गोरखपुर के चौरीचौरा की ऐतिहासिक धरती पर बंजारों की कुलदेवी का ऐतिहासिक मंदिर है. सदियों पुराने इस मंदिर की विशेष महत्‍ता है. आम श्रद्धालुओं की आस्‍था का केन्‍द्र ये मंदिर विकास से कोसों दूर है. लेकिन, बरसों पहले खुद प्रकट होने वाली बंजारी देवी की इस मंदिर में बंजारों ने पूजा-अर्चना शुरू की थी. तब ये क्षेत्र पूरी तरह से वनों से घिरा हुआ था. बंजारों की कुलदेवी होने की वजह से इस मंदिर का नाम बंजारी देवी पड़ गया. नवरात्रि पर इस मंदिर का महत्‍व बढ़ जाता है. श्रद्धालु यहां पर माथा टेकने के लिए आते हैं. उनकी हर मुराद भी मां पूरी करती हैं.

गोरखपुर से 30 किलोमीटर दूर स्थित है मंदिर

गोरखपुर से 30 किलोमीटर पूरब चौरीचौरा के नई बाजार में स्थित बंजारी देवी मंदिर सदियों पुराना है. जब ये क्षेत्र वनाच्‍छादित रहा है, तो यहां पर मां बंजारी देवी प्रकट हुईं थी. सदियों पहले इस स्‍थान पर माता ने बंजारों को स्‍वयं दर्शन दिया था. उसके बाद घने जंगल के बीच बंजारों ने यहां माता को कुलदेवी मानकर पूजा शुरू की थी. यही वजह है कि मां का नाम बंजारों ने बंजारी देवी रख दिया. आज भी बंजारी माता के मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्‍या सैकड़ों में है. दूर-दराज से लोग यहां पर आकर अपनी मन्‍नतें मांगते हैं. नवरात्रि के पावन समय में इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है.

 बंजारी देवी मंदिर में पूजा करते श्रद्धालु

यह मंदिर जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है. छोटा मंदिर होने के बावजूद यहां आने वाले श्रद्धालुओं की आस्‍था कम नहीं हुई है. बरसों से यहां पर आकर माता के दरबार में मन्‍नतें मांगने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि उनकी सारी मनोकामनाएं मां के दरबार में पूरी होती हैं. वे कहते हैं कि नवरात्रि पर मां के दरबार में लोग विशेष रूप से आते हैं. मां किसी को निराश करके वापस नहीं भेजती हैं. सभी की मनोकामना पूरी होती है. यही वजह है कि वर्षभर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ माता के दरबार में मन्‍नतें मांगने के लिए जुटती है.

बंजारों की कुलदेवी होने के नाते सदियों से वनों में रहने वाले श्रद्धालु बंजारी देवी को कुलदेवी मानकर उनकी पूजा करते रहे हैं. आज विकसित ये क्षेत्र विकसित होने के साथ ही भले ही बंजारे यहां पर नहीं है. लेकिन, सदियों पुराने बंजारी देवी के इस मंदिर में आस्‍था और लोगों को व‍िश्‍वास इतना गहरा है कि वो मंदिर की ओर किसी भी परेशानी और मुश्किल के समय में खिंचे चले आते हैं. 

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