Ramayan : रामायण काल में हनुमानजी की सेवा और भक्ति ने श्रीराम के कष्ट निवारण किए हैं, यही वजह है कि श्रीराम की कृपा पाने के लिए हनुमानजी की उपासना का विशेष महत्व बताया जाता है, लेकिन हनुमानजी माता जगदम्बा के भी सेवक हैं. मान्यता है कि माता के आगे-आगे हनुमानजी चलते हैं तो पीछे-पीछे भैरवजी. मान्यता है कि अमर होने के नाते आज भी हनुमानजी का अस्तित्व है और मां के साथ हनुमानजी और भैरवजी की पूजा से सभी मनवांछित फल मिलते हैं. एक और मान्यता है कि मां सीता, सती, मंदोदरी समेत रामायण काल की कई महिलाएं शक्ति का प्रतीक थीं, जिनकी रक्षा या मदद करने के लिए हनुमानजी माता के परम सेवक बने. इसी तरह भैरवजी भी मां के सेवक बने रहें, इसलिए वैष्णोदेवी के दर्शन को तभी पूरा माना जाता है, जब श्रद्धालु भैरवजी और बजरंगबली के दर्शन और पूजन कर लें.
यही वजह है कि माता के अधिकांश मंदिरों में आसपास हनुमान और भैरवजी का मंदिर जरूर होता है. हनुमानजी की खड़ी मुद्रा और भैरवजी का कटा सिर होता है. किवदंती के मुताबिक कुछ लोग उनकी कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़ते हैं. भगवान श्रीराम और माता दुर्गा की कृपा चाहने के लिए हनुमानजी की भक्ति आवश्यक बताई गई है. कहा जाता है कि हनुमानजी की शरण में जाने से सभी सुख-सुविधाएं मिलती हैं. यही वजह है कि सृष्टि में धर्म की स्थापना और रक्षा का काम चार देवों के हाथों दुर्गा, भैरव, हनुमान और कृष्ण के हाथ में सौंपा गया है.
श्रीराम की मदद के लिए हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र भी बेअसर हनुमानजी के पास कई वरदान की शक्तियां थीं. फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे. ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र भी बेअसर था, यही वरदान उनके लिए अशोकवाटिका में मां सीता से भेंट के दौरान राक्षसों से लड़ने के काम आया.
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