Pradosh Vrat and Masik Shivratri 2024: 9 जनवरी 2024 का दिन शिव भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इस दिन साल का पहला प्रदोष व्रत और मासिक व्रत है. ऐसा संयोग साल में बहुत कम देखने को मिलता है जब शिव के प्रिय दोनों व्रत एक ही दिन हो. इस दिन साल का पहला भौम प्रदोष व्रत है.


प्रदोष व्रत जहां रोग, दोष, शोक से मुक्ति दिलाता है तो वहीं वैवाहिक जीवन में सुख शांति और सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए मासिक शिवरात्रि महत्वपूर्ण माना गया है. शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए इन दोनों व्रत में कथा जरुर पढ़ें, इसके बिना व्रत अधूरा है. जानें प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि व्रत की कथा और शिव जी की आरती. 


भौम प्रदोष व्रत कथा (Bhaum Pradosh Vrat Katha)


पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक वृद्धा अपने बेटे के साथ रहती थी. वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी. एक बार हनुमान जी ने अपनी भक्त की परीक्षा लेने के बारे में सोचा. एक दिन बजरंगबली एक ब्राह्मण का रूप धरकर वृद्धा के घर पहुंच गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त! जो हमारी इच्छा पूर्ण करे ? वृद्धि महिला तुरंत बाहर आई गई और बोली आपकी क्या इच्छा है ब्राह्मण देव.


हनुमान जी ने भोजन करने की इच्छा जाहिर की और कहा कि थोड़ी जमीन लीप दें.वृद्धा ने जमीन लीपने से इनकार कर दिया और कहा कि वह इसके अलावा दूसरा कोई कार्य कर देगी, बजरंगबली ने उसे अपने वचन पर अडिग रहने को कहा. हनुमान जी ने वृद्धा जी ने अपनी दूसरी इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि अपने पुत्र को बुलाओ में उसकी पीठ पर खाना बनाउंगा.


हनुमान जी की ऐसी बातें सुनकर वृद्धा घबरा गई लेकिन वह अपने वचन से पीछे नहीं हट सकती थी. ऐसे में उसे अपने बेटे को हनुमान जी को सौंपना पड़ा. वेशधारी साधु हनुमान जी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई. आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई.


भोजन बनने पर हनुमान जी ने वृद्धा से कहा कि अपने बेटे को भी बुलाओ भोजन तैयार है. बुजुर्ग महीला ने बेटे को पुकारा तो वह मां के पास दौड़ा चला आया. अपनी संतान को जीवित पाकर वृद्धा हैरान रह गई. उसने साधु को नमन किया, तभी  हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया.


मासिक शिवरात्रि कथा (Masik Shivratri Vrat Katha)


पौराणिक कथा के अनुसार वाराणसी के जंगल में गुरुद्रुह नाम एक शिकारी रहता था. एक दिन जंगल में घूमते-घूमते सुबह से लेकर रात हो गई लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला. उस दिन शिवरात्रि तिथि थी. वो जंगल में ही एक बेलपत्र के पेड़ पर आराम करने लगा, तभी वहां एक हिरनी आई. उसने जैसे ही तीर चलाने की कोशिश की तभी एक बेलपत्र और बारिश से पेड़ पर जमा पानी नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिर गया. शिकारी से अनजाने में शिवरात्रि के पहले प्रहर की पूजा हो गई.


हिरनी की नजर शिकारी पर पड़ गई. उसने शिकारी से कहा कि घर में बच्चे उसका इंतजार कर रहे हैं. हिरनी की बात सुनकर शिकारी ने उसे छोड़ दिया. इसके बाद हिरनी की बहन वहां गुजरी. फिर गुरुद्रुह ने अपना धनुष और तीर चढ़ाया. दोबारा बेलपत्र और जल शिवलिंग पर जा गिरे. ऐसे दूसरे प्रहर की पूजा हो गई. उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर दोबारा आने की बात कही तो गुरुद्रुह को उस पर भी दया आ गई.


थोड़ी देर बार एक हिरन अपनी हिरनी की खोज में आया. फिर पूरी प्रक्रिया अनजाने में हुई और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग का पूजन हो गया. कुछ देर के बाद तीनों हिरनी  और हिरन शिकारी को किए वादे के चलते उसके पास आ गए. इन सभी को देखकर गुरुद्रुह बहुत खुश हो गया. वो सबको मारता उससे पहले चौथे प्रहर की पूजा भी संपन्न हो गई.


सुबह से रात तक बिना कुछ खाए पिए उससे अनजाने में शिवरात्रि का व्रत -पूजा हो गई. इस तरह उसे पापों से मुक्ति मिल गई और उसने हिरनों को मारने का विचार भी छोड़ दिया. जिसके प्रभाव से उसके पाप तत्काल भस्म हो गए। सूर्योदय होते ही उसने सभी हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया. तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उसे वरदान देते बोले त्रेतायुग में भगवान राम उसके घर आएंगे साथ ही उसके बाद वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाएगा.


Om Jai Shiv Omkara Aarti Hindi Lyrics ओम जय शिव ओमकारा आरती


ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।


ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥


ओम जय शिव ओंकारा ॥


एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।


हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥


ओम जय शिव ओंकारा॥


दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।


त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥


ओम जय शिव ओंकारा॥


अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।


त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥


ओम जय शिव ओंकारा॥


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।


सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥


ओम जय शिव ओंकारा॥


कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।


मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥


ओम जय शिव ओंकारा॥


पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।


धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥


ओम जय शिव ओंकारा॥


जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।


शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥


ओम जय शिव ओंकारा॥...


काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।


नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥


ओम जय शिव ओंकारा॥...


त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।


कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित


ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥


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