Ramayan : महर्षि विश्वामित्र क्षत्रिय कुल में जन्म के कारण अपने वचन के पक्के माने जाते थे. कहा जाता है कि उनके मित्र राजा त्रिशंकु की इच्छा थी कि वह सशरीर स्वर्गधाम जाएं, लेकिन प्रकृति के नियमों के अनुसार यह संभव नहीं था. ऐसे में त्रिशंकु सिद्धियों से भरपूर गुरु वशिष्ठ के पास गए, लेकिन उन्होंने नियमों के विरुद्ध ना जाने का फैसला लिया. निराश त्रिशंकु वशिष्ठ के पुत्रों के पास गए और आपबीती बताई तो पुत्रों ने क्रोधित होकर उन्हें चांडाल हो जाने का श्राप दे दिया. इसे अपना अपमान मानते हुए त्रिशंकु अपने मित्र विश्वामित्र के पास गए.


विश्वामित्र ने कहा- मैं भेजूंगा स्वर्ग


विश्वामित्र ने सारी बात सुनकर उन्हें उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दे दिया. उन्होंने इसके लिए महायज्ञ शुरू किया, जिसमें वशिष्ठ पुत्रों समेत कई ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया. मगर यज्ञ का कारण जानने के बाद वशिष्ठ पुत्रों ने तिरस्कार करते हुए कहा कि हम ऐसे किसी यज्ञ में शामिल नहीं होंगे, जो एक चांडाल के लिए किया जा रहा हो और किसी क्षत्रिय पुरोहित के माध्यम से कराया जा रहा हो.


इतनी बात सुनते ही विश्वामित्र आग बबूला हो गए और उन्होंने श्राप दे दिया, जिससे वशिष्ठ के पुत्रों की मृत्यु हो गई. यह देखकर सभी भयभीत हो गए और यज्ञ में शामिल हो गए. यज्ञ पूरा होने के बाद देवताओं का आह्वान किया गया, लेकिन कोई नहीं आया. इस पर क्रोधित विश्वामित्र ने अपने तप से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग लोक भेज दिया, लेकिन इंद्र ने उन्हें यह कहते हुए लौटा दिया कि वो शापित हैं, इसलिये स्वर्ग में नहीं रह सकते.


अब त्रिशंकु का शरीर धरती और स्वर्ग के बीच ही अटक गया. ऐसे में विश्वामित्र ने अपना वचन पूरा करने के लिये त्रिशंकु के लिए नया स्वर्ग सप्तऋषि की रचना कर दी. इससे भयभीत देवताओं ने विश्वामित्र से प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि मैंने अपना वचन पूरा करने के लिए यह किया है. अब त्रिशंकु इसी नक्षत्र में रहेगा, मगर आश्वासन देता हूं कि देवताओं की सत्ता को हानि नहीं होगी. 


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