Motivational Quotes: प्रेमानंद महाराज  अपने उपदेशों में बार-बार यही बात करते हैं कि जीवन का सर्वोच्च धर्म वही है, जिसमें धर्म, राष्ट्र, संस्कृति और इष्ट की गरिमा सुरक्षित रहे. यदि इन मूल स्तंभों पर आंच आती है, तो मौन रहना अधर्म है और विरोध करना ही हर व्यक्ति का कर्तव्य है. 

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क्या कहते हैं प्रेमानंद महाराज

प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि धर्म का वास्तविक अर्थ किसी संप्रदाय या कर्मकांड तक सीमित नहीं है. धर्म वह है जो मनुष्य को मनुष्य बनाए रखे. जब समाज में असत्य, अधर्म या अन्याय बढ़ता है, तो केवल उपदेश देना पर्याप्त नहीं होता है. उस समय विरोध ही धर्म का प्रतीक बन जाता है.

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यही कारण है कि गीता में भी श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्धभूमि में खड़ा होने का आदेश देते हैं क्योंकि धर्म की रक्षा के लिए सक्रिय होना आवश्यक है. वे कहते हैं कि राष्ट्र केवल भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था, परंपरा, भाषा, इतिहास और संघर्षों का समन्वित स्वरूप है.

महाराज कहते हैं कि राष्ट्र की सुरक्षा का दायित्व केवल सेनाओं का नहीं, बल्कि हर नागरिक का है. यदि राष्ट्र की अस्मिता पर चोट पहुंचती है तो विरोध करना आवश्यक हो जाता है. ऐसा विरोध समाज को जागरूक भी करता है और राष्ट्र को सुदृढ़ भी करता है. 

चरित्रहीनता राष्ट्र के लिए दुर्बलता

प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि चरित्र वह तत्व है जो व्यक्ति को प्रतिष्ठा देता है और समाज को स्थिरता प्रदान करता है. चरित्रहीनता राष्ट्र की सबसे बड़ी दुर्बलता है. चरित्रहीनता आग है जिनसे राष्ट्र भीतर ही भीतर जलता है. ऐसे समय में विरोध केवल नारा नहीं, बल्कि समाज को जागृत करने का दायित्व है. चरित्र की रक्षा ही राष्ट्र के भविष्य की रक्षा है. 

आस्था पर चोट करना सभ्यता के लिए संकट

प्रेमानंद महाराज के अनुसार मनुष्य अपने इष्ट से शक्ति, धैर्य और विवेक प्राप्त करता है. जब इष्ट, धर्म या देवी-देवताओं का अपमान होता है, तो आस्था कमजोर पड़ती है. महाराज कहते हैं कि आस्था पर चोट लगना किसी भी सभ्यता के लिए गंभीर संकट होता है. इसलिए यदि कोई शक्ति समाज को उसकी जड़ों से काटने का प्रयास करे, तो प्रतिकार करना ही उपासना बन जाता है.

वे समझाते हैं कि विरोध का अर्थ हिंसा नहीं बल्कि विरोध का अर्थ है- सत्य के पक्ष में खड़ा होना है. गलत को गलत कहना और संस्कृति की रक्षा करना ही धर्म है. प्रेमानंद महाराज के अनुसार, जब चारों मूलाधार धर्म, राष्ट्र, चरित्र और इष्ट सुरक्षित हों, तभी समाज समृद्ध होता है.

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