Saphala Ekadashi 2022 Date: 9 दिसंबर 2022 से पौष माह की शुरुआत हो रही है. इसी माह में साल की आखिरी एकादशी यानी की पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया जाएगा. इसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत अपने नाम स्वरूप फल प्रदान करता है इसके प्रभाव से हर कार्य सफल हो जाते हैं. श्रीहरि विष्णु की कृपा से तमाम अधूरी इच्छाएं पूर्ण होती है. सफला एकादशी का व्रत इस साल 19 दिसंबर 2022 को है. इसका महत्व व्रत की कथा में वर्णित है. आइए जानते हैं सफला एकादशी की कथा.


सफला एकादशी व्रत कथा (Saphala Ekadashi Katha)


पुद्मपुराण के अनुसार चंपावती नगरी के राजा महिष्मान का राज था. राजा के पांच पुत्र थे जिसमें सबसे बड़ा बेटा लुंभक चरित्रहीन था, वह हमेशा पाप कर्मों में लिप्त रहता था. नशा करना, तामसिक भोजन करना, वैश्यावृति, जुआं, ब्राह्मणों का अनादर और देवताओं की निंदा करना उसकी आदत बन चुकी थी. राजा ने परेशान होकर उसे राज्य से बेदखल कर दिया.


असफलता को सफलता में बदल देता है सफला एकादशी का व्रत


पिता ने राज्य से बाहर निकाल दिया तो लुंभक जंगल में रहने लगा. एक बार भीषण ठंडी की वजह से वह रात में सो नहीं पाया. रातभर ठंड में कांपता रहा जिसके कारण वह मूर्छित हो गया. उस दिन पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि थी. अगले दिन जब होश आया तो अपने पाप कर्मों पर पछतावा हुआ और उसने जंगल से कुछ फल इक्ट्‌ठा किए और पीपल के पेड़ के पास रखकर भगवान विष्णु का स्मरण किया. इस सर्द रात को भी उसे नींद नहीं आई वह जागरण कर श्रीहरि की आराधना में लिप्त था. ऐसे में अनजाने में उसने सफला एकादशी का व्रत पूरा कर लिया.


सफला एकादशी से पूरी हुई मनोकामना


सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से उसने धर्म का मार्ग अपना लिया और सत्कर्म करने लगा. राजा महिष्मान को जब इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने लुंभक को राज्य में वापस बुलाकर राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी. कहते हैं तभी से सफला एकादशी का व्रत किया जाता है. ये सर्वकार्य सिद्ध करने वाली एकादशी मानी जाती है.


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