धर्म: प्रत्येक जीव सम्मान का अधिकारी है. भारतीय संस्कृति में प्रत्येक जीव को सम्मान दिया भी जाता है. पुराणों में ऐसी बाते कहीं गई है. जिसमें पशु-पक्षियों का वर्णन देवता स्वरूप में किया जाता है. जैसा कि हम सभी जानते हैं गरुड़ देवता भगवान विष्णु के वाहन है, तो नाग शिव के गले का हार है. मां दुर्गा शेर पर सवार है, तो कार्तिकेय के साथ मयूर वाहन है. इसी प्रकार इस शास्त्रों में गाय के महत्व को सर्वोपरि माना गया है. गाय को गौमाता कहा गया है. पुरातन काल में इसे गौ-धन कहा जाता था. स्वयं भगवान श्री कृष्ण गौ माता के भक्त थे. उनका लगभग पूरा जीवन गायों के इर्द-गिर्द ही बीता. 


33 करोड़ देवी-देवताओं का वास 


कहा जाता है गौमाता में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है. धर्मशास्त्रों के अनुसार जब-जब पृथ्वी पर पाप बढ़ता है, धर्म का नाश होता है, तो पृथ्वी परम पिता परमेश्वर के पास गौमाता के रूप में पहुंचती है तथा पाप का बोझ कम करने की प्रार्थना करती है. गौ माता की पुकार सुनकर प्रभु पाप का अंत करने के लिए स्वयं अवतरित होते हैं और पापियों का विनाश करके धर्म की पुनः स्थापना करते हैं. इससे यह पता चलता है कि पृथ्वी में बढ़ रहे पापों का नाश करने के लिए परमपिता से आग्रह पृथ्वी मां गौमाता के रूप में करती हैं.


ग्रंथों के अनुसार, गौमाता के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है. गौमाता के शरीर का शायद ही कोई भाग ऐसा हो, जिस पर किसी देवता का वास न हो. इस प्रकार गौमाता संपूर्ण ब्रह्मांड अर्थात साक्षात नारायण का स्वरूप हैं. इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि मात्र गौमाता की पूजा-अर्चना करने से सृष्टि के 33 करोड़ देवी - देवताओं की आराधना का फल मिलता है. इसलिए घर में बनी पहली रोटी गौमाता को खिलाने का प्रावधान है. इससे गौमाता के साथ-साथ नारायण का आर्शीवाद भी प्राप्त होता है. नारायण तक पहुंचने का सीधा रास्ता गौमाता की ओर से गुजरता है.


गौमाता की सेवा करने वाले को अंत में बैकुंठ की प्राप्ति होती है. जो व्यक्ति गौमाता की सेवा करता है, वह जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है. यानी जिस घर में गौ माता का वास होता है, वहां 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं. इस प्रकार गौमाता की सेवा करने वाले को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. घर-परिवार में सुख-समृद्धि भी बढ़ती है.


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