Why ganesh ji is worshipped with laxmi mata: दीपावली का पर्व सिर्फ रोशनी और खुशियों का उत्सव नहीं, बल्कि धन, बुद्धि और संतुलन का प्रतीक भी है. इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो धन और वैभव की देवी मानी जाती हैं. लेकिन हर पूजा में उनके साथ श्रीगणेश की उपस्थिति अनिवार्य होती है. आखिर क्यों? इसके पीछे गहरी पौराणिक कथा और जीवन दर्शन छिपा है.

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महापुराणों में उल्लेख है कि एक समय माता लक्ष्मी को अपने वैभव पर अभिमान हो गया था. उन्हें लगा कि समस्त जगत उनकी कृपा पर निर्भर है. तब भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया कि भले ही उनके पास धन, वैभव और आदर है, लेकिन संतान सुख के बिना उनका जीवन अधूरा है. यह सुनकर लक्ष्मी जी का अभिमान टूट गया और वे दुखी हो गईं.

लक्ष्मी जी अपने इस दुःख को माता पार्वती के पास लेकर गईं. पार्वती जी ने उनकी करुणा देखकर अपने पुत्र गणेश को उन्हें गोद में दे दिया और कहा, “आज से गणेश तुम्हारे पुत्र होंगे.” इस दया और स्नेह से लक्ष्मी जी का मन प्रसन्न हो गया. उन्होंने गणेश जी को वरदान दिया कि आगे से जहां भी मेरी पूजा होगी, वहां तुम्हारी पूजा सबसे पहले की जाएगी.

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तब से हर शुभ अवसर, विशेषकर दीपावली पर, श्रीगणेश को पहले पूजकर ही माता लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जहां गणेश नहीं, वहां लक्ष्मी का स्थायी वास भी नहीं होता.

दार्शनिक अर्थ – धन और बुद्धि का संतुलनयह कथा केवल पौराणिक नहीं, बल्कि जीवन का गहरा संदेश भी देती है.गणेश जी बुद्धि और विवेक के प्रतीक हैं, जबकि लक्ष्मी जी धन और समृद्धि की देवी हैं. यदि व्यक्ति के पास धन हो, पर बुद्धि न हो, तो वह धन विनाश का कारण बन सकता है.बुद्धि के साथ धन का संगम ही सच्ची समृद्धि है. गणेश जी “शुभ” और “लाभ” दोनों के स्वामी हैं, जो बताते हैं कि धन का उपयोग तभी लाभदायक है जब उसमें शुभता हो. इसीलिए दिवाली पर पहले गणेश जी की पूजा होती है, ताकि विवेक, निर्णय क्षमता और सद्बुद्धि प्राप्त हो. उसके बाद लक्ष्मी जी की आराधना से घर में धन और सुख-समृद्धि का आगमन होता है.

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