जावेद अख़्तर साहेब का एक शेर है "डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से,लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा".  आजकल बहुत से लोग घूमने का सोचते ही घबराने लगते हैं. कुछ लोगों को तो ट्रैवल के लिए प्लान बनाते ही डर लगने लगता है. यह कोई आम आलस नहीं है, बल्कि इसके पीछे साइकोलॉजिकल और मेंटल कारण होते हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि घबराहट, डर या चिंता तब होती है जब हमारा दिमाग नई और अनजान चीजों के बारे में सोचता है.

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जब हम कहीं नई जगह जाते हैं, तो हमें पता नहीं होता कि वहां क्या होगा, रास्ता कैसा है, लोग कैसे हैं या वहां सुरक्षित रह पाएंगे या नहीं. हमारा दिमाग इसे खतरे के रूप में देखता है और हम तुरंत घबराहट महसूस करते हैं. चलिए आपको बताते हैं कि इस डर के पीछे क्या वजह होती है.

परफेक्शन और प्लानिंग का दबाव

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कई लोग घूमने के लिए पूरी प्लानिंग करते हैं. होटल, खाना, ट्रैवल टाइम हर चीज पर ध्यान देना पड़ता है. जब यह सोचकर तनाव होता है कि सब सही होगा या नहीं, तो दिमाग ऑटोमैटिकली चिंता पैदा कर देता है.

सोशल और मेंटल फियर

आजकल सोशल मीडिया पर हर कोई अपनी ट्रिप्स के फोटोज शेयर करता है. इससे लगता है कि “मुझे भी वैसा करना चाहिए” या “अगर मैं मजा नहीं उठा पाया तो?” यह फियर भी घबराहट बढ़ाता है.

पैसे की चिंता

यात्रा में खर्चा आता है और कई लोग इसे लेकर स्ट्रेस महसूस करते हैं. उन्हें लगता है कि कहीं पैसे की वजह से समस्या न हो जाए.

 डर को कैसे कम करें?

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ऐसे डर को कम करना मुश्किल नहीं है. सबसे पहले, छोटे स्टेप्स में यात्रा शुरू करें. जैसे सिर्फ पास के किसी हिल स्टेशन या छोटे शहर की ट्रिप. धीरे-धीरे नया माहौल आपके लिए आम हो जाएगा. दूसरा, यात्रा के लिए अच्छे से प्लान बनाएं, लेकिन ज्यादा चिंता न करें. कुछ चीजें फीलिंग और एक्सपेरियंस पर निर्भर करती हैं. हर चीज कंट्रोल में नहीं हो सकती. तीसरा, मेंटल प्रिपरेशन जरूरी है. ध्यान, मेडिटेशन और पॉजिटिव सोच ट्रैवल की घबराहट कम कर सकते हैं. खुद से कहें, मैं इसे एंजॉय करूंगा, परफेक्ट होने की जरूरत नहीं.तो अगली बार जब घूमने का नाम सुनकर डर लगे, समझिए कि यह आम बात है और इसे धीरे-धीरे मैनेज किया जा सकता है. ट्रैवल का असली मजा तब आता है जब हम फ्री होकर नई चीजें एक्सप्लोर करें और डर को पीछे छोड़ दें. आप इस तरह से डर को पीछे छोड़कर सफर का मजा ले सकते हैं. 

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