Sadhguru Teachings: सद्गुरु बताते हैं कि मनुष्य का जीवन उतना जटिल नहीं है, जितना हमारा मन उसे बना देता है. जब विचार शांत होते हैं, तब जीवन अपनी वास्तविक सुंदरता प्रकट करता है. मन को समझ लेना ही आध्यात्मिकता का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि दुख बाहर से नहीं आता, वह हमारे ही भीतर पैदा होता है. सद्गुरु के अनुसार, जो व्यक्ति अपने मन को पहचान लेता है, वही अपने जीवन का स्वामी बन जाता है.
मन और विचारों को समझने का उपदेश
सद्गुरु कहते हैं कि ईश्वर ने मनुष्य को अत्यंत विकसित बुद्धि दी है. लेकिन यही बुद्धि समस्या बन जाती है जब हम अपनी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से चिपक जाते हैं. विचार हमारे भीतर जन्म नहीं लेते. वे बाहरी अनुभवों, स्मृतियों और कल्पनाओं का मिश्रण होते हैं. उनके अनुसार कभी प्रेम आता है, कभी द्वेष.
कभी प्रसन्नता, कभी दुख. और हम मान लेते हैं कि यह सब सच है. सद्गुरु कहते हैं कि यह मन का नाटक है. आपके भीतर जो चलता है, वह बाहर की सच्चाई नहीं है. सच्ची बुद्धिमत्ता वही है जो सोचने से अधिक देखने की क्षमता विकसित करे. जो अपने विचारों से ऊपर उठ जाए, वही वास्तव में स्वतंत्र हो जाता है.
स्वयं की पहचानों
सद्गुरु समझाते हैं कि मनुष्य अपने शरीर और भावनाओं को ही स्वयं मान लेता है. लेकिन शरीर भी भोजन से बना है और एक दिन मिट्टी में लौट जाना है. विचार और भावनाएं भी आपने ही संग्रह की हैं. इसलिए वे आपकी हो सकती हैं, पर आप वह नहीं हैं. सद्गुरु कहते हैं- आप शरीर, मन और भावनाओं से कहीं बड़े हैं.
आप जीवन हैं. यदि कुछ समय के लिए व्यक्ति बाहरी उत्तेजनाओं से दूर हो जाए. न पढ़े, न सुने, न देखे, तो मन स्वाभाविक रूप से शांत होने लगता है. शांत मन ही आत्मबोध का द्वार खोलता है.
जीवन की दृष्टि बदलें
सद्गुरु कहते हैं-ब्रह्मांड को देखो. सूरज समय पर उगता है. धरती अपनी धुरी पर घूमती है. सब कुछ परम सटीकता से चल रहा है. फिर भी मनुष्य छोटी-सी बात में उलझ जाता है और दुखी हो जाता है. समस्या संसार में नहीं है. समस्या हमारी दृष्टि में है. जब विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण हो जाता है, तब जीवन बोझ नहीं रहता. वह एक वरदान बन जाता है.
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