Samudra Manthan in Sawan 2023: विष्णु पुराण में समुद्र मंथन की कथा को विस्तापूर्वर बताया गया है. इसके अनुसार, समुद्र मंथन सावन के महीने में ही किया गया है. समुद्र मंथन की कहानी और समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश के बारे में कई लोग जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, समुद्र मंथन से निकली वो कौन सी चीजें थीं, जिन्हें मानव, देवता और सृष्टि के लिए उपयोनी नहीं माना जाता है.


समुद्र मंथन की कहानी को लेकर कहा जाता है कि, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन यानी धन, वैभव और ऐश्वर्य से विहीन हो गया था. तब विष्णु जी ने देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन का उपाय बताया. विष्णु जी ने कहा कि, समुद्र मंथन से जो अमृत कलश प्राप्त होगा, उससे आप सभी अमर हो जाएंगे.



इसके बाद वासुकी नाग की नेती बनाई गई और मंदाचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया. इसके बाद एक-एक कर समुद्र से कुल 14 चीजें निकलीं, जिन्हें 14 बहुमूल्य रत्न कहा जाता है. इन 14 चीजों का बंटवारा देवताओं और असुरों के बीच किया गया. लेकिन अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों के बीच विवाद छिड़ गया था. आइये जानते हैं, समुद्र मंथन से निकली उन चीजों के बारे में जिसे शुभ नहीं माना जाता है.


समुद्र मंथन से निकले 14 बहुमूल्य रत्नों के नाम


हलाहल विष, कामधेनु गाय, उच्चै:श्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, माता लक्ष्मी, वारुणी, चंद्रमा, पांचजन्य शंख, पारिजात वृक्ष,शारंग धनुष और अमृत कलश.


समुद्र मंथन से निकली अशुभ चीजें


हलाहल विष: समुद्र मंथन में सबसे पहले हलाहल विष निकला था. इस विष की ज्वाला इतनी तीव्र थी कि सभी देवता और दानव जलने लग गए. तब भगवान शिव देवता, दानव और समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए इसे खुद पी गये. लेकिन विष की तीव्र जलन के कारण शिवजी का कण्ठ नीला पड़ गया और उनके शरीर का ताप बढ़ने लगा. इसीलिए शिवजी का एक नाम नीलकण्ठ भी पड़ा. विष की ज्लावा को कम करने के लिए सभी देवताओं और दानवों ने शिवजी को शीतल जल चढ़ाया. इसके बाद उनके शरीर का ताप और जलन कम हुआ. यही कारण है कि सावन में शिवजी का जलाभिषेक किया गया है. कहा जाता है कि, शिवजी जब हलाहल विष को पी रहे थे तब इसकी कुछ बूंदे पृथ्वी पर गिर गई, जिसे सांप, बिच्छू और विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया. इस कारण ये जन्तु जहरीले होते हैं.


 वारुणी: वारुणी एक खास तरह की शराब या मदिरा है, जिसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई. जल से उत्पन्न होने के कारण इसे वारुणी कहा गया. देवता सुरापान करते थे और दानव मदिरा. इसलिए विष्णुजी के आदेश पर यह दानवों को प्राप्त हुई. इसे लेकर यह भी कहा जाता है कि, कंदब के फलों से बनाई जाने वाली इस मदिरा को वारुणी कहा जाता है. वहीं चरक संहिता में वारुणी को मदिरा एक ऐसा प्रकार बताया गया हैस जिसका औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है.


उल्लेखनीय है कि समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष और वारुणी को अशुभ तो नहीं कहा जा सकता है. लेकिन मानव, देवता और समस्त सृष्टि के लिए इसे उपयोगी नहीं माना गया. इसलिए सृष्टि की रक्षा के लिए शिवजी ने स्वयं हलाहल विष ग्रहण कर लिया और वारुणी यानी मदिरा दानवों को दे दी गई.   


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