Parivartini Ekadashi 2022: परिवर्तिनी एकादशी 6 सितंबर 2022 को है. मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से घर में खुशहाली आती है, तनाव से मुक्ति मिलती है. जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते है. अभी चातुर्मास चल रहा है. इस समय भगवान विष्णु क्षीर निद्रा में रहते हैं और परिवर्तिनी एकादशी पर शयन के दौरान करवट बदलते हैं. हिंदू धर्म में देवी-देवताओं विशेष पूजा के बाद कथा पढ़ने का विशेष महत्व है. मान्यता है बिना कथा का श्रवण किए व्रत पूरा नहीं माना जाता. आइए जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा.


परिवर्तिनी एकादशी 2022 मुहूर्त (Parivartini Ekadashi 2022 muhurat)


भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि आरंभ - 06 सितंबर 2022 सुबह 05.54


भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि आरंभ -  07 ​सितंबर 2022 सुबह 03.04


व्रत का पारण समय - 7 सितंबर 2022, सुबह 08 .19 - सुबह 08. 33


परिवर्तिनी एकादशी कथा (Parivartini Ekadashi Katha)


परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी, पद्म एकादशी भी कहा जाता है. इस एकादशी के व्रत की कथा स्वंय भगवान कृष्ण ने युदिष्ठिर को बताई थी. श्रीकृष्ण ने कहा था कि इस कथा को मात्र पढ़ने से व्यक्ति के पाप क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं. कथा के अनुसार त्रेतायुग युग में दैत्यराज बलि भगवान विष्णु का परम भक्त था. इंद्र से बैर के कारण राजा बलि ने इंद्रलोक में आक्रमण कर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था. सभी देवी-देवता उसके अत्याचार से डरे हुए थे.


वामन देव ने मांगी बलि से तीन पग भूमि


इंद्र समेत सभी देवताओं ने राजा बलि के भय से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई. भगवान विष्णु ने देवताओं को बलि के डर से छुटकारा दिलाने का आश्वासन देते हुए वामन अवतार लिया और फिर दैत्यराज बलि के पास पहुंच गए. यहां उन्होंने बलि से तीन पग भूमि दान में मांग ली. बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया.


बलि की भक्ति से प्रसन्न हुए श्रीहरि विष्णु


वामन देव ने अपना विकारल रूप धारण कर एक पग स्वर्ग नाप लिया, दूसरे से धरती, तीसरे कदम के लिए जब कोई जगह नहीं बची तो राजा बलि ने अपना सिर झुका दिया और बोले की तीसरा कदम यहां रख दीजिए. वामन देव राजा बलि की भक्ति और वचनबद्धता से बहुत प्रसन्न हुए. भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन देव ने फलस्वरूप राजा बलि को पाताल लोक दे दिया. वामन देव ने जैसे ही तीसरा पग बलि के सिर पर रखा वो पाताल लोक चला गया.


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