Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi: देशभर में आज सुहागिनों का पावन पर्व करवा चौथ मनाया जा रहा है. सुबह की सरगी करने के बाद महिलाओं का निर्जला व्रत शुरू हो चुका है. इसके बाद शुभ मुहूर्त में विवाहिताएं मां गौरी और शिव शंकर की पूजा करेंगी. इसके बाद रात्रि में चंद्रोदय (Karwa Chauth Chand Nikalne ka Samay) होने के बाद चांद को अर्घ्य देकर और पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलेंगी.

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करवा चौथ का दिन हर सुहागिन महिला के लिए महत्वपूर्ण होता है. इस दिन वे पूरे दिन भूखी-प्यासी रहकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. लेकिन करवा चौथ का व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता, जब तक इसकी व्रत कथा का पाठ न किया जाए. इसलिए पूजा में करवा चौथ की व्रत कथा जरूर पढ़ें.

करवा चौथ की व्रत कथा (Karwa Chauth Ki Kahani)

कथा के अनुसार- एक समय की बात है, एक द्विज नाम का ब्राह्मण था, जिसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक कन्या थी. ब्राह्मण और सातों भाई वीरावती से बहुत स्नेह रखते थे. एक बार वीरावती ने अपने मायके आई हुई थी और उसने पहली बार करवा चौथ का मायके में ही व्रत रखा. यह व्रत बहुत कठिन होता है, जिसमें सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता. पूरे दिन के निर्जला व्रत से वीरावती बहुत परेशान हो गई थी.

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बहन की यह हालत देखकर सातों भाइयों को बहुत दुख हुआ. वे जानते थे कि चांद निकलने से पहले वह व्रत नहीं खोलेगी. इसके लिए भाईयों ने एक युक्ति निकाली. वे गांव के बाहर सबसे ऊंचे एक वट के वृक्ष पर चढ़ गए और वहां लालटेन जलाकर उसे कपड़े से ढक दिया. दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो आसमान में चंद्रमा उदिय हो गया हो. भाइयों ने वीरावती से कहा, देखो बहन! चांद निकल आया है. अब जल्दी से अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल लो.

वीरावती ने भाइयों की बात पर विश्वास कर लिया और उस लालटेन को चांद मानकर अर्घ्य देकर और भोजन करने बैठ गई. जैसे ही वीरावती ने भोजन करना शुरू किया, तो पहले कौर में उसे बाल मिला. दूसरे कौर में उसे जोर से छींक आई और तीसरे कौर में ससुराल से खबर आई कि उसका पति बहुत बीमार है. वीरावती तुरंत अपने ससुराल पहुंची, लेकिन तब तक उसके पति की मृत्यु हो चुकी है. यह देखकर वीरावती रोने लगी.

तभी वहां देवी इंद्राणी प्रकट हुई. उन्होंने वीरावती से कहा कि, उसके बिना चंद्रमा को अर्घ्य दिए गलत समय पर व्रत तोड़ दिया था, जिस कारण उसके पति की यह हालत हुई है. देवी इंद्राणी ने वीरावती से कहा कि अगर वह सच में अपने पति का जीवन चाहती है, तो वह अगले साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का व्रत पूरी विधि और निष्ठा के साथ करे. वीरावती ने देवी इंद्राणी की आज्ञा मानकर अगले साल पूरी श्रद्धा के साथ करवा चौथ का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से वीरावती के मृत पति को दोबारा से जीवनदान मिला. तब से ही सुहागिन महिलाएं इस दिन पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और आज भी यह परंपरा निभाई जाती है.

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