आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य वह कर जाते थे जो लोग सोच भी नहीं पाते थे. सिकंदर की सेना को छात्र संगठन के बल पर परास्त कर देना हो. मगध सम्राट की सत्ता को गृह क्लेश से ध्वस्त करना हो. दोनों ही महान सफलताओं में चाणक्य के चिंतन और चतुराईपूर्ण कृत्य की जीत दिखाई पड़ती है. असंभव को संभव करने वाली सोच और कार्यशैली के धनी चाणक्य ने मनोबल को कभी धीमा नहीं होने दिया. पिता को देश निकाला, मां की मृत्यु से लेकर पग पर पग संकट और दुख का सामना करने वाले चाणक्य पूरे मनोयोग ये लक्ष्य पाने में जुटे रहते थे.
आज के दौर में जब लोग व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति न होने पर हताश नजर आने लगते हैं. चाणक्य ने असंख्य लोगों का नेतृत्व करते हुए बड़ी लड़ाई का शंखनाद किया. वे भी प्रारंभिक मोर्चाें पर मन मलिन करते तो उनकी सफलता इतिहास में दर्ज न हुई होती. ध्यान रखें, अबोध बालक की तरह मनोत्साह बनाए रखें.
बार-बार गिरने और चोट खाने के बावजूद नन्हा बालक चलने की जिद को पूरा कर लेता है. शारीरिक कमजोरी, अनुभवहीनता और स्किल लर्निंग प्रोग्राम के बगैर वह चलना सीख लेता है. बड़े प्रयासों में भी यही बात लागू होती है. संसाधन कितना है? लोग कितने हैं? और शि़क्षा कितनी है? इन सब बातों से महत्वपूर्ण मनोबल का होना है. इसलिए कहा भी गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.
मन की शक्ति और मनोबल एक दूसरे के पर्यायवाची हैं. मनोबल मन को शक्तिशाल बनाता है. शक्तिशाली मन मनोबल को उच्चता प्रदान करता है. आपको मनःशक्ति अथवा मनोबल एक साधकर चलना होता है. दूसरा स्वतः प्राप्त हो जाता है.