Narad Jayanti: नारद मुनि को ब्रह्मा जी की मानस संतान माना गया है. नारद जी भगवान विष्णु के परम भक्त हैं. उनके बारे में मान्यता है कि वे कहीं भी एक जगह टिक कर नहीं बैठते हैं. सदैव भ्रमण करते रहते हैं. उनकी इस आदत के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है जो इस कथा में छिपा हुआ है.


नारद मुनि कथा
पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति ने 10 हज़ार पुत्रों को जन्म दिया था. इतने पुत्र होने के बाद भी इनमें से किसी ने भी राज पाट नहीं संभाला. कहा जाता है कि ये सभी नारद जी की संगत में आ गए और नारद जी ने सभी को मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया था.


बाद में दक्ष का विवाह पंचजनी से संपंन हुआ. जिससे उन्हें एक हजार पुत्र हुए. नारद जी ने दक्ष के इन पुत्रों को भी सभी प्रकार के मोह माया से दूर रहकर मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया. राजा नारद की इस बात से इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने नारद मुनि को श्राप दे दिया और कहा कि तुम हमेशा इधर-उधर भटकते रहेंगे और एक स्थान पर ज्यादा समय तक नहीं रूक सकोगे. इस श्राप के कारण ही नारद मुनि कभी एक जगह पर नहीं टिकते हैं.


कला और संचार से जुड़े हैं नारद जी
कहा जाता है कि नारद जी कई कलाओं और शास्त्रों में निपुण थे. नारद जी को इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेद, संगीत, ज्योतिष जैसे अनेक शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान था. वीणा और खरताल लेकर वे भगवान विष्णु के उपासना करते रहते हैं. नारद मुनि को भगवान विष्णु का संदेश वाहक माना जाता है. नारद जी को विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त थी. वहीं माता सरस्वती की भी कृपा प्राप्त होने से वे अत्यंत बुद्धिमान और संगीत मर्मज्ञ थे. सूचनाओं को समय पर आदान प्रदान करने के लिए भी नारद मुनि को जाना जाता है.


ऐसे राजा दशरथ के यहां भगवान राम ने लिया जन्म, महर्षि वशिष्ठ ने कराया था पुत्रेष्ठि यज्ञ