स्कूल बैग बना बच्चों का दुश्मन, हो रहा है कमरदर्द और कई गंभीर बीमारियां!
ABP News Bureau | 06 Sep 2016 07:19 AM (IST)
नईदिल्लीः अक्सर बच्चे स्कूल बैग के बोझ तले दबे नजर आते हैं. लेकिन अब इस बोझ के चलते हो रही हैं बच्चों को गंभीर बीमारियां. ये हम नहीं कह रहे बल्कि एक रिसर्च में बात सामने आई है. हाल ही में की गई रिसर्च में पाया गया कि 7 से 13 साल के 68 फीसदी बच्चों को ना सिर्फ पीठदर्द की समस्या हो रही है बल्कि कुबड़ापन भी हो रहा है. एसोसिएटिड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) के तहत हेल्थकेयर कमेटी ने इस रिसर्च की. जिसमें भारत के 13 साल तक की उम्र के 68 फीसदी बच्चे हल्का कमर दर्द महसूस करते हैं जो कि बाद में विकसित होकर गंभर दर्द या फिर कुबड़ापन के रूप में सामने आ सकता है. सर्वे में पाया गया कि 7 से 13 साल के 88 फीसदी बच्चे 45 फीसदी वजन आर्ट किट, स्केसट्स, स्विमबैग, क्रिकेट किट और ताइकांडो किट्स का कमर पर उठाते हैं जो कि गंभीर स्पाइनल डैमेज और कमर की समस्याओं के लिए जिम्मेदार है. एसोचैम की हेल्थ कमेटी के चेयमैन राव का कहना है कि बच्चे बैग के बोझ के कारण स्लिप डिस्क के शुरूआती चरण, स्पॉन्डिलाइटिस, स्पोंडिलोलिस्थीसिस, लगातार पीठ में दर्द की शिकायत, रीढ़ की हड्डी में दर्द जैसी समस्याओं को झेल रहे हैं. जबकि चिल्ड्रंस स्कूल बैग एक्ट 2006 के मुताबिक, बच्चों के स्कूल बैग का वजन उनके वजन से 10 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. नर्सरी और प्ले स्कूल के बच्चों को स्कूल बैग की मनाही है. नर्सरी और प्ले स्कूल के लिए बैग्स को लेकर अलग से गाइडलाइंस हैं. साथ ही ये भी राज्य सरकार को सलाह है कि वे बच्चों को लॉकर की सुविधा मुहैया करवाएं. बहुत ज्यादा और बेवजह का बोझ बच्चों की पीठ के लिए परेशानी का सबब बन सकता है साथ ही उनकी रीढ़ की हड्डी में भी समस्या आ सकती है. इतना ही नहीं, अत्यधिक बोझ ले जाने का तनाव बच्चों की मसल्स को सही से विकसित होने से रोकता है, खासतौर पर बच्चों के कंधों के आसपास की मसल्स को. राव का कहना है कि अगर बच्चों को कम उम्र में ही कमर दर्द की शिकायत है ये संभव है कि बच्चों को ताउम्र कमर दर्द की समस्या हो सकती है. ये रिसर्च देश के दस शहरों दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बैग्लोर, मुंबई, हैदराबाद, पुने, अहमदाबाद, लखनऊ, जयपुर और देहरादून में 2500 से अधिक बच्चों और 1000 अभिभावकों पर की गई. सर्वे के दौरान अधिकत्तर अभिभावकों ने शिकायत की है कि औसतन बच्चों को दिनभर में 7 से 8 पीरियड के लिए 20 से 22 किताबों और कॉपियों का बोझ रोजाना ले जाना होता है. स्केट्स, ताइकांडो के उपकरण, स्विम बैग और क्रिकेट किट भी हर दूसरे-तीसरे दिन ले जानी होती है बहुत ही कम स्कूल ऐसे हैं जो स्पोट्र्स किट के लिए स्कूल में लॉकर्स मुहैया करवाते है.