी है और अक्सर रूमानी-कॉमिक फिल्में लिखने वाले रूमी जाफरी बतौर निर्देशक कसी हुई थ्रिलर-मिस्ट्री लाए हैं. अदालतें नाटकीयता से भरपूर होती हैं और इस फिल्म में अदालत का नाटक है, जो असल से कम नहीं लगता. न्याय की दुनिया के कुछ रिटायर्ड बूढ़े अपनी हर शाम एक घर में इकट्ठा होते हैं और वहां कोई केस बनाकर अपनी अदालत लगाते हैं.

कभी-कभी उन्हें कोई व्यक्ति भी मिल जाता है, जिसके मामले पर वह अदालत जैसी जिरह कर लेते हैं और फैसले तक भी पहुंचते हैं. चेहरे बताती है कि अदालतें फैसले करती हैं, न्याय नहीं! फैसले और न्याय में फर्क है. फैसला तथ्यों के आधार पर होता है. अतः जरूरी नहीं कि वह फैसला न्याय ही हो. फिल्म में मनाली की भीषण बर्फबारी में दिल्ली जाने के लिए निकला एक एड एजेंसी का सीईओ समीर मेहरा (इमरान हाशमी) बीच में ही फंस जाता है. 


Chehre Review: तारीख पर तारीख नहीं, एक ही सुनवाई में होता है यहां फैसला, अमिताभ बच्चन-इमरान हाशमी जमे

एक तो रास्ते में गिरा पेड़ और उस पर कार का खराब होना. अचानक उसकी मुलाकात परमजीत सिंह भुल्लर (अन्नू कपूर) से होती है, जो उससे कहता है कि मौसम साफ होने तक वह उसके सीनियर सिटीजन दोस्तों के साथ समय बिता सकता है. दोनों रिटायर्ड जज जगदीश आचार्य (धृतिमान चटर्जी) के घर पहुंचते हैं. वहां उनकी मंडली के अन्य लोगों में प्रमुख हैं क्रिमिनल लॉयर के रूप में रिटायर हुए तलीफ जैदी (अमिताभ बच्चन) और जल्लाद रहे हरिया जाटव (रघुवीर यादव).


Chehre Review: तारीख पर तारीख नहीं, एक ही सुनवाई में होता है यहां फैसला, अमिताभ बच्चन-इमरान हाशमी जमे

बातों के सिलसिले में समीर मेहरा से पूछा जाता है कि क्या उसने कभी कोई अपराध किया है. समीर इंकार करता है कि कभी नहीं. गलत काम तक नहीं. फिर होते-होते वह बताता है कि कुछ समय पहले उसके पूर्व बॉस ओसवाल (समीर सोनी) की मौत हो गई. वह खड़ूस टाइप आदमी था. उसकी जगह ही कंपनी में समीर को प्रमोट किया गया है. इसी बिंदु पर लतीफ जैदी कहते हैं कि ठीक है, मान लेते हैं कि मेहरा ने ओसवाल का कत्ल किया है. केस चलाया जाए.


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कहानी के इस बिंदु पर सवाल पैदा होता है कि अब यह केस कैसे बढ़ेगा और किन तर्कों के आधार पर फैसला होगा कि मेहरा ने ओसवाल की हत्या की. तलीफ जैदी कहते हैं कि वह शानदार वकील के रूप में अपनी साख दांव पर लगाते हुए, अपने अनुभव से अदालत में साबित कर देंगे कि मेहरा ने ही समीर का कत्ल किया है. ऐसा नहीं कर सके तो भविष्य में यह खेल कभी नहीं खेलेंगे.


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अदालत चल निकलती है और मेहरा की बातों के बीच जैदी के तर्कों की रोशनी में दिखने लगता है कि समीर की हत्या हुई है. लेकिन क्या वाकई ऐसा हुआ. समीर की मौत की असली वजह क्या थी. क्या उसमें सचमुच मेहरा का हाथ था. जब तक दर्शक यह सोच रहे होते हैं कि कहानी उस मोड़ पर पहुंचती है, जहां बूढ़े दोस्तों की अदालत में मेहरा दोषी साबित हो जाता है. अब वहां पर फांसी का फंदा कसने वाला जल्लाद भी है. मेहरा का क्या होगा?

चेहरे एक रोचक कहानी है लेकिन इसमें ड्रामे का हिस्सा कम है. अधिकतर बातचीत चलती है. खास तौर पर पहले हिस्से में. दूसरे में जरूर जब मेहरा के पक्ष-विपक्ष में अदालती खेल की जिरह शुरू होती है और कुछ बातें खुलती हैं तो रोमांच बढ़ता है. मगर अंत में फिल्म न्याय व्यवस्था को लेकर अपनी राय जाहिर करते हुए पूरी तरह अमिताभ बच्चन के हाथों में आ जाती है, जहां वह 10-12 मिनट लंबा संवाद अकेले बोलते हुए भावनाओं का ज्वार पैदा करने की कोशिश करते हैं.


Chehre Review: तारीख पर तारीख नहीं, एक ही सुनवाई में होता है यहां फैसला, अमिताभ बच्चन-इमरान हाशमी जमे

उनकी बातों का सार यही आता है कि न्याय और फैसला अलग-अलग चीजें हैं. अदालतों और न्याय को लेकर दुनिया भर में तमाम विचार हैं. कागज पर कहानी मजबूत दिखती है. रंजीत कपूर-रूमी जाफरी की कलम से इसके कुछ मजबूत हिस्से निकले हैं. कुछ संवाद भी बढ़िया हैं. रूमी जाफरी की निर्देशन पर पकड़ है और एक सीमित दायरे में भी वह बांधे रखने में सफल हैं.


Chehre Review: तारीख पर तारीख नहीं, एक ही सुनवाई में होता है यहां फैसला, अमिताभ बच्चन-इमरान हाशमी जमे

निदा फाजली का प्रसिद्ध शेर हैः हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी/जिसको भी देखना हो, कई बार देखना. परफॉरमेंस के स्तर पर अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी दोनों बढ़िया हैं. उनके किरदारों में अलग-अलग शेड्स नजर आते हैं. दोनों अपने किरदारों से भावनात्मक अपील पैदा करते हैं. दर्शकों को आकर्षित करते हैं. अन्नू कपूर, रघुवीर यादव, धृतिमान चटर्जी के रोल रोचक हैं. रिया चक्रवर्ती की भूमिका छोटी है लेकिन इमरान हाशमी के साथ दो-एक जगह वह असर छोड़ती हैं. क्रिस्टल डिसूजा, समीर सोनी और सिद्धांत कपूर ने अपनी भूमिकाएं स्क्रिप्ट के अनुसार निभाई हैं. जिन दर्शकों को अदालती ड्रामा और क्राइम का मिक्स अच्छा लगता है, चेहरे उनके लिए हैं. 

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